शहडोल के गोहपारू में भू माफिया के सामने नतमस्तक प्रशासनिक अमला @ एक भूखंड के 155 प्लाट काटे,लगातार हुई रजिस्ट्री,नामांतरण

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अवैध प्लाटिंग की बिसात पर  वजीर, प्यादे की एक ही चाल  

भू माफियाओं की पहरेदारी करने पर जुटी नौकरशाही, जमीनों के हो रहे टुकड़े

प्रदेश भर में माफियाओं की कमर तोड़ने सरकारों ने चाहे जितने संकल्प जताए हों लेकिन सच यह है कि शहडोल जिले के भू माफियाओं पर कभी कोई आंच नहीं आई। कारण यह कि मोटी गड्डियों के आदी प्रशासन के आला अफसरान हमेशा से इनके हिमायती बने रहे।  कार्रवाइयों का कोई अमल इन पर नहीं हुआ, बल्कि अफसरों ने हमेशा ही भू माफि याओं की पहरेदारी की। कलेक्टर आते-जाते रहे लेकिन हालात नहीं बदले।
शहडोल। मुख्यालय के समीप ग्रामीण अंचलों की कृषि प्रयोजन की भूमियां टुकड़े टुकड़े कट रहीं हैं और अवैध प्लाटिंग की भेंट चढ़ रहीं हैं। समीपी कोटमा, कल्याणपुर, गोरतरा, चांपा, पोंगरी, जमुई आदि पंचायतों में जमीनों का हाल बे हाल है। कलेक्टर कोई भी रहा हो लेकिन इस मामले में सबकी कार्यशैली लगभग एक जैसी ही रही है। पटवारी से लेकर कलेक्टर तक, गांव के दलाल से लेकर उपपंजीयक तक, सब एक धागे में गुंथे नजर आते हैं। यही नहीं, अगर नेशनल हाइवे के किनारे स्थित जमीनों की गहन छान बीन की जाए तो कितने ही फर्जी मुआवजों के मामले सामने आ जाएंगे जिनमें लाखों रुपए का वारान्यारा हुआ। वर्तमान कलेक्टर से कुछ उम्मीदें थीं, लेकिन आशाओं में पानी तब फिर जाता है जब ज्ञात होता है कि आका हुजूर खुद भी ग्वालियर के एक भूमि घोटाले के आरोपी हैं। उन दिनो आका ग्वालियर के सीईओ हुआ करते थे।
राजमार्ग पर भूमि के 155 टुकड़े
जिला मुख्यालय से कुछ किमी दूर गोहपारू के समीप रीवा अमरकंटक राजमार्ग पर स्थित एक कृषि भूमि के 155 टुकड़े हो गए। इस मार्ग से अफसरों का आना-जाना होता है। लेकिन इस पर न तो राजस्व अमले को कोई एतराज हुआ न उप रजिस्टार कार्यालय ने कोई आपत्ति की। किसी ने भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि कृषि प्रयोजन भूमि के इतने टुकड़े किस आधार पर हो गए। क्या इस भूमि का कहीं कोई डायवर्सन हुआ या एनओसी ली गई। ग्रामपंचायत ने कोई हस्तक्षेप किया ?, जो रजिस्ट्री कराई जा रही है क्या वह खेती के उपयोग के लिए की जा रही है? उपपंजीयक कार्यालय भ्रष्टाचार में इतना अंधा हो चुका है कि वह कोई भी जरूरी प्रक्रिया व जरूरी दस्तावेज देखना ही नहीं चाह रहा है। यही हाल तहसीलदार व एसडीएम का भी है। तहसीलदार, एसडीएम सरेआम सारा खेल सड़क किनारे देख रहे हैं फिर भी वे टाउन एण्ड कंट्री प्लान को दोषी ठहरा रहे हैं।
कोटमा में पिटा था पटवारी
शहडोल मुख्यालय से सटी कोटमा ग्रामपंचायत में इस तरह भूमि विक्री और अवैध प्लाटिंग का मामला इतना तूल पकड़ गया था कि एक ग्रामीण की मौत हो गई थी। इससे ग्रामीण आक्रोशित हो उठे और उन्होने तत्कालीन पटवारी की अफसरों के सामने ही जमकर पिटाई कर दी थी। अफसर असहाय बने रहे और केवल बीच बचाव करने का प्रयास करते रहे। इस मामले में पटवारी ने एक खुलासा अवश्य ऐसा किया था कि बड़े अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध बन गई थी। उसने सबके सामने खुलेेतौर पर यह बता दिया था कि अवैध प्लाटिंग जब शुरू हुई तभी उसने तहसीलदार और एसडीएम को इस बारे में सूचित कर उनका ध्यान आकृष्ट कराया था। लेकिन अधिकारियों ने कोई नोटिस नहीं ली।
पोंगरी में भी हुई प्लाटिंग
मेडिकल कॉलेज बनने के बाद भले ही स्थानीय लोगों को लाभ नाम-मात्र का मिला हो, लेकिन भू-माफियाओं ने जमकर चांदी काटी है, चांपा से लेकर पोंगरी तक में भू-माफिया ने कृषि भूमि के खण्ड-खण्ड कर दिये, पटवारियों ने मामला प्रमाणित कर कलेक्टर कार्यालय में प्रतिवेदन जमा कर दिया, इसके अलावा जिला मुख्यालय में कई शासकीय भू-खण्ड भी खुर्द-बुर्द हो गये, इस पूरे खेल में राजस्व विभाग में बैठे जिम्मेदारों ने खुलकर लाभ लिया है।  शिकायतों के बाद सुनवाई के लाले पड़ रहे हैं। अगर जिला प्रशासन इस मामले में सख्त होता तो माफियाओं की इतनी हिम्मत कभी न पड़ती।
एक जमीन कई बार बिक रही
गोरतरा का हाल यह है कि यहां भी जमीनेां को हथियाने और उस पर प्लाटिंग करने का जमकर खेल चल रहा है। यहां तो एक जमीन को कई बार बेचे जाने का मामला भी प्रकाश में आ चुका है। कब्जे की जमीनों पर नया कब्जा दर्शाया जा रहा है। पटवारी रिकार्डों में हेर फेर कर कहीं की जमीन कहीं दर्शा रहे हैं। तालाब के घाट, श्मशान भूमि और आम रास्ते गायब होते जा रहे हैं। हर जगह माफिया अपनी जेसीबी मशीन लिए खड़ा नजर आता है और गांव वालों को गालियां देकर उन्हे डरा धमका रहा है। पटवारी मोटी रकम डकार कर शहडोल स्थित अपने महलनुमा बंंगले में आराम कर रहा है। यही स्थिति आज पूरे जिले में है।

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