होम्योपैथिक डॉक्टर चला रहे थे देवांता

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जांच में छुपाने वाले तथ्य आये सामने

अग्रिम आदेश तक सील हुआ देवांता हास्पिटल

शहडोल। देवांता अस्पताल में 22 सितम्बर के पूरे दिन अनूपपुर जिले के जैतहरी ब्लाक अंतर्गत क्योटार में रहने वाली पुष्पा राठौर नामक महिला की मौत और उसके बाद उपजे विवाद ने मुर्दे का सौदा और मनमर्जी की खान बने डॉ. बृजेश पाण्डेय और डॉ. विष्णुकांत त्रिपाठी को बेपर्दा कर दिया। 22 को ही कोतवाली में अपराध दर्ज हुआ, 23 को यह मामला पूरे प्रदेश में छाया रहा, कलेक्टर श्रीमती वंदना वैद्य ने मामले को गंभीरता से लिया और इस मामले में जांच के आदेश दिये, 25 सितम्बर को अपर कलेक्टर अर्पित वर्मा, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एम.एस. सागर के नेतृत्व में टीम देवांता अस्पताल पहुंची, जब दस्तावेज खंगाले गये तो, जिम्मेदारों के कान खड़े हो गये। जिसके बाद यह भी सवाल उठने लगे कि पूर्व के कलेक्टर और स्वास्थ्य विभाग के मुखिया आखिर अब तक इस संदर्भ में चुप क्यों बैठे थे।
खंगाले गये दस्तावेज
कलेक्टर श्रीमती वंदना वैद्य ने प्रकरण की जांच हेतु अपर कलेक्टर एवं अपर जिला मजिस्ट्रेट अर्पित वर्मा की अगुवाई में जांच दल गठित किया गया। जिसमें मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एम.एस. सागर, जिला चिकित्सालय के प्रभारी अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. मुकुन्द चतुर्वेदी तथा आई.एम.ए. के जिला अध्यक्ष डॉ. एस.सी. त्रिपाठी को शामिल किया गया। शनिवार को जांच टीम स्थानीय देवांता अस्पताल पहुंचकर समस्त रिकार्डों को खंगाला तो, व्यापक अनियमितताएं पाई गई, जांच में पाया गया कि मृतिका श्रीमती श्रीमती पुष्पा राठौर, पति संतोष राठौर उम्र 32 वर्ष निवासी ग्राम चोरभठी, थाना जैतहरी जिला अनूपपुर को जिला चिकित्सालय अनूपपुर में इलाज कराने के पश्चात देवांता अस्पताल शहडोल में भर्ती किया गया, जिसमें चिकित्सक द्वारा संभावित डाग्यनोसिस (सीकेडी विथ सेफ्सिस) लिखा था। मृतिका की हिस्ट्री एवं जांच रिपोर्ट से यह प्रमाणित नहीं होता कि मरीज सीकेडी क्रॉनिक किडनी डिसीस) की मरीज थी। मृतिका को भले ही स्पेशलिस्ट डॉ. दीपक पॉल ने समय उपरांत देखा था, परंतु उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर इस डाग्यनोसिस के अतिरिक्त कोई भी अपना मत न दिया जाना यह प्रतीत होता है कि मेडिकल स्पेशलिस्ट के द्वारा कोई भी अतिरिक्त इलाज, जांच आदि नहीं किया गया है। डॉ. दीपक पॉल के नाम से अधिकतर मरीज का जांच किया जाना इस अस्पताल में दर्ज है, जबकि डॉ. दीपक पॉल इस स्थान के अतिरिक्त श्याम केयर अस्पताल में भी अपनी नियमित ओ.पी.डी.एवं अन्य सेवाएं देते है। ऐसे में मरीजों को समय पर विजिट कर कन्सल्टेसन दे पाना संदिग्ध प्रतीत होता है। डॉ. दीपक पॉल द्वारा स्वयं बताया गया है कि उनके द्वारा मरीजों को केवल चिकित्सकीय सलाह दी जाती है उसके बाद उक्त मरीज का इलाज किया गया अथवा नहीं किया गया इसकी मानिटरिंग उनके द्वारा नहीं की जाती।
कागजों से की गई छेड़छाड़
