“नाबालिग हाथों में चाकू, चौपाटी पर खून… कब जागेगा सिस्टम? अपराधी बनते बचपन को कौन रोकेगा?”

“नाबालिग हाथों में चाकू, चौपाटी पर खून… कब जागेगा सिस्टम? अपराधी बनते बचपन को कौन रोकेगा?”
कटनी की चौपाटी में हुआ यह हत्याकांड केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि पूरे समाज और सिस्टम के लिए खतरे की घंटी है। अब वक्त है पुलिस अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करे, समाज आत्ममंथन करे और हर परिवार अपने बच्चों से एक संवाद शुरू करे,क्योंकि जो आज ‘रील’ है, वही कल ‘रिपोर्ट’ बन सकता है।
कटनी। शहर की सबसे व्यस्त और चर्चित जगह चौपाटी पर रविवार-सोमवार की दरम्यानी रात जो खौफनाक मंजर सामने आया, उसने न सिर्फ पुलिस-प्रशासन को बल्कि पूरे समाज को झकझोर दिया है। मामूली विवाद ने हिंसक मोड़ ले लिया और तीन युवकों पर जानलेवा हमला हुआ। रोशन सिंह (23) और उत्कर्ष दुबे (22) की मौत हो गई, जबकि विनेश (20) जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहा है। यह घटना महज़ चाकू के हमले की नहीं, बल्कि उस सामाजिक और सिस्टम विफलता की कहानी है जिसमें नाबालिगों को गैंग, रील और वर्चस्व की लड़ाई में धकेला जा रहा है। शहर को यह आत्मविश्लेषण करने की जरूरत है कि क्या हमारा समाज, हमारी शिक्षा प्रणाली और हमारा पुलिस-प्रशासन नाबालिगों को अपराध से दूर रखने में असफल हो रहा है? यह सिर्फ एक हत्या नहीं, एक सामाजिक तंत्र की विफलता भी है। और सबसे बड़ी बात—यह घटना कोतवाली थाने से कुछ ही कदमों की दूरी पर हुई, जहाँ पुलिस की गश्त और निगरानी सबसे ज्यादा मानी जाती है। फिर भी तीन नाबालिग बालकों ने बेखौफ होकर इस दुस्साहसिक वारदात को अंजाम दे दिया। ये वही ‘विधि विरुद्ध आपचारी बालक’ हैं, जिनके सोशल मीडिया अकाउंट्स रीलों, हथियारों और ‘गैंगस्टर’ बनने के झूठे दिखावे से भरे पड़े हैं।
गैंग संस्कृति और रील क्रांति-अपराध की नई पाठशाला
नाबालिगों के हाथ में चाकू आना, रीलों में दिखावे और ‘भौकाल’ से वर्चस्व की लड़ाई को जन्म देना, यह इशारा करता है कि अपराध अब उम्र नहीं देखता। यह केवल पुलिस की नहीं, पूरे समाज की विफलता है। बच्चों को संस्कार और शिक्षा देने वाले हाथ, अब मोबाइल और सोशल मीडिया की गिरफ्त में आकर हिंसा का रास्ता अपना रहे हैं। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए तीनों नाबालिग आरोपियों को पकड़ा है। लेकिन सवाल इससे कहीं बड़ा है—क्या हम केवल अपराधियों को पकड़कर अपराध रोक सकते हैं? या उस सोच और माहौल को बदलना होगा, जो इन मासूमों को ‘गैंगस्टर’ बनने की राह पर धकेल रहा है?
क्या पीछे कोई बड़ी गैंग तो नहीं?
इस पूरे घटनाक्रम में एक और चिंताजनक पहलू सामने आता है, जो अब पुलिस और समाज—दोनों के लिए सोचने और जांचने का विषय है। क्या इन नाबालिगों के पीछे कोई संगठित आपराधिक गिरोह तो सक्रिय नहीं है, जो इन बच्चों को रील, पैसा और ‘भौकाल’ के झूठे सपने दिखाकर अपराध के दलदल में धकेल रहा है? जिस तरह से इन विधि विरुद्ध आपचारी बालकों के सोशल मीडिया अकाउंट पर हथियारों का प्रदर्शन, गैंगस्टर स्टाइल और धमकाने वाले संदेश सामने आ रहे हैं, उससे यह अंदेशा और मजबूत होता है कि यह कोई अकेली या स्वतःस्फूर्त घटना नहीं है। संभव है कि शहर में कोई बड़ी गैंग बच्चों को मोहरा बनाकर अपनी आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दिला रही हो क्योंकि नाबालिग कानून की पकड़ से काफी हद तक बाहर होते हैं। यह सबसे बड़ा और विचारणीय बिंदु है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और जो गहन जांच का विषय भी है।
चौपाटी ही नहीं, शहर की हर गली में डर है
इस घटना ने लोगों के मन में डर बैठा दिया है। जहां पहले रौनक थी, आज वहां सन्नाटा है। चौपाटी जैसी सार्वजनिक जगह पर भी लोग अब सशंकित होकर जाने लगे हैं। इस घटना ने पुलिस की गश्त और निगरानी व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। चौपाटी जैसे क्षेत्र में, जो कि थाने से चंद कदम की दूरी पर है, यदि चाकूबाज़ी जैसी घटनाएं हो रही हैं, तो यह निश्चित रूप से गश्त की रणनीति और सक्रियता की समीक्षा का समय है। पुलिस को चाहिए कि संवेदनशील क्षेत्रों में रात्रिकालीन गश्त को और अधिक सघन करे, CCTV निगरानी को बढ़ाए, और सोशल मीडिया पर अपराधी प्रवृत्ति वाले युवाओं की निगरानी को प्राथमिकता दे।
यह केवल पुलिस का मामला नहीं है। स्कूल, परिवार, मोहल्ला और सोशल स्पेस—हर स्तर पर हमें यह पूछना होगा कि बच्चे चाकू तक कैसे पहुंचते हैं? उन्हें यह भ्रम कौन दे रहा है कि रील और गैंगस्टर लाइफ से ‘इज्जत’ मिलती है?
यदि समय रहते इन सवालों पर जवाब नहीं ढूंढे, तो अगली बार यह खून किसी और के घर का दीपक बुझा सकता है।