पत्रकारिता हो या व्यक्तिगत जीवन पूरी प्रमाणिकता आवश्यक

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शहडोल। 63 वर्ष से लगातार पत्रकारिता कर रहे दैनिक समय के संपादक चंद्रशेखर त्रिपाठी अविभाजित शहडोल जिले के सर्वाधिक पढ़े-लिखे विद्वान और स्थापित पत्रकार हैं, उनका मानना है कि पत्रकारिता एवं व्यक्तिगत जीवन में पूरी प्रमाणिकता होनी चाहिए, ताकि व्यक्ति की ईमानदारी पर कोई उंगली न उठा सके। श्री त्रिपाठी का यह भी कहना है कि राष्ट्रहित को दृष्टिगत रखकर पत्रकारिता होनी चाहिए, वर्तमान दौर में चल रही पत्रकारिता से वे पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं है।
छात्र जीवन से ही शुरू की पत्रकारिता
18 अक्टूबर 1937 को सागर में मध्यप्रदेश पुलिस के प्रधान आरक्षक रूद्र प्रसाद त्रिपाठी के घर में जन्में एवं उमरिया जिले के ग्राम सेमराड़ी निवासी चंद्रशेखर त्रिपाठी ने बीए-एलएलबी, साहित्य रत्न प्रयाग एवं भारती विद्या भवन मुंबई से पत्रकारिता विसारद की डिग्री की शिक्षा प्राप्त की। पिता जी के रिटायर होने के बाद बिजुरी में बस गये। वर्ष 2000 में शहडोल में घर बनाकर स्थाई रूप से यहां के निवासी हो गये। कॉलेज में अध्ययन करते हुए वर्ष 1957 में साप्ताहिक समय में पत्रकारिता प्रारंभ की। एलएलबी करने के पश्चात 10 वर्ष तक जिला न्यायालय शहडोल में वकालत की। वर्ष 1977 में साप्ताहिक समय दैनिक के रूप में प्रकाशित होने लगा। तब वे संपादक के रूप में पदस्थ हो गये, दैनिक समय के प्रधान संपादक स्व. पद्भनाभ त्रिपाठी इन्हें छोटे भाई की तरह मानते थे।
समाज सेवा में भी सक्रियता रही
पत्रकारिता के साथ-साथ चंद्रशेखर त्रिपाठी को समाज सेवा में भी रूचि थी, वे डॉ. अनिल सद्गोपाल व उनकी पत्नी मीरा द्वारा शुरू किये गये किशोर भारती साप्ताहिक शिक्षा शिविर में हरिहर चतुर्वेदी एडवोकेट के साथ भाग लिये। यह एनजीओ पूरे हिन्दुस्तान में फैला हुआ था, गांव-गांव में शिक्षा का प्रसार खासकर प्रौढ़ शिक्षा का अभियान बीटीआई के तात्कालीन प्राचार्य डी.पी. सिंह ने प्रारंभ किया। श्री त्रिपाठी उनके साथ लगभग 20 गांव में 3 से 7 दिन का शिविर लगाकर लोगों को पढ़ाते थे, इनके साथ शिक्षाविद सुखदीप उप्पल एवं डॉ. सिद्धार्थ नचिकेता भी पढ़ाते रहे। तात्कालीन कलेक्टर टी.धर्मा राव भी साक्षरता मिशन के तहत शुरू किये गये, इस कार्यक्रम को संबोधित करते थे।
आपात काल में सत्ता का विद्रूप चेहरा
चंद्रशेखर त्रिपाठी 10 वर्ष तक जिला युवक कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे और इस दौरान मद्रास, दिल्ली, गुहाटी समेत देश के अनेक हिस्सों में आयोजित होने वाले अधिवेषणों में भाग लेते रहे। उस समय इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री के पुत्र संजय गांधी राजनीति में काफी सक्रिय थे, लेकिन वर्ष 1977 में इन्दिरा गांधी द्वारा लागू किये गये आपात काल की तानाशाही में सत्ता का विद्रूप चेहरा देखकर श्री त्रिपाठी असंतुष्ट हो गये और कांग्रेस छोड़ दी। श्री त्रिपाठी बताते हैं कि मध्यप्रदेश के तत्कालीन पर्यटन मंत्री कृष्णपाल सिंह के अनुरोध पर भोपाल में नेशनल हेराल्ड के हिन्दी संस्करण के नवजीवन का संपादन भी 8 महीने तक उन्होंने किया है।
वेदों, उपनिषदों, पुराणों के ज्ञाता
जिले के स्थापित पत्रकार चंद्रशेखर त्रिपाठी एक ऐसे विद्वान पत्रकार हैं, जिन्होंने चारों वेदों का अध्ययन करने के साथ ही कई उपनिषद, पुराणों के अलावा गