MP के किसानों को नहीं मिल रहा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ….
भोपाल। साल 2022 बहुत ज्यादा दूर नहीं है जिसका सरकार ने दावा किया है कि किसानों की आमदनी दुगनी हो जाएगी. किसानों के कल्याण के नाम पर सरकार तरह-तरह के वादे और दावे करती रही है. उन्हीं में से एक है फसल बीमा योजना लेकिन मध्य प्रदेश में बीमा प्रीमियम भरने के बावजूद हजारों किसानों को फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. मध्य प्रदेश की राजधानी से करीब 200 किलोमीटर दूर आगर मालवा जिला मुख्यालय पर रूपनारायण, अपने परिवार के नाम से पांच कृषि खातों की करीब 60 बीघा जमीन पर हर साल सहकारी संस्था से ऋण लेते हैं, और हर फसल में फसल बीमा योजना का प्रीमियम भी भरते हैं, लेकिन कहते हैं बीमा आजतक नहीं मिला.
हमारी सोसायटी से लोन है, हर साल पलटी देते हैं… बीमा का प्रीमियम कटता है दो फसल में, गेंहू और सोयाबीन में पर आजतक मुआवज़ा मिला ही नहीं, बीमा हमारा फुल काटते हैं, कहते हैं जब सरकार से आएगा तब मिलेगा. कभी कहते हैं कि पटवारी ने गिरवारी नहीं की होगी, हमारी चप्पल घिस गई जाते जाते.’ आवर गांव में नारायण सिंह कहते हैं उनके गांव में किसी किसान को फसल बीमा योजना का पैसा नहीं मिला, जबकि आसपास के दूसरे सारे गांवों में इसका लाभ मिल गया. इसी गांव के भुवान सिंह और देवी सिंह अपने खातों में पासबुक के पन्ने पलट कर बार-बार ये देखने की कोशिश करते हैं कि शायद उनकी फसल बीमा की राशि आ गई हो. नारायण सिंह कहते हैं, ‘प्रीमियम साल का 15000 देते हैं, 18 में जो बीमा था वो हमें नहीं मिला लेकिन हमारे खेत के पास देवली के पास मिला है, तीनों दिशाओं में तीन गांव हैं, उन्हें बीमा मिला है. बैंक कहता है पटवारी जाने, पटवारी कहता है बैंक जाने, आजतक कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला.
आगर मालवा में ज़िला सहकारी बैंक के सहायक नोडल अधिकारी सुरेश शर्मा कहते हैं, ‘व्यक्तिगत किसान को नुकसान है तो उसको व्यक्तिगत रूप से बीमे की मांग करनी होगी, जैसे बोनी में बीज फेल हो गया, आग लग गई, उसके व्यक्तिगत अलग से होता है नहीं तो हल्के से ही होता है.’ जानकार पटवारी हल्के के अलावा भी इसमें कई कमियां गिना रहे हैं. मध्यप्रदेश में कृषि सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य केदार सिरोही कहते हैं, ‘ये बीमा योजना कॉरपोरेट को ज्यादा फायदेमंद रही है. अगर 100 हैक्टेयर से कम बुवाई उस यूनिट पर हुई है तो उसका बीमा नहीं होगा, जो यूनिट है वो किसान रखना चाहिये था लेकिन अभी भी पंचायत स्तर है, पटवारी हल्का है, उसमें कई समस्या आती है, तीसरा सबसे बड़ा इंडेमेनिटी 70-80 प्रतिशत है यानी 100 रुपये में 80 प्रतिशत ही मिलेगा, औसत में भी नुकसान है.’ किसानों को, जानकारों को ऐतराज है लेकिन सरकार को लगता है कि पटवारी हल्के से जायदा फायदा हो रहा है.
कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा, ‘पहले इकाई तहसील था, जब मैं राजस्व मंत्री बना तो पटवारी हल्का किया, उस समय पटवारी हल्के थे 11622, उसके हमने पंचायत को पटवारी हल्का माना. इसलिये 23000 पटवारी हल्के हैं, 54000 गांव हैं इसलिये एक गांव इकाई है, उससे फसल बीमा का लाभ अधिक मिल रहा है, सबसे अधिक कहीं मुआवज़ा मिला है तो देश में मध्यप्रदेश में मिला है.’
हालांकि आंकड़ों के मुताबिक साल 2017-18 रबी सीज़न में 59,89,531 किसानों ने बीमा करवाया, किसान, केन्द्र राज्य ने मिलाकर 1411 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा, दावा मिला 171 करोड़ रुपये का. 2018 खरीफ में 35,00,244 किसानों ने प्रीमियम भरा, 4049 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा गया, दावा वितरण हुआ 1921 करोड़ रुपये का. 2018-19 रबी सीजन में 25,04,463 किसानों ने बीमा करवाया, 1473 करोड़ रुपये का प्रीमियन जमा हुआ, भुगतान हुआ 1060 करोड़ रुपये का. 2019 खरीफ में 37,27,835 किसानों ने बीमा करवाया, 2350 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा गया. पैसे मिले नहीं हैं. 2019-20 रबी सीजन में 34,38,996 किसानों ने बीमा करवाया, 947 करोड़ रुपये का प्रीमियम भरा गया, दावे का निपटारा नहीं हुआ है.
वैसे 2018 से बीमे का पैसा भी सियासी दांवपेंच में उलझा था 1 मई को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 15 लाख किसानों के बैंक खातों में फसल बीमा दावा राशि के 2,981.24 करोड़ रुपए मंत्रालय से ऑनलाइन ट्रांसफर किये. सरकार ने कहा कि खरीफ 2018 और रबी 2018-19 की फसल बीमा राशि का प्रीमियम किसानों ने तो जमा करवा दिया था, लेकिन कमलनाथ सरकार ने नहीं. उन्होंने कुर्सी संभालते ही राज्य का हिस्सा 2200 करोड़ रुपए प्रीमियम जमा करवाया जिसकी वजह से 8 लाख 40 हज़ार किसानों को खरीफ 2018 के 1921.24 करोड़ और 6 लाख 60 हज़ार किसानों को रबी 2018-19 के 1060 करोड़ मिले. अब मध्य प्रदेश सरकार ने तय किया है कि वो खुद की फसल बीमा कंपनी बनाएगी और इसके जरिए किसानों को फसल बीमा का लाभ दिया जाएगा. उधर केन्द्र ने बीमा योजना को स्वैच्छिक किया है लेकिन मैसेज भेजकर किसानों को इसके फायदे गिनाये जा रहे हैं जो कम से कम जमीन पर तो दिखे नहीं.