विराटेश्वरी अस्पताल में अग्रिशमन,PCB, लिफ्ट सहित कई NOC नहीं, फिर भी कार्यवाही की जद से बाहर अस्पताल..!!

शहडोल। भोपाल का कोड़ा चलने के बाद जब स्थानीय स्तर की टीम ने निजी अस्पतालों की गहन जांच पड़ताल की तो यह सच्चाई उजागर हुई कि अधिकांश निजी अस्पताल बिना अग्रिशमन एनओसी के संचालित किये जा रहे थे। ऐसा अवसर उन्हे कैसे मिल गया यह समझा ही जा सकता है। माना जाता है कि लम्बे अरसे से अस्पताल संचालक संबंधित अधिकारियों को खिला पिला कर अपना काम निकाल रहे थे। जिसका जांच ने अचानक पटाक्षेप कर दिया है। अग्रिशमन सुविधा के बिना अस्पताल का संचालन किया जाना एक गंभीर खतरे की बात है। यह अस्पताल मानक को दरकिनार कर मरीजों का इलाज कर रहे थे, अधिकारियों की जानकारी के बावजूद यह सब हो रहा था। अग्निशमन विभाग की माने तो बिना एनओसी के कोई भी अस्पताल संचालित नहीं हो सक ता है। लेकिन संभागीय मुख्यालय में इसकी खुलेआम अवहेलना हो रही थी। कुछ अस्पताल संचालकों ने तो बीते माहों में और कुछ ने इससे पहले अनुमति ले ली थी।
विराटेश्वर पर उठ रहे सवाल
संभागीय मुख्यालय में प्रवेश करते ही विराटेश्वर अस्पताल संचालित किया जा रहा है जहां अन्य खामियों के साथ गंदे पानी का निपटान ही समस्या बना हुआ है। विराटेश्वर निजी चिकित्सालय से निकलने वाला गंदा पानी नाली में बहाया जा रहा है। अस्पताल में इस पानी को शोधित करने के लिए एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) होना चाहिए, लेकिन अब तक अस्पताल में यह नहीं है। यह हाल तब है, जबकि एनजीटी की अनुश्रवण समिति सभी अस्पतालों को ईटीपी और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाने का निर्देश पूर्व में दे चुकी है। कचरा निस्तारण के लिए अलग-अलग चार बाल्टी व ईटीपी प्लांट लगाने को कहा है, संभवत: चिकित्सालय बिना प्लांट के ही संचालित हो रहा है।
बगैर एनओसी थे संचालित
अस्पताल या क्लिनिक का लाइसेंस जरूरी है। साथ ही क्लिनिक में इलाज करने के लिए डॉक्टर्स के नाम, पंजीकरण संख्या, उपलब्ध इलाज तथा मरीजों से ली जाने वाली फीस आदि को बोर्ड पर डिस्पले करना अनिवार्य है। क्लिनिक संचालित करने के लिए पंजीकरण अनिवार्य है। इसमें न्यूनतम मानकों के अनुसार इंफ्रास्ट्रक्चर, कर्मचारी, उपकरण, दवाइयां तथा सहायक सेवाएं और रिकॉर्ड नहीं रखने वाले स्वास्थ्य संस्थानों का पंजीकरण नहीं किया जाना है। मापदंड के तहत क्लिनिक में मरीजों, उनके परिजन तथा स्टाफ आदि को संक्रमण से मुक्ति के लिए बॉयोमेडिकल वेस्ट का प्रॉपर निष्पादन होना जरूरी है। अस्पताल व क्लिनिक संचालन के लिए सीएमएचओ कार्यालय से लाइसेंस, बॉयोमेडिकल वेस्ट का अनापत्ति प्रमाण-पत्र, अग्निशमन सुरक्षा प्रमाण-पत्र और प्रदूषण विभाग से सटिर्फिकेट लेना होता है। बीते दिनों हुई कार्यवाही से यह स्पष्ट होता है कि बगैर एनओसी खुलेआम अवैध तरीके से वर्षाे से संचालित हो रहे थे।
एनओसी के यह है मानक
दमकल अफसरों के अनुसार भवन का नक्शा पास होना चाहिए। निर्माण से पहले ऑनलाइन आवेदन कर विभाग की प्रोविजनल एनओसी ली जानी चाहिए। भवन तैयार होने के बाद व संचालन से पहले फाइनल एनओसी दी जाती है। क्षेत्रफल के हिसाब से छत पर 10 हजार लीटर का टेरिस टैंक, उस पर 900 एलपीएम का पंप, फायर इंस्टीग्यूजर, प्रत्येक फ्लोरपर हौजरील, मैनुअल फायर अलार्म सिस्टम, धुआं निकालने के लिए एग्जॉस्ट फैन, भवन में न्यूनतम दो जीने अनिवार्य हैं। अस्पताल में फायर उपकरण लगे होने चाहिए, स्मोक डिटेक्टर (फायर अलार्म) पानी के लिए टू वे प्वाइंट, रैंप, 450 एलपीएम लगा होना चाहिए। 200 स्क्वायर फीट एरिया के अस्पताल में पानी का टैंक व स्प्रिंकलर लगा होना चाहिए। अस्पताल तक फायर वाहन पहुंचाने की जगह होनी चाहिए। अस्पताल में कम से कम दो गेट होने चाहिए।
इन मुद्दों की भी जांच जरूरी
अस्पतालों की आर्हता के लिए विशेषज्ञ डाक्टरों की पूर्णकालिक सेवाएं और प्रशिक्षित पैरामेडिकल स्टाफ का होना भी अनिवार्य है। यहां यह भी जांच का विषय है कि पूर्णकालिक विशेषज्ञ कहां और कितने हैं। जितने रोगों के उपचार का हवाला इन अस्पतालों मेेंं दिया जाता है उससे संबंधित कितने डाक्टर मौजूद हैं। इन अस्पतालों में कार्यरत पैरामेडिकल स्टाफ भी अकुशल और अप्रशिक्षित श्रेणी का है जो कि रोगियों के जीवन से खिलवाड़ करने के समान है। अस्पतालों का अधिकांश काम काज इन्ही के भरोसे चल रहा है।
समिति भी होनी चाहिए
निजी अस्पतालों में महिला कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए लैंगिक अपराधों की रोकथाम करने वाली एक समिति भी अनिवार्यत: होनी चाहिए। लेकिन किसी भी अस्पताल में यह समिति नहीं है। इस मामले में भी अस्पताल संचालकों की खिंचाई की जानी चाहिए। जो महिला स्टाफ यहां कार्यरत है खासतौर पर रात्रिकाल सेवा के लिए वह सदैव स्वयं को असुरक्षित मानता है। निजी अस्पतालों को समिति के गठन की प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए।