दक्षिण-पूर्व मध्य रेलवे के लोको पायलट चला रहे 12 घंटे से अधिक लोकोमोटिव

इंजन के केबिन के 55 डिग्री तापमान में बीमार हो रहे है पायलट, नित्य क्रिया
के लिए भी करना पड़ता है इन्तजार
शहडोल। शहडोल रेलवे स्टेशन में इस समय लगभग 350 लोकोमोटिव पायलट कार्य कर रहा है और ये सभी अपने कार्यकाल अधिकांश समय लोकोमोटिव में बिताते है। कई बार ट्रेन लेकर निकले ट्रेन ड्राइवर को खुद भी पता नहीं होता है कि उसकी वापसी कब होगी जबकि पायलेट्स के लिए न्यूनतम 9 घंटे का ड्यूटी ऑवर तय कर दिया गया है फिर भी रेल विभाग का इसे कुप्रबंधन कहे या अव्यवस्था इस समय दक्षिण-पूर्व मध्य रेलवे के लोको पायलेट्स इस समय 9 घंटे के बजाय 12 से 18 घंटे तक की ड्यूटी का कर रहे है। जिससे उनके स्वास्थ्य और मानसिक स्तर पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
55 डिग्री तक हो जाता है इंजन का तापमान
शहडोल रेलवे स्टेशन में कार्यरत लोको पायलट ने बताया कि ट्रेन चलाने का कार्य हमे अच्छा लगता है और हमें ख़ुशी होती है कि हम यात्रियों को सफलता पूर्वक उनकी मंजिल तक पंहुचा रहे है। लेकिन गर्मी के मौसम में इंजन का तापमान 55 डिग्री तक पहुंच जाता है। जिसके कारण लू के थपेड़ो के बीच हमे ट्रेन चलनी पड़ती है वही ठण्ड के मौसम में शीत लहर का प्रकोप झेलना पड़ता है। जबकि रेल मंत्रालय द्वारा सभी जी 9 लोकोमोटिव के अंदर एयर कंडीशन लगाने का आदेश भी दिया था ,लेकिन आज तक इस आदेश पर अमल नहीं हुआ है जिसके कारण हम सभी लोको पायलट भीषण गर्मी में ट्रेन चलाने को विवश है।
बीमार हो रहे पायलट
तेज गर्मी के कारण लोको पायलेट्स को अनेक प्रकार की बीमारिया भी झेलने पड़ रही है। अधिकांश रेल ड्राइवर को हाई ब्लड प्रेशर, हृदय की बीमारी, लगातार खड़े रहने के कारन पैरो में दर्द, पाईल्स,एवं इंजिन के साउंड प्रूफ न होने के कारण के तेज़ आवाज के हॉर्न के कारण बहरापन की शिकायत भी देखने को मिल रही है। ट्रेन में किसी भी प्रकार के शौचालय के न होने के कारण लम्बे समय तक नित्य क्रियाओं के लिए इंतजार करना पड़ता है, जिसका सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। लम्बे समय तक ट्रेन चलाने वाले रेल ड्राइवर अपने परिवार से भी दूर रहते है जिसके कारण उन्हें मानसिक अवसाद से भी गुजरना पड़ता है। इंजिन में पेयजल की कोई सुविधा नहीं होती जिसके लिए लोकोमोटिव पायलट को पानी के लिए घंटो इन्तजार करना पड़ता है।
कम कर दिए भत्ते
रेल मंत्रालय की आरएसी 1980 कमेटी ने सभी रनिंग स्टाफ को माइलेज भत्ते दिए जाने की अनुशंशा की थी। जिसमे प्रत्येक किलोमीटर के लिए 8 रूपये की दर से भुगतान किया जाना सुनिश्चित किया गया था, लेकिन वर्तमान में केवल 5 रूपये की दर से ही भत्ते मिल रहे है जो की मेहनत के लिहाज से बहुत काम है और रनिंग स्टाफ के उत्साह को काम करने वाला है। पूर्व में दिए जाने रात्रि कालीन भत्ता भी रेल मंत्रालय द्वारा बंद कर दिया गया है। जबकि लोको पायलट आपात काल में 20 से 36 घंटे तक कार्य करते है। प्रत्येक रेल के इंजन में लोको पायलट और सहायक लोको पायलट गाडिय़ों का सञ्चालन करते है, लेकिन रिस्क एलाउंस केवल लोको पायलट को ही प्राप्त होता है जबकि सहायक लोको पायलट को यह भत्ता नहीं दिए जाता जबकि दोनों पायलट समन रूप से ट्रेनों का संचालन करते है।