प्रेम के पवित्रतम स्वरूप में ही जीवन की सार्थकता निहित है: डॉक्टर जी एस रजक

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भोपाल। इस संसार के जीवन के सुंदरतम स्वरूप की अगर कोई अभिव्यक्ति तो वह प्रेम है प्रेम के पवित्रतम स्वरूप की प्राप्ति में ही जीवन की सार्थकता निहित हैं जिनके हृदय में प्रेम का प्रकाश जगमगा उठता है उनका जीवन आनंद से भर जाता है संसार की रचना और प्रेरणा का सारा तत्व प्रेम ही है प्रेम की प्रेरणा से ही साधारण मनुष्य उच्च से उच्च स्तर होता चला जाता है वास्तव में मानव जीवन का संचालन जिस प्रेरणा के द्वारा होता है वह प्रेरणा ही प्रेम है प्रेम की शक्ति अनंत और गहराई अपरिमित है इससे उन्नत ना हो ना तो कोई संपत्ति है और ना ही कोई सद्गुण जिसने अपने जीवन में प्रेम का रस आज रसास्वादन नहीं किया उसका सारा जीवन व्यर्थ है प्रेम अमूल्य और निस्वार्थ वस्तु है इसी के आधार पर मानव जीवन का विकास हुआ है प्रेम एक दिव्य तत्व है और अगर मनुष्य अर्थ की भावना से मुक्त होकर प्रेम के लिए त्याग बलिदान और आत्मा सर्ग करता है तो निसंदेह इसके परिणाम भी सदैव दिव्य ही मिलते हैं वास्तव में सच्चा प्रेम सिर्फ देना जानता है उसके बदले के लिए कोई आशंका नहीं होती अगर हम किसी से सच्चा प्रेम करते हैं तो उसकी बुराई भी अपनी नहीं लगती किंतु अगर किसी से द्वेष है तो उसकी अच्छाई भी दूर जैसी दिखाई पड़ती है कुछ लोग प्रेम में असफलता का रोना रोते हैं हमने जिस से प्रेम किया उसने बेवफाई कि ऐसे लोग प्रेम की वास्तविकता से बहुत परेशान प्रेम में केवल देना और केवल देना है जहां प्रतिफल के लिए प्रेम किया जाता है वहां प्रेम का लेश मात्र भी अंश नहीं होता वह तो केवल व्यापार है विशुद्ध व्यापार प्रेम आत्मा का विषय है शरीर का नहीं सच्चे और आध्यात्मिक प्रेम में भोग वासना शक्ति मोह पीड़ा दुख सुख आदि विकार कभी नहीं होते यह तो आत्मा की ही तरह अविकारी और पवित्र होता है अहंकारी अभिमानी और स्वार्थी हृदय में कभी भी प्रेम की अनुभूति नहीं हो सकती प्रेम उपासना के लिए हृदय की शुद्धि आवश्यक है पवित्र प्रेम से ओतप्रोत मनुष्य के हृदय में सदैव और हर परिस्थिति में अपने फ्री के लिए निस्वार्थ श्रद्धा और सर्वस्व समर्पण का भाव रहता है जिस प्रकार निर्मल निर्झर की धारा स्वयं भी शीतल होती है और जो उससे संपर्क स्थापित करता है उसको भी शीतलता प्रदान करती है उसी प्रकार प्रेम की पवित्र भावना मनुष्य की आत्मा में अक्षय शांति भर देती है प्रेम ही मनुष्य का मनुष्य का सबसे प्रधान लक्षण है या यूं कहा जाए कि प्रेम ही जीवन है तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी

