गुरू घासीदास ने स्वंय को जगा दिया इसलिए हम उसे याद करते हैं: संत पुनीराजजी

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गुरू घासीदास ने स्वंय को जगा दिया इसलिए हम उसे याद करते हैं: संत पुनीराजजी
संसार तुम्हारे कर्म व सेवा को हमेशा याद करें: संत पुनीराजजी
कार्यक्रम के अंतिम दिवस अपनापन और परायापन का दिये संदेश
स्वप्न मिट जाता है इसलिए व्यक्ति को स्वंय जागकर ही दूसरे को जगाना चाहिए

सतनाम अनंत, अपार, अखण्ड है, सतनाम के ज्ञान को शब्दों में बांधना, प्रकृति के मौन अभिव्यक्ति का बखान करना असंभव है। फिर भी सतनाम गुरू घासीदास बाबा के प्रेरणा मानव समाज को जीवन से जुडे प्रसंग को  छत्तीसगढ़ की माटी में 18 से 31 दिसंबर तक अध्यात्मिक भाव से संत पुनीराम गुरूजी द्वारा जन-जन तक पहुंचाकर मानव जीवन में उतारने का संदेश दिया है जो प्रकृति के परिधि में रहकर जीवन जीने, जागृति फैलाने का मार्ग प्रसस्त करता हरेगा।

बिलासपुर। गुरूपर्व पर गुरू घासीदास जी के आदर्शो, अमृत वचनों को मुखरित करने वाले संत पुनीराम गुरूजी के संदेश व वाणी को ‘राज एक्सप्रेस’ अखबार ने प्रमुखता से लगातार जन मानस तक पहुंचाने का प्रयास किया है, तांकि एक सभ्य एवं संस्कारवान समाज का निर्माण किया जा सके। आज के इस राजनीतिक व काल्पनिक युगवादियों ने परम्पराओं व मानव सभ्यता का विघटना किया है, लेकिन संत पुनीराम गुरूजी के द्वारा गुरू बाबा घासीदास जी आदर्शो पर चलकर लाखों लोगों को मानवता का संदेश देने भरसक प्रयास किया है। इसी कीडी में उन्होने कहा कि आज मै अपनापन खोजने निकल पड़ा और देखने समझने लगा कि कौन है अपना और कौन है पराया। जिसको मैं अपना कहता हॅूं। वह मुझसे दूर होता जा रहा है मैं अभी तक कल्पना भी नही किया था। आदमी दिनभर में जितनी दूरी जाता है उससे ज्यादा एक पल मे चला जाता है। जब आदमी चलता है तो उसकी दूरी का अंदाजा लगाया नही जा सकता है। जब से चलना शुरू किया है आज तक कितनी दूरी चल सका है। यह तो आप स्ंवय पता लगा सकते हैं जो चलेगा वह कुछ ना कुछ जरूर देखेगा वह जीवन में रूकता नही अपने अंतिम पड़ाव तक चलेगा और देखेगा, सुनेगा और बोलेगा इंसान को इसकी जानकारी अवश्य होनी चाहिए कि जीवन मे क्या देखा, क्या सुना और क्या बोला फिर उसका क्या परिणाम हुआ यह भी आदमी जानता है आदमी जन्म से लेकर आज तक आगे बढ़ते जा रहा है वह अपने साथ जो लेकर चल रहा है वह उसी का है और किसी का नही है। मै तो समझा मेरा अपना है लेकिन वह पीछे लौटकर नही देखा कि कोई मेरा इंतजार कर रहा है कोई अपना मुझे अपना मानता है मेरा सोंच गलत निकला वह आगे बढ़ते चला जा रहा है वह क्या देखा, सुना, और बोला सब उसी को मालूम है वह मेरे समझ से अलग है। समझ ही तो संसार है, संसार में सब कुछ है।


जागकर, जगायें
आदमी रात मे सपने देखता है यह तो मै भी जानता हॅंू परन्तु दिन मे सपने देखता है मैं नही जान रहा था। आदमी दिन में जो कुछ भी कर रहा है वह रात के लिए स्वप्न है। आज का काम कल के लिए दाम है, विश्राम है। आदमी जो कुछ भी करते चला जा रहा है वही उसके लिए स्वप्न बनते जा रहा है। यदि कोई जागकर जगायेगा वह अनंतकाल तक जीवित रहेगा वही जागृत हो जाता है, स्वप्न मिट जाता है इसलिए व्यक्ति को स्वंय जागकर ही दूसरे को जगाना चाहिए जैसे गुरूघासीदास ने छत्तीसगढ़ के माटी मे स्वंय को जगा दिया इसलिए हम उसे याद करते है।
यही अपनापन है
आज का काम आने वाले कल के लिए स्वप्न हो जाता है और वही भूतकाल में परिवर्तित हो जाता है मेरा विचार है कि आज के वर्तमान को आने वाले वर्तमान से जोड़ लेना ही बृद्विमानी है वही ज्ञानी, ध्यानी, और समाज में आने के लिए आपका धरोहर है। जो आज अच्छा कर्म करेगा उसके लिए फिर कल नही आयेगा वह सदा आज ही रहेगा वही अपनापन है। याद रहे सृष्टि में जो भी पैदा हो रहे हैं उनका संबंध केवल माया है, संबंध है अपनापन नही हो सकता है। आदमी आज जो कुछ भी कर रहा है उसे कल भी यादगार बना लेना भविष्य का निर्माण करना है। मनुष्य भूत और भविष्य के मध्य जी रहा है दो के बीच मे जो शून्य स्थान है वही आपका जीवन है यदि वहीं पर जाग गये तो कल्पवृक्ष हो जाओगे यदि तुम कल मे सो गये तो फिर शून्य में समा जाओगे। आपका आना और जाना का कोई महत्व नही रहेगा। अक्सर देखा गया है कि क्रोध, मोह, लोभ, लालच से उत्पन्न दिशा उसे भय मे लाकर भटका देता है और गहरे नींद मे सो जाता है क्रोध तो उत्पन्न हुआ है। घृणा से तो जानिए कि वह तुम्हे यहां रहने नही देगा, अपनापन समाप्त कर देगा।
त्याग की जरूरत
तृष्णा रूपी लालच से उत्पन्न जीवन तुम्हे संतुष्ट नही कर सकेगा। तृष्णा मे वह ताकत नही है कि वह अपनापन लाकर तुम्हे आत्मसंतोष दिला सके। अपनापन आत्मीय भाव है वही स्थायी है जो आपके आने का अनमोल रतन है उस अनमोल रतन को पाने के लिए त्याग की जरूरत है, त्याग के भीतर भोग का स्थान नही होना चाहिए नही तो कभी भी अपनापन नही आ सकेगा। सुखे पेंड़ के प्रति प्रेम समाप्त हो जाता है, सब समझ जातें हैं कि यह कभी भी अब फूलने फलने लायक नही है इसलिए उस पेंड़ से मोह समाप्त हो जाता है और उसे जला दिया जाता है या नष्ट कर दिया जाता है इसलिए कहता हूॅं कि जीवन में स्वंय के लिए जागो और ऐसा कर्म करो कि संसार मे तुम्हारा अपनापन सदा याद दिलाता रहे। अपनापन का अर्थ है आदमी अपने जिम्मेदारी को समझता है और स्वंय में विश्वास जगाता है तभी अपनापन आता है।
आपके अंदर संजीवनी है
जब आदमी अपनापन विश्वास और जिम्मेदारी को पराया अर्थात दूसरों में भी स्थापित कर देता है, दूसरों की सेवा करता है तो वह पराया न होकर अपनापन का बोध होता है क्या आपने परायो पर भी अपनापन का अनुभव किया है ? यदि आप ऐसा करने मे सक्षम है तो आप निश्चित ही एक महापुरूष है एक सच्चा सत है एक गुरू है जो आप अपने कर्म सेवा और जिम्मेदारी पर अपनापन का अनुभव करते हैं। आप महान आत्मा है, आपके अंदर संजीवनी है जो बीमार आदमी की ईमानदारी और सच्चाई के साथ जवाबदारी को अपने सेवाभाव से जगाया है। आप धन्य है आपकी आवष्यकता मानव समाज सदा महसूस करता रहेगा। इसी विचार के साथ पुनीराम गुरूजी सभी माता पिता, भाई, बहनों को नमन करते हुये गुरूपर्व की अंतिम बेला में याद करते हुये सबको जय सतनाम।

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