मुंशी प्रेमचंद ने शोषितों एवं वंचितों को बनाया अपनी लेखनी का आधार : डॉ. तिवारी

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अनूपपुर से अजय नामदेव

अनूपपुर। जिले के अग्रणी शासकीय तुलसी महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा 31 जुलाई को हिंदी के मूर्धन्य कहानीकार एवं उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन महाविद्यालय के प्राचार्य एवं हिंदी के ख्यातिलब्ध विद्वान डॉ परमानन्द तिवारी के मार्गदर्शन में किया गया। संगोष्ठी में वर्चुअल माध्यम से उपस्थित डॉ. तिवारी ने कहा कि प्रेमचंद के लेखन का आधार समाज के वंचित और शोषित वर्ग के लोग रहे। उनकी कहानियों में तत्कालीन भारत में व्याप्त सामाजिक और आर्थिक असमानता और भेदभाव की पराकाष्ठा देखने को मिलती है। डॉ. तिवारी ने कहा कि हिंदी साहित्य में प्रेमचंद, तुलसीदास के बाद सबसे अधिक पढ़े जाने साहित्यकार हैं और हिंदीभाषी क्षेत्र के प्रत्येक व्यक्ति के मनमस्तिष्क पर उनका प्रभाव आज भी बना हुआ है। प्रेमचंद वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे और वर्ग और जातीय व्यवस्था के शोषितों के बड़े पैरोकार थे जिसकी छाप उनके लेखन में स्पष्ट रूप से दिखती है।
इस अवसर पर उपस्थित हिंदी विभाग के प्राध्यापक कृष्णचन्द्र सोनी ने मुंशी प्रेमचंद के व्यक्तित्व और कृतृत्त्व पर प्रकाश डाला। प्रो. सोनी ने कहा कि प्रेमचंद का जीवन अत्यंत अभावग्रस्त रहा। बाल्यावस्था में ही उनकी माता का देहांत हो गया और वे पारिवारिक प्रेम, स्नेह और दुलार से भी वंचित रहे। सम्पूर्ण जीवनकाल में उन्होंने लगभग 300 कहानियां और 12 उपन्यास लिखे। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक शाहबाज़ खान, ज्ञान प्रकाश पाण्डेय, बी. एम तिवारी और धर्मेंद्र सेन उपस्थित रहे।

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