प्रेम आत्मा का प्रकाश है इस प्रकार से ही लौकिक और पारलौकिक जीवन दीप्तिमान हो उठता है महाकवि कालिदास जब तक एक भावना विहीन व्यक्ति थे तब उन्हें यह भी ज्ञात नहीं था कि वे जिस डाल पर बैठे हैं उसे ही काट रहे हैं किंतु जब विधोतमा के पवित्र प्रेम ने उनकी आत्मा पर दस्तक दी तब कालिदास का संपूर्ण अंत करण जाग उठा और उनके काव्य में सरस्वती को उतरना पड़ा महाकवि तुलसीदास के अंत करण को प्रेम नहीं जागृत कर ईश्वर परायण बनाया था सूरदास की आत्मा को भी चिंतामणि वेश्या के प्रति निश्चल प्रेम नहीं झंकृत किया था प्रेम अपने वास्तविक स्वरूप में अध्यापक की प्रथम और अंतिम सीढ़ी है उस पर चढ़कर ही व्यक्ति निराकार सत्ता पर विश्वास की अनुभूति प्राप्त करता है उसी में अंतर्निहित होकर वह अमृत्व का आनंद उठाता है ऐसा एक भी अध्यात्म वादी व्यक्ति नहीं होगा जिसने अपने जीवन में प्रेम का अभ्यास न किया हो क्यों क्योंकि अगर प्रेम नहीं होगा तो व्यक्ति है कैसे मानेगा कि संसार का अंतिम सख्त पदार्थों में शरीर में संपत्ति में नहीं बल्कि भावनाओं में नहीं था प्रेम का यही भाव जब विस्तृत होने लगता है तो।।।

प्रेम अंत करण की ऐसी उपज है जो शुष्क से शुष्क कठोर से कठोर और दिशा भ्रांत जीवन को सरल सहज और प्रदीप तिमान बना देती है प्रेम से मधुर संसार में कुछ भी नहीं है अविश्वास को विश्वास में और निंदा को प्रशंसा में परिवर्तित कर देने की शक्ति केवल प्रेम में ही है प्रेम देना सिखाता है त्याग सिखाता है समर्पण सिखाता है प्रेम में सर्वस्व समर्पण की भावना ही चेतना का आधार है जिस दुनिया चेतना ना रहेगी उस दिन सृष्टि में 10 के अतिरिक्त कुछ भी शेष ना रहेगा।

प्रेम अलौकिक सुख का सच्चा आधार है प्रेम इंद्री वासनाओं को प्रसंता एवं पूर्ण जीवन में बदल सकता है किंतु शर्त यह है कि प्रेमी का सर्वोच्च लक्ष्य प्रेम में होना ही रहे वास्तव में प्रेम की सृष्टि से प्राण जीवन का आविर्भाव करता है उससे ही मनुष्य के दृष्टिकोण हृदय की विशालता एवं वैचारिक सूक्ष्मता का ज्ञान होता है जिसके हृदय में प्रेम का प्रकाश जगमगाता है वह मनुष्य वास्तविक स्वरूप में मनुष्य होता है जिनके अंतर्मन में निश्चल प्रेम का निडर निर्झर बहता है उन्हें मनुष्य शरीर में देवत्व प्राप्त करने का सौभाग्य मिलता है जो प्रेम करना जानते हैं उन्हें लौकिक जीवन में परमसुख और लौकिक जीवन में मोक्ष की प्राप्ति होती है क्योंकि प्रेम ही मानव जीवन की सर्वोच्च प्रेरणा है ।

 

प्रेम ही मोक्ष है

प्रेम एक क्रांति है
किसी पर सर्वस्व निछावर की अगर रत्ती भर भी कुछ बचाया
तो घटित नहीं होगी
प्रेम मृत्यु है ,अपने दर्प की
जिसके बाद बदल जाता है मन हो जाता है पुनर्जन्म
किसी नए का
जो होता है हमसे
अलग और अपरिचित
प्रेम समर्पण है
सूर्य से किरण का
समुद्र से लहर का
और पुष्प से सुगंध का
जिसके बाद ध्वस्त हो जाता है स्वप्न प्रभुत्व का
प्रेम आत्मा आत्मा का स्वास है हृदय का स्पंदन है
सतत और प्रतिपल है।
प्रेम दर्शन है
ब्रह्मा का परम तत्व है
प्रेम ही जीवन है
प्रेम ही धर्म है
प्रेम ही मोक्ष है
( डॉक्टर जीवन एस रजक)

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