गर्मी में ठंडी का अहसास दिलाता ग्रामीण जीवन शैली का सुखद अनुभव देता गौरेला के ठाड़पथरा में मड हाउस

•मड हाउस•
उफ्फ ये गर्मी, चिलचिलाती धूप,शाम तक चल रही है लू।
ऐसी स्थिति से निपटने के लिए आईए ठाड़पथरा मड हाउस में।🛀
जिला गौरेला पेंड्रा मरवाही प्रशासन द्वारा संरक्षित ठाड़पथरा पर्यटन समिति द्वारा संचालित किया जा रहा है,मड हाउस।
अमरकंटक की ऊंची पहाड़ियों की तराई में बसा वनों, नदियों, छोटी-छोटी चोटीयो से सराबोर खूबसूरत वन ग्राम है ठाड़पथरा। यहां पर बहुतायत बैगा आदिवासी (विशेष संरक्षित प्रजाति) रहती हैं।
मड हाउस जो कि नाम से ही मालूम हो रहा है कि मिट्टी का घर जी हां इसका निर्माण मिट्टी से,लकड़ीयो, खपरैल से किया गया है।इस घर की साज-सज्जा में ग्रामीण परिवेश का एहसास दिलाने के लिए बस्तरिहा आर्ट से चित्रकारी की गई है,मड हाउस के परिसर में पेड़ पौधे भरें हैं जो कि प्रकृति के साथ समय बिताने का सुखद अनुभव देते हैं।
मड हाउस को एक तालाब के किनारे बनाया गया है जहां बोटिंग की सुविधा दी गई है, चांदनी रात में तो यह स्थान जन्नत का एहसास दिलाता है।
चूंकि आधुनिक युग है इसके लिए यहां पंखे,कूलर, बिजली की, आधुनिक बाथरूम एवं मिनी किचन, डायनिंग हॉल की व्यवस्था बनाई गई है।
विदेशी सैलानियों की पहली पसंद है मड हाउस – इस मड हाउस में बाहर विदेश से घूमने आए सैलानी कई बार आ चुके हैं।वे अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि यह स्थान प्रकृति को जानने उसके साथ रहने का सुखद अनुभव देता है।
- मड हाउस को संचालित कर रही समिति के सदस्य नरेंद्र यादव बताते हैं कि यहां का रख रखाव पूर्णतः ग्रामीण परिवेश में किया गया है, रात में तो यह जगह और भी खूबसूरत हो जाती है जंगलों के अंदर से सियार की हू,हू की आवाज, ठंडी-ठंडी हवा जिनसे खड़खड़ाते पेड़ों के पत्ते, ऊपर खुला नीला आसमान जिसमें असंख्य टिमटिमाते तारे यहां ठहरने वाले मेहमानों को गदगद कर देते हैं,ख़ान पान में ग्रामीण जीवन के ही व्यंजन परोसे जाते हैं,सराई के पत्ते से बनी पत्तल,दोना,पैना में पसाया भात सीजन में सीजनली हरी पत्तेदार सब्जियां राई भाजी,लाल भाजी, चौलाई, पालक,करमत,चुनचुनिया,चेंच भाजी विशेष रहती है।
यहां की खासियत में है कि यह स्थान मई-जून की गर्मी में भी दोपहर में ठंडा और शीतल रहता है।
सैलानियों को यहां रूकने में आनंद आता है।
कैसे और कहां से जाएं – सड़क मार्ग से गौरेला से अमरकंटक के लिए पकरिया दूधधारा वाले मार्ग पर दूधधारा के पहले बांए हाथ पर रास्ता कटा है खड़ी ढलान है, पहाड़ की ऊंची चोटी से सीधा तराई में उतरता है ग्राम ठाड़पथरा के लिए। गौरेला रेलवे स्टेशन से दूरी महज 14 किलोमीटर दूर है।
✍️ठाकुर घनश्याम सिंह गौरेला।