डीआर की शह पर हवा में संचालित लघु वनोपज समिति,कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी स्वयं-भू अध्यक्ष काट रहे चांदी 

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सहकारी समितियों सहित लैम्प्स प्रबंधक की मनमानी को डीआर का संरक्षण 
उत्तर वन मण्डल की दो दर्जन से अधिक समितियों के चुनाव अधर में 
शहडोल। लघु वनोपज के नाम पर जिले में वन विभाग के अधिकारी, सहकारी समितियों के मुखिया और जिला लघु वनोपज संघ के पूर्व अध्यक्ष मिलकर करोड़ों का खेल-खेल रहे हैं, तेन्दुपत्ता से लेकर अन्य कई मदों में शासन से प्रस्ताव बनाकर राशि आहरित तो की जाती है, लेकिन उसका खर्च जमीनी स्तर पर कितना होता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लगभग 28 से 30 समितियों का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी यहां चुनाव नहीं कराये गये, यही नहीं जिला लघु वनोपज के अध्यक्ष की कुर्सी का कार्यकाल भी समाप्त होने के उपरांत अभी तक पूर्व अध्यक्ष कुर्सी पर डटे हुए हैं और चुनाव कराने की प्रक्रिया डीआर के साथ मिलकर कागजों में ही उलझाये हुए हैं, पूरे मामले के पीछे डीएफओ, पूर्व अध्यक्ष व डीआर की तिकड़ी इस उद्देश्य से कार्य कर रही है कि नीचे की समितियां शून्य रहें और शासन से आने वाला बजट इन्हीं तीनों के बीच सिमटा रहे।
2018 में हुआ था चुनाव
वर्ष 2018 के अंतिम माहों में जिला लघु वनोपज समितियों का चुनाव हुआ था, जिले में संचालित 33 समितियों के चुनाव के उपरांत समितियां जिलाध्यक्ष तथा अन्य पदों के लिए आयोजित लोकतांत्रिक पद्धति चयन किया जाता है, वर्तमान में जिले में जितनी समितियां है, उनका कार्यकाल दिसम्बर 2023 में खत्म हो चुका है, सूत्रों पर यकीन करें तो, कार्यकाल खत्म होने से पहले ही सभी समितियों का चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी जिला सहकारिता विभाग के उपपंजीयक की होती है, लेकिन अभी भी लगभग समितियों का चुनाव प्रक्रिया शुरू ही नहीं की गई है। यही वजह है कि पूर्व अध्यक्ष वर्तमान में भी काबिज हैं और 5 सालों के दौरान वन विभाग से लेकर सहकारिता विभाग तक बनी जुगाड़ की चैन इन्हें आपस में बांधे हुए हैं।
आमसभा की बैठक तक नहीं
जिले के उत्तर वनमण्डलाधिकारी के क्षेत्राधिकार में जयसिंहनगर और ब्यौहारी जनपद क्षेत्र की लगभग 33 लघु वनोपज समितियां आती है, नियमित रूप से इन समितियों की हर वर्ष आमसभा आयोजित की जानी चाहिए और आय-व्यय का ब्यौरा बैठक में रखने के साथ ही उसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए, मूल्यांकन का कार्य और उस पर निगरानी उप पंजीयक की होती है, जहां उप पंजीयक कार्यालय सहकारिता विभाग के कर्मचारी डीआर के निर्देशन पर आडिट करते हैं और रिपोर्ट विभाग को सौंपते हैं। जानकारों की माने तो, बीते वर्षाे में आडिट तो दूर लघु वनोपज समितियों की बैठक तक नहीं आहूत की गई, यह अलग बात है कि फाईलों में अधिकारी कागजी घोड़े बराबर दौड़ाते रहे।
पालिका से लेकर लैम्प्स तक कब्जा
जिला लघु वनोपज के अध्यक्ष सुनील मिश्रा अकेले लघु वनोपज के स्वयं-भू अध्यक्ष नहीं, बल्कि सहकारिता विभाग के अधिकारियों से उनकी सांठ-गांठ और मधुर संबंधों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके रिश्ते के भाई महेन्द्र मिश्रा बनसुकली में इसी तरह के जुगाड़ से लैम्प्स का संचालन कर रहे हैं और बीते माह धान खरीदी की प्रक्रिया भी उन्हीं के हिसाब से संपन्न हुई है। यही नहीं 2018 में जब चुनाव संपन्न हुए तो, ब्यौहारी नगर पालिका के वार्ड नंबर 12 से वर्तमान पार्षद समिति की अध्यक्ष थी, लेकिन जब सहकारिता और लघु वनोपज से इनका दायरा बढ़ा तो, दखल नगर पालिका में भी हो गया, पत्नी के पार्षद बनने के बाद सुनील मिश्रा अध्यक्ष पद पर काबिज हो गये, हालाकि इस नियुक्ति के खिलाफ भी शिकायतें हुई और आरोप लगाये गये कि यह पूरी प्रक्रिया डीआर चन्द्र प्रताप भदौरिया के संरक्षण में वरिष्ठ अधिकारियों को अंधेरे में रखकर संपन्न की गई।
करोड़ों के खेल ने रोका चुनाव
लघु वनोपज समिति के चुनावों के न होने के पीछे सबसे बड़ा कारण यहां हर वर्ष आने वाला करोड़ों का बजट तेन्दु पत्ता गोदाम के मरम्मत से लेकर रंगाई, पुताई और संचालन समिति के जिम्मेदारों के लिए वाहनों का मासिक किराये पर संचालन किया जाता है, इसके अलावा अंचल में पुलिया, भवन आदि निर्माण के लिए भी करोड़ों रूपये हर वर्ष बजट प्रस्ताव बनाकर आहरित किया जाता है, हालाकि इस पूरे मामले में डीएफओ उत्तर वन मण्डल की भूमिका भी रहती है, लेकिन जुगाड़ के हमाम में हर कोई लगाई गई डुबकी से बाहर निकलना नहीं चाहता। इस पूरे मामले में डीआर जहां चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ करने की बातें कहते हैं, वहीं चोरी छुपे समितियों के चुनाव और डेढ़ दशक से सुनील मिश्रा के परिवार का समितियों पर कब्जा रहा है।
इनका कहना है…
चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, संभवत: अगले माह समितियों के चुनाव संपन्न हो जायेंगे।
चंद्र प्रताप भदौरिया
उपपंजीयक सहकारिता
शहडोल

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