सुधीर यादव (9407070722) 

HEH प्रतिनिधि। कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे देशभर में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की स्मृति में आयोजित एक प्रमुख हिन्दू पर्व है। इसे भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को, रोहिणी नक्षत्र के समय मनाया जाता है। मान्यता है कि द्वापर युग में इसी दिन भगवान विष्णु ने आठवें अवतार के रूप में मथुरा में देवकी और वसुदेव के घर जन्म लिया था, ताकि अत्याचारी राजा कंस का अंत कर धर्म की पुनर्स्थापना हो सके।

धार्मिक महत्व
कृष्ण जन्माष्टमी केवल जन्मोत्सव ही नहीं, बल्कि धर्म, सत्य और न्याय की विजय का प्रतीक है। यह पर्व हमें संदेश देता है कि जब-जब अन्याय और अधर्म बढ़ेगा, तब-तब ईश्वर किसी न किसी रूप में अवतार लेकर धर्म की रक्षा करेंगे। श्रीकृष्ण के जीवन में प्रेम, करुणा, नीति और कूटनीति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। वे गीता के माध्यम से कर्मयोग, भक्ति और ज्ञान का संदेश देते हैं।

मनाने की परंपराएं
इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है, भजन-कीर्तन होते हैं। मध्यरात्रि में जन्म का उत्सव मनाते हुए शंख, घंटी और जयकारों से वातावरण गूंज उठता है। कई जगहों पर माखन-हंडी और दही-हंडी प्रतियोगिताएं होती हैं, जो श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की माखन चोरी की लीलाओं को दर्शाती हैं। विशेषकर महाराष्ट्र में दही-हंडी की धूम रहती है, जहां युवा टोली ऊंचे मटके तक पहुंचने के लिए मानव पिरामिड बनाती है।

आध्यात्मिक संदेश
कृष्ण जन्माष्टमी यह प्रेरणा देती है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयां आएं, धैर्य, बुद्धि और सही कर्म से उनका सामना किया जा सकता है। श्रीकृष्ण का जीवन हमें सिखाता है कि प्रेम और कर्तव्य का पालन सर्वोपरि है।

इस प्रकार, कृष्ण जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, आस्था और जीवन दर्शन का जीवंत प्रतीक है, जो हर वर्ष भक्ति, आनंद और एकता का संदेश लेकर आता है।

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