पेंट घोटाले में विधायक की चुप्पी की चर्चा चौराहों पर
जिला शिक्षा कार्यालय ने 3 साल में दिये एक फर्म को करोड़ों के काम
अरविंद की पैठ के सामने प्रशासन हुआ खामोश
4.5 करोड़ की लूट पर आखिर जांच क्यों ठप?
शहडोल। जिले का बहुचर्चित पेंट घोटाला अब ठंडे बस्ते में दबा दिए जाने की तैयारी में है। करोड़ों की हेराफेरी, फर्जी बिल, नियमों की धज्जियाँ, सरकारी खजाने की बंदरबांट-सबकुछ जनता की आंखों के सामने हुआ। फिर भी जिला प्रशासन खामोश है। करीब तीन महीने पहले जिला शिक्षा कार्यालय पर आरोप लगे कि स्कूलों की मरम्मत और रंगरोगन के नाम पर करोड़ों रुपये लोक शिक्षण संचालनालय भोपाल से लाए गए। जमीनी स्तर पर क्या काम हुआ? ग्रामीणों का कहना है कुछ भी नहीं! काम सिर्फ कागज पर दिखा, भुगतान पूरा कर दिया गया। एक स्कूल में महज चार लीटर पेंट दिखाकर 168 मजदूरों का भुगतान किया गया है, जो सीधे-सीधे जनता के टैक्स की लूट है।
बार-बार ठेका, नियम ताक पर
पूरे जिले में सिर्फ सुधाकर कंस्ट्रक्शन को ठेके क्यों दिए गए, वर्ष 2022 से 2025 के बीच इसी फर्म को लगभग 4.5 करोड़ रुपये के काम सौंपे गए। निविदा प्रक्रिया का पालन नहीं, पारदर्शिता का नामोनिशान नहीं। खरीद नियमों की खुली धज्जियाँ उड़ाई गईं।
अरविंद पांडे पर उंगली
इस पूरे खेल का सूत्रधार के आरोपों की सीधी उंगली अरविंद पांडे की तरफ उठ रही है। चर्चा है कि उन्होंने जिला शिक्षा कार्यालय और रमसा में अपना दबदबा दिखाकर ठेके दिलवाए। सवाल उठता है, क्या वे भाजपा के बड़े नेता के साढ़ू भाई हैं? अगर हां, तो क्या यही रिश्तेदारी उन्हें बचा रही है? अगर रिश्तेदारी भ्रष्टाचार का कवच बन चुकी है, तो फिर कानून का अस्तित्व ही खत्म हो गया है।
शिक्षा अधिकारी और प्रशासनिक मिलीभगत
जिला शिक्षा अधिकारी फूल सिंह मारपाची, संयुक्त संचालक उमेश धुर्वे और सुधाकर कंस्ट्रक्शन के कथित संचालक पर क्यों कार्रवाई करने में प्रशासन को पसीना आ रहा है। अब तो ऐसा लगने लगा है, मानो प्रशासन स्वयं इस घोटाले का हिस्सा बन चुके हैं। क्या पूरा तंत्र मिलकर जनता के पैसों का खेल खेल रहा है?
विधायक शरद कोल की चुप्पी
सबसे बड़ा सवाल जनता के बीच यही है कि भाजपा विधायक शरद कोल की आवाज अचानक थम गई, जब घोटाला उजागर हुआ था, तो वे विधानसभा में दहाड़े थे। मीडिया के सामने कहा था कि भाजपा सरकार में कोई भ्रष्टाचार नहीं बचेगा। उन्होंने दोषियों पर कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन अचानक उनके तेवर ठंडे पड़ गए? चर्चा है कि क्या उन पर दबाव डाला गया है या फिर पर्दे के पीछे मैनेजमेंट हो गया?
भाजपा की साख पर दाग
मुख्यमंत्री मोहन यादव सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति की दुहाई देती है, लेकिन शहडोल का यह घोटाला इस नीति की पोल खोल रहा है। क्या यह जीरो टॉलरेंस है कि करोड़ों की हेराफेरी पर कोई कार्रवाई ही न हो? क्या यह जीरो टॉलरेंस है कि विधायक, सांसद, अधिकारी सब खामोश हो जाएं? अगर भाजपा अपने ही रिश्तेदारों और नेताओं को बचाने में जुटी है तो यह पार्टी की साख पर गहरा धब्बा है।
मीडिया ने खोली पोल, प्रशासन मौन
मीडिया रिपोट्र्स और वायरल दस्तावेजों ने बिल और भुगतानों की पूरी परत खोली। फर्जी बिलिंग, जीएसटी की गड़बड़ी तक सामने आई। विभाग ने नोटिस जारी भी किए, लेकिन कार्रवाई कहां गई? नोटिसों में ही जांच फंसी रह गई। जिला प्रशासन का कोई बयान तक नहीं आया। अब तो ऐसा लगता है कि प्रशासन इन दस्तावेजों को फर्जी जेनरेटेड बताने का बहाना खोज रहा है।
जनता के सीधे सवाल
क्या 4.5 करोड़ रुपये जनता के टैक्स का दुरुपयोग नहीं हुआ? क्या भाजपा के रिश्तेदार होने का फायदा उठा रहे हैं अरविंद पांडे? क्या विधायक शरद कोल ने सच दबाने के लिए चुप्पी साध ली? क्या जिला प्रशासन भ्रष्टाचार के संरक्षण में शामिल है? क्या मोहन यादव सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति सिर्फ मजाक है?
नियम के होनी चाहिए यह कार्यवाही?
धारा 420, 467, 468, 471 भादवि के तहत फर्जी बिल और कागजात बनाने वालों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज हो। लोकायुक्त/ईओडब्ल्यू जांच तत्काल शुरू हो और जिम्मेदार अधिकारियों को निलंबित किया जाए। जिन ठेकों में नियम तोड़े गए, उन सभी भुगतानों की रिकवरी हो और दोषियों की संपत्ति जब्त की जाए। शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों की जवाबदेही तय हो। विधायक और सांसद पर जनता को गुमराह करने के लिए राजनीतिक कार्रवाई हो।
जनता के पैसो की लूट
शहडोल का पेंट घोटाला केवल वित्तीय घपला नहीं, बल्कि यह दिखाता है कि सत्ता, रिश्तेदारी और प्रशासनिक तंत्र मिलकर कैसे जनता के पैसों की लूट को अंजाम देते हैं। तीन महीने पहले जो घोटाला प्रदेश की राजनीति में भूचाल बन गया था, वह आज ठंडे बस्ते में है। अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई तो यह साफ हो जाएगा कि भ्रष्टाचार को बचाना ही सरकार और प्रशासन की असली नीति है।