शहडोल में भू माफिया का जाल,उप-पंजीयक कुशवाहा और विद्यासागर चौधरी बने सूत्रधार, कलेक्टर व एसपी से कड़ी कार्रवाई की मांग

कैसे बुना गया खेल
शिकायत के अनुसार पीड़ित पक्ष ने अपनी जमीन (खसरा नंबर 875/1/1, 894/1/1/1, 575/1, 577/1, 894/1/1/2, 875/1/2, 415/1/1, 333/2, 894/1/1/4, 300/4, 331/1 ग्राम कंचनपुर) के लिए विद्यासागर चौधरी को मुख्तयार आम बनाया था। लेकिन उसके कार्यों से असंतुष्ट होकर 10 व 11 फरवरी 2025 को पावर ऑफ अटॉर्नी निरस्त कर दी गई। निरस्तीकरण की प्रति बाकायदा उप-पंजीयक सोहागपुर और कलेक्टर कार्यालय को सौंपी गई थी।
इसके बावजूद विद्यासागर चौधरी ने उप-पंजीयक कुशवाहा की मिलीभगत से कई फर्जी विक्रय-पत्र दर्ज करा दिए और खरीदारों से भारी रकम वसूल ली। साफ है कि बिना रजिस्टार की संलिप्तता के यह खेल संभव ही नहीं था।
दूसरा मामला भी जुड़ा लोधी के भूखंड से लेकर कारोबारी तक ठगी
यह पहला मामला नहीं है। हाल ही में तहसील क्षेत्र में ही लोधी नामक व्यक्ति की भूमि को लेकर भी विद्यासागर चौधरी ने एक पांडे नामक युवक के साथ मिलकर धांधली की थी। इस सौदे में जिले के प्रतिष्ठित कारोबारी शिवकुमार पटेल तक को धोखे में रखकर फर्जी सौदेबाजी की गई थी। लगातार हो रहे इन घोटालों ने साफ कर दिया है कि यह कोई साधारण ठगी नहीं, बल्कि संगठित जमीन माफियाओं और दलालों का गठजोड़ है, जिनके सरगना विद्यासागर चौधरी और उप-पंजीयक कुशवाहा हैं।
पीड़ितों की फरियाद कलेक्टर और एसपी से जांच की मांग
जमीन मालिकों गोरेलाल वर्मन, किरण वर्मन, तुलसा वर्मन, कीर्ति वर्मन, भीमसेन वर्मन और सरोज वर्मन ने संयुक्त रूप से कलेक्टर डॉ. केदार सिंह और पुलिस अधीक्षक रामजी श्रीवास्तव से तत्काल एफआईआर दर्ज कर कठोर कार्रवाई की मांग की है। फरियादियों का कहना है कि जब निरस्त पावर ऑफ अटॉर्नी को अमान्य मान लिया गया था, तो भी रजिस्ट्री कैसे हो गई? क्या बिना आर्थिक लेन-देन के उप-पंजीयक की मेज से यह संभव था?
प्रशासनिक साख पर सवाल
यह मामला केवल एक परिवार की जमीन का नहीं है, बल्कि जिले में प्रशासन और रजिस्ट्री तंत्र की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल है। यदि तुरंत कार्रवाई नहीं हुई तो यह भ्रष्टाचार की जड़ें और गहरी कर देगा और प्रदेश सरकार की साख पर सीधा धब्बा लगेगा। अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन जमीन माफियाओं और भ्रष्ट अफसरों पर शिकंजा कसता है या फिर इस काले खेल को यूं ही बढ़ने देता है।