संजय गांधी थर्मल पावर प्लांट में बड़ा हादसा – ब्रेकर ब्लास्ट से ठेका श्रमिक गंभीर रूप से झुलसा, प्रबंधन की लापरवाही पर उठे गंभीर सवाल

(अनिल तिवारी)
उमरिया। जिले के बिरसिंहपुर पाली स्थित संजय गांधी थर्मल पावर प्लांट में शुक्रवार की सुबह उस समय अफरा-तफरी मच गई जब प्लांट के अंदर 500 मेगावाट इकाई के 6.6/11 केवी पैनल में अचानक ब्रेकर ब्लास्ट हो गया। इस घटना में ठेका श्रमिक राजेन्द्र वर्मा (आयु 48 वर्ष), निवासी वार्ड क्रमांक 7 बिरसिंहपुर पाली गंभीर रूप से झुलस गए। जानकारी के मुताबिक हादसा सुबह 10 से 11 बजे के बीच हुआ, जब प्लांट असिस्टेंट रविकांत नामदेव द्वारा बिना किसी वरिष्ठ अधिकारी की मौजूदगी और सुरक्षा मानकों की अनदेखी करते हुए ठेका श्रमिक से कार्य कराया जा रहा था।
हादसे की आड़ में छुपाने की कोशिश
प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हादसे के बाद प्लांट परिसर में अफरा-तफरी मच गई और कई श्रमिकों में दहशत का माहौल बन गया। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि हादसे की जानकारी पुलिस या प्रशासन को तुरंत नहीं दी गई। इसके बजाय प्रबंधन ने घटना को दबाने की नीयत से घायल श्रमिक को पहले एमपीईबी अस्पताल ले जाया गया, फिर बिना स्पष्ट कारण बताए शहडोल रेफर किया गया। मगर आधे रास्ते से ही उसे वापस एमपीईबी अस्पताल ले आया गया और मीडिया के सवालों से बचने के लिए दोबारा शहडोल भेजा गया। वर्तमान में घायल श्रमिक का इलाज एक निजी अस्पताल में जारी है।
इस तरह की कार्यशैली ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर प्रबंधन ऐसे गंभीर हादसों को दबाने की कोशिश क्यों करता है? क्या श्रमिकों की जान की कोई कीमत नहीं है?
सुरक्षा मानकों की धज्जियां
ग्रामीणों और श्रमिक संगठनों ने इस घटना पर गहरा आक्रोश जताया है। उनका कहना है कि प्लांट में ठेका श्रमिकों से काम कराने के दौरान सुरक्षा मानकों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैं। बड़े-बड़े अधिकारियों की मौजूदगी न होने के बावजूद उन्हें जोखिम भरे काम सौंप दिए जाते हैं। हेलमेट, सेफ्टी बेल्ट और अन्य जरूरी उपकरणों की कमी पहले से ही बनी रहती है। यही कारण है कि हादसे लगातार होते हैं और कई बार श्रमिक अपनी जान भी गंवा बैठते हैं।
जिम्मेदार अधिकारियों पर सवाल
सबसे अहम सवाल यह है कि इतने बड़े हादसे के बाद भी जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती? प्लांट में पदस्थ उच्च अधिकारियों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे हर कार्य की निगरानी करें और सुरक्षा नियमों का पालन करवाएं। लेकिन बार-बार यह देखा गया है कि जब भी कोई हादसा होता है, उसे दबाने की कोशिश की जाती है।
स्थानीय लोगों और श्रमिकों का कहना है कि प्लांट प्रबंधन और जिम्मेदार अधिकारी हमेशा ऐसे मामलों को छिपाने में लगे रहते हैं। मीडिया को सही जानकारी नहीं दी जाती और घायल श्रमिकों को तुरंत उचित इलाज दिलाने के बजाय बार-बार इधर-उधर रेफर कर मामले को उलझाया जाता है।
प्राथमिक सूचना रिपोर्ट क्यों नहीं?
कानून के मुताबिक किसी भी औद्योगिक दुर्घटना की जानकारी तुरंत पुलिस और प्रशासन को दी जानी चाहिए। लेकिन संजय गांधी थर्मल पावर प्लांट में हुए इस हादसे की सूचना न तो पुलिस को दी गई और न ही किसी प्रकार की एफआईआर दर्ज की गई। यह गंभीर सवाल है कि आखिर श्रमिकों की जान से खिलवाड़ करने वाले जिम्मेदार लोगों के खिलाफ प्राथमिक सूचना रिपोर्ट क्यों दर्ज नहीं होती? क्या बड़े पद और सत्ता के दबाव में यह सब दबा दिया जाता है?
बार-बार हादसे, बार-बार लापरवाही
यह पहला मामला नहीं है जब संजय गांधी थर्मल पावर प्लांट में हादसा हुआ हो। इससे पहले भी कई बार ऐसे हादसे सामने आ चुके हैं, जिनमें ठेका श्रमिक झुलसे या गंभीर रूप से घायल हुए। लेकिन हर बार वही कहानी दोहराई जाती है – हादसा हुआ, घायल को किसी तरह अस्पताल ले जाया गया, फिर मामले को दबा दिया गया। न तो जांच होती है और न ही जिम्मेदारों पर कार्रवाई।
स्थानीय सामाजिक संगठनों का कहना है कि प्लांट प्रबंधन के खिलाफ बार-बार शिकायतें की जाती हैं, लेकिन उन पर ठोस कार्रवाई नहीं होती। इससे साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं सत्ता संरक्षण के चलते यह लापरवाही लगातार जारी है।
श्रमिक संगठनों का विरोध
हादसे के बाद श्रमिक संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि घायल श्रमिक को उचित मुआवजा और उसके परिवार को सहयोग नहीं दिया गया तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन करेंगे। उनका कहना है कि पावर प्लांट से करोड़ों की बिजली उत्पादन हो रही है, लेकिन श्रमिकों की सुरक्षा और जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। यह असहनीय है और अब इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।