आराध्य देव के रूप में महाशिव की सर्वत्र पूजा

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अभव्यानामस्मिन्वरद रमणीयामरमणीम् ।

विहन्तुं व्याक्रोशीं विदधत इहैके जड़धिया: ।।

अर्थात् भगवान शिव सृष्टि के निर्माता, रक्षा करने वाले तथा प्रलय करने वाले हैं। वे तीनों गुणों-सत्, रज् और तम् से परे हैं। तीनों शक्तियों- ब्रह्मा, विष्णु और महेश में व्याप्त हैं। संपूर्ण भारतवर्ष में यह मान्यता है, कि त्याग, तप और करूणा के प्रतिरूप भगवान शिव लोककल्याण के अधिष्ठाता देवता हैं। ये देवाधिदेव हैं, क्योंकि ये सर्वशक्ति संपन्न होकर भी अहंकार और एश्वर्य की प्रवृत्तियों से दूर हैं। भारतीय जनमानस में यह मान्यता है कि शिव सृजन और संहार के देवता हैं। भारतवर्ष में आराध्य देव के रूप में महाशिव की सर्वत्र पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार सृष्टि की रचना में तीन गुण विद्यमान हैं। इन तीन गुणों के तीन अधिष्ठाता देवता हैं, ब्रह्मा, विष्णु और शिव । ब्रह्मा सतोगुण से सृष्टि की रचना करते हैं। विष्णु रजोगुण से उसका पालन करते हैं और शिव तमोगुण से सृष्टि का संहार करते हैं। इस प्रकार माना जाता है, कि शिव तमोगुण के अधिष्ठाता देवता हैं, किन्तु यह मान्यता उचित नहीं है। वास्तव में शिव तमोगुण के अधिष्ठाता नहीं बल्कि संहारक और विनाशक देवता हैं। यदि शिव तमोगुण के अधिष्ठाता होते तो उन्हें शिव अर्थात् कल्याणकारी, पापकटेश्वर और मुक्तेश्वर जैसे नामों से संबोधित नहीं किया जाता।
श्रीमद् भगवत् गीता के अनुसार तमोगुण से अज्ञान, प्रभाद और मोह उत्पन्न होता है। वास्तव में तमोगुण बुरे और अकल्याणकारी गुणों का पर्याय है। यह गुण पापवर्धक और मोक्ष प्राप्ति में बाधक है। शिव तो संपूर्ण जगत का कल्याण करने वाले देवता हैं। शिव का अर्थ ही कल्याणकारी होता है। वास्तव में शिव सृष्टि से तमोगुण का विनाश करने वाले हैं। वे ऐसी शक्तियों का नाश करते हैं, जो जगत के लिए हानिकारक और अकल्याणकारी होती हैं। उन्होंने ऐसी अनेक राक्षसी शक्तियों का विनाश किया है, जो समाज के लिए हानिकारक सिद्ध होने लगी थीं। इसका सर्वोत्तम उदाहरण है, समुद्रमंथन के उपरांत प्राप्त होने वाला विष । भगवान शिव ने समुद्र मंथन के बाद प्राप्त होने वाले हलाहल विष को समाज कल्याण के दृष्टिकोण से स्वयं पी लिया था, ताकि सृष्टि को नष्ट होने से बचाया जा सके। यह घटना इस बात की द्योतक है कि भगवान शिव सृष्टि से बुरे, हानिकारक और अकल्याणकारी गुणों और तत्वों को खत्म करने वाले हैं।
भगवान शिव आशुतोष हैं, अर्थात् शीघ्र प्रसन्न होने वाले हैं। वे जनसामान्य के प्रतीक हैं। न्यूनतम् आवश्यकताओं में निर्वाह करने वाले संग्रह की प्रवृत्ति से मुक्त, दूसरों के लिए सहर्ष सर्वस्व अर्पित करने वाले तथा सर्वदा संसार का कल्याण करने वाले सर्वत्र विद्यमान देवता हैं। शिव इस जगत् में सादा जीवन उच्च विचार का आदर्श हैं। कृषि प्रधान भारतवर्ष की निर्धन जनता के जीवन और कर्म से भगवान शिव के व्यक्तित्व और कृतित्व का अद्भुत साम्य हैं। वृषभ कृषक का सबसे अधिक सहयोग प्राणी है और वही भगवान शिव का भी वाहन है। जिस प्रकार कृषक द्वारा उत्पादित अन्न से सज्जन और दुर्जन सभी का समान रूप से पोषण होता है। उसी प्रकार शिव की कृपा भी सुर-असुर दोनों पर समान रूप से होती है। इस प्रकार शिव सभी के लिए कल्याणकारी और आराध्य देव हैं। भगवान शिव आदि और अंत दोनों हैं। कलयुग में शिव की उपासना और भक्ति श्रेष्ठफलदायक है। शिवपुराण के अनुसार एक बार देवी सती ने भगवान शिव से पूछा कि प्रभु आप परम् पुरुष हैं, सबके स्वामी हैं, रजो, सतो और तमो गुणों से परे हैं। निर्गुण और सगुण हैं। सबके साक्षी, निर्विकार महाप्रभु हैं। आप मुझे इस परम् तत्व का ज्ञान प्रदान कीजिए, जो सुख प्रदान करने वाला है और जिसके द्वारा जीव संसार से अनायास ही उद्धार प्राप्त कर सकता हो, तब भगवान शिव ने कहा कि वह परम् तत्व विज्ञान हैं, जिसके उदय होने पर में ब्रह्म हूँ, ऐसा दृढ़ निश्चय हो जाता है।
भगवान शिव कहते हैं-
भक्तों ज्ञाने न भेदो हि तत्कर्तु: सर्वदा सुखम् ।
विज्ञानं न भवष्येव सति भक्ति विरोधिन: ।।
भक्ताधीन: सदाहं वै तत्प्रभावाद् गृहेष्वपि ।
नीचानां जातिहीनानां यामि देवि न संशय:।।
अर्थात् शिव कहते हैं, शुद्ध बुद्धि और निर्मल मन वाले मनुष्य जैसे भी हैं,सर्वदा मेरे ही स्वरूप हैं। साक्षात् ब्रह्म हैं। वे कहते हैं ब्रह्म विज्ञान की माता मेरी भक्ति है। मेरी भक्ति मोक्ष प्रदान करने वाली है। शिव कहते हैं, भक्ति और ज्ञान में कोई भेद नहीं है। भक्त और ज्ञानी दोनों को ही सदा सुख प्राप्त होता है। भगवान शिव कहते हैं कि मैं सदा भक्त के अधीन रहता हूँ और भक्ति के प्रभाव से बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक भक्त के घर में चला जाता हूँ। इस प्रकार भगवान शिव भक्तवत्सल हैं। उनकी भक्ति सबसे उत्तम् है। उनकी भक्ति ज्ञान और विज्ञान की जननी है तथा मोक्ष प्रदाता है। उनकी भक्ति से ही उत्तम फल की प्राप्ति होती है। सृष्टि में शिवभक्ति के समान सुखदायक दूसरा कोई मार्ग नहीं है। भक्ति के प्रभाव से भगवान शिव सदा भक्त के वश में रहते हैं और भक्तों की वे हमेशा सहायता करते हैं। कलयुग में जहाँ हर तरफ अनाचार और पापाचार फैला हुआ है। ऐसे समय में भी शिवभक्ति उत्तम् फल देने वाले है।
शास्त्रों के अनुसार
स्तवं च: प्रभाते नर: शूलपाणे पठेत् सर्वदा भर्गभावानुरक्त: ।
स फलं, धनं धान्यमित्रं कलमं विचित्रं समासाध मोक्षं प्रयाति ।।
अर्थात् जो लोग सुबह भगवान शिव की भक्ति और उपासना करते हैं, वे
एक कर्तव्यपरायण पुत्र, धन, मित्र, जीवन साथी और फलदायी जीवन पूरा करने के बाद मोक्ष को प्राप्त होते हैं। वास्तव में यह संपूर्ण जगत शिवमय और यह ज्ञान कि संपूर्ण जगत शिवमय है, सदा अनुशीलन करने योग्य है। मनुष्य को यह भलीभाँति समझना चाहिए कि इस सृष्टि में शिव सर्वत्र हैं। ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त जो कुछ भी जगत दिखाई देता है, वह सब शिव ही है। शिव की जब इच्छा होती है, वे इस जगत की रचना करते हैं। वे ही सबको जानते हैं, किन्तु उनको कोई नहीं जानता। वे इस जगत् की रचना करके स्वयं इसके भीतर प्रविष्ठ होकर भी इससे दूर हैं, क्योंकि वे निर्लिप्त और सच्चिदानन्द स्वरूप हैं। जैसे सूर्य का जल में प्रतिबिम्ब दिखाई देता है, किन्तु वास्तव में सूर्य का जल के भीतर प्रवेश होता नहीं है। उसी प्रकार हमें साक्षात् शिव के बारे में समझना चाहिए। वास्तव में शिव ही सब कुछ हैं। उनसे भिन्न सृष्टि में किसी भी वस्तु की सत्ता नहीं है। प्रत्येक जीव भगवान शिव का ही अंश है। परन्तु जीव अविद्या अर्थात् अज्ञान के कारण स्वयं को शिव से भिन्न समझता है। परन्तु अविद्या से मुक्त होने पर वह शिव ही हो जाता है। महाशिवरात्रि सृष्टि के अधिष्ठाता देव भगवान शिव का स्मरणोत्सव है। इस सृष्टि की समस्त मनुष्यताओं के परलौकिक परमात्मा के दिव्य जन्म का दिन है। जब सृष्टि में अज्ञान का अंधकार हुआ तब देवादिदेव भगवान शिव ने अवतरित होकर सृष्टि से अज्ञानता, दुख और अशांति को समाप्त किया था। इस तरह शिव सृष्टि के दुखों को समाप्त करने वाले कल्याणकारी देव हैं। उनकी भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ जीवन मार्ग है, जो व्यक्ति भगवान शिव की भक्ति पूर्ण मनोयोग से करता है उसे साक्षात्कार रूप फल अवश्य प्राप्त होता है। क्योंकि इस सृष्टि के कण-कण में शिव विद्यमान हैं, जिस तरह व्यापक अग्नि तत्व प्रत्येक काष्ठ में विद्यमान होता परन्तु जो उस काष्ठ का मंथन करता है, वही अग्नि को प्रकट करके देख पाता है। उसी तरह जो व्यक्ति हृदय से शिवभक्ति करता है उसे शिव के दर्शन अवश्य प्राप्त होते हैं। क्योंकि केवल शिव ही हैं जो सर्वत्र हैं। शिव ही समस्त जड़-चेतन में विद्यमान होकर जगत् का कल्याण करते हैं।
डॉ. जीवन एस. रजक
राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं कवि

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