सरफा नदी में कब्जा जमा छलनी कर रहा माफिया

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नमामि गंगे अभियान को मिल सकती है कड़ी चुनौती

शहडोल। जब संभाग के प्राकृतिक जलाशय नदी, नालों जैसे जल स्त्रोत माफियाओं के चंगुल में फंसे हैं तब ऐसे में 5 जून से शुरू होने वाला कमिश्नर का नमामि गंगे अभियान कैसे सफल होगा यह अहम सवाल बार बार दिमाग में कौंध रहा है। अभियान में तो नदी नालों का संरक्षण, साफ सफाई और उनके पुनर्जीवन का संकल्प लिया गया है। क्या कमिश्नर माफियाओं से पंगा लेने के मूड में हैं अथवा अभियान का कागजी कोरम पूरा कर छुट्टी पा लेंगे। सोन जैसी बड़ी नदियों की तो बात ही छोड़ दें यहां सरफा जैसी छोटी नदियां भी माफियाओं की मशीनों से छलनी हो रहीं हैं। बतातेे हैं कि इस नदी मेें किसी बृजेश ने कब्जा कर रखा है और कंचनपुर के बेसहाई घाट से जमकर रेत की निकासी करा रहा है। इस इलाके में इसकी दादागिरी चल रही है। खनिज विभाग इसके इस अवैध कारोबार की चौकीदारी कर रहा है।


यहां हो रही रेेत सप्लाई
बृजेश की रेत कंचनपुर, लालपुर, धुरवार, हर्री आदि गांवो मेें पहुंच रही है। हालांकि यहां की रेत सोन जैसी नहीं बल्कि काले रंग की है फिर भी उसे पूर्णतया गुणवत्तापूर्ण बताकर मंहगे दामों कारोबार किया जा रहा है। इस माफिया के पास अभी केवल चार ट्रैक्टर ही हैं। लेकिन जल्द ही हाइवा और पोकलेन की व्यवस्था करने की फिराक में है। बेसहाई घाट में दिन रात उत्खनन करा रहा है लेकिन न तो खनिज विभाग धरपकड़ कर रहा है और न कभी पुलिस पहुंचती है। माना जाता है कि पुलिस से भी इसने आर्थिक गठजोड़ बना रखा है।
मजदूरों की जान जोखिम में
चूंकि अभी इसके पास पोकलेन, जेसीबी जैसी मशीनेे नहीं हैं इसलिए इसने ग्रामीण मजदूरों को उत्खनन में लगा रखा है। पानी से रेत निकालने के कारण मजदूरों की जान को निरंतर खतरा बना रहता है। लेकिन गरीब ग्रामीण पैसे की लालच में पानी में घुसकर रेत निकालते हैं और बृजेश नामक माफिया के ट्रैक्टर भर रहे हैं। इस काम में उधिया के किसी ठाकुर को भी संलग्र बताया गया है लेकिन अधिकतर काम बृजेश का ही चल रहा है। बृजेश ने कुछ अपराधियों को भी पाल रखा है जो लोगों को डराते धमकाते रहते हैं।
सरफा का कैसे होगा नमामि गंगे?
5 जून से अगर कमिश्नर का अभियान नमामि गंगे चला और सरफा को चयनित किया गया तो फिर या तो अभियान चलेगा या फिर बृजेश ही रहेगा। उस समय स्थिति क्या निर्मित होती है यह देखने योग्य होगी। वास्तव में नमामि गंगे अभियान नदियों के पुनर्जीवन का अभियान है और वर्षों बाद नदियों की सुध लेने वाला एक सराहनीय अभियान है लेकिन माफिया के अड़ंगे के कारण इस अभियान की सफलता में संदेह ही उत्पन्न होता है। प्र्रशासनिक दृढ़ता यहां काफी काम आएगी।

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