मृतिका की हिस्ट्री में 09 सितम्बर को जहरीली दवा लेने से तबीयत खराब होना बताया गया तथा जांच में पाया गया कि केस सीट में किसी भी चिकित्सक का नाम अंकित नहीं था। केस सीट में ओव्हर राईंटिंग एवं मैनुपुलनेशन पाया गया। जांच कमेंटी के समक्ष डॉ. दीपक पॉल द्वारा 13 सितम्बर को लेख किया गया था कि मरीज की हालत अत्यंत खराब है। उनके परिजनों को सूचित किया जाय। जांच में पाया गया कि वाईटल चार्ट में ओव्हर राईंटिग तथा कई स्थानों पर हस्ताक्षर नहीं पाये गये। जांच में पाया गया कि रजिस्टर में कांट-छांट ओव्हर राईंटिग की गई अस्पताल प्रबंधन द्वारा मनामाना बिल 70100 रूपये का दिया गया। उसके अतिरिक्त डायलिसिस के लिए अलग से फीस ली गई। मरीज की हालत गंभीर होने के बावजूद इलाज में मरीज के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई गई। अत्यंत गंभीर स्थिति में मरीज के गंभीर होने के बाद भी बेहतर उपचार के लिए उच्च चिकित्सा संस्थान हेतु संदर्भित (रेफर) नहीं किया गया।
पहले भी दिया गया था नोटिस
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा 15 सितम्बर को नर्सिग होम एवं क्लीनिक के रूटिन निरीक्षण के दौरान देवांता अस्पताल को कारण बताओ नोटिस भी दिया गया था, लेकिन अस्पताल प्रबंधन द्वारा कोई सुधार नहीं किया गया। जांच में पाया गया कि मृतिका के जांच संबंधी रिकार्ड पूर्ण मौके पर नहीं मिले उपस्थित स्टॉफ द्वारा इलाज के अधिकतर बिन्दुओं पर अनभिज्ञता जाहिर की गई। अस्पताल हेतु आवश्यक स्टाफ की सूची एवं भौतिक सत्यापन नहीं किया जा सका। मृतिका से संबंधित सभी रिकार्ड अस्त-व्यस्त पाये गये। मृतिका के डायग्नोंस जांच इलाज में लापरवाही पाई गई तथा 22 सितम्बर को शायं 5 बजे मृतिका के परिजनों द्वारा 30,000 रूपये जमा करना प्रमाणित पाया गया एवं दवा का 40,000 का बिल अलग से पाया गया। जांच समिति द्वारा यह भी पाया गया कि अस्पताल प्रबंधन द्वारा स्वयं के निर्धारित शुल्क से ज्यादा शुल्क लिया गया है एवं फिजियोथेरेपी चार्ज भी लगाया गय है, जिसका इस केस से कोई संबंध नहीं है। अतएव अनावश्यक चार्ज लेना प्रमाणित हो रहा है।
फरार हुए पाण्डेय और त्रिपाठी
जांच समिति के समक्ष देवांता अस्पताल के संचालक डॉ. बृजेश पाण्डेय एवं डॉ. बी.के. त्रिपाठी उपस्थित नहीं हुए और बार-बार कॉल करने के बाद भी उनके फोन बंद पाये गये। जांच समिति के द्वारा यह पाया गया कि जहर खाने के कारण गंभीर मरीज को बेहतर उपचार हेतु उच्च चिकित्सा संस्थान हेतु रेफर एवं त्वरित कार्यवाही हेतु पुलिस सूचना न देना घोर लापरवाही का घोतक है। अस्पताल प्रबंधन एवं चिकित्सक मेडिकल लीगल केस होने के बावजूद साक्ष्यों को छिपाने की दृष्टि से पुलिस प्रबंधन को सूचना नहीं दी गई। जांच समिति द्वारा यह पाया गया कि देवांता अस्पताल होम्योपैथिक चिकित्सकों द्वारा संचालित किया जा रहा है, जबकि जांच आदि के लिए एलोपैथिक चिकित्सक का होना आवश्यक है। प्रकरण की गंभीरता एवं देवांता अस्पताल प्रबंधन की चिकित्सकीय लापरवाही एवं उदासीनता पृथम दृष्टया प्रतीत होने से जांच समिति द्वारा देवांता अस्पताल का पंजीयन अग्रिम आदेश तक निरस्त किये जाने की अनुसंशा की गई है तथा यह भी निर्देशित किया गया कि अनाधिकृत चिकित्सकों जिनके पास वैध डिग्री/प्रमाण पत्र नहीं है, उनके द्वारा इलाज न किया जाय अन्यथा जिला प्रशासन द्वारा आगे भी इसी प्रकार कार्यवाही की जारी रहेगी।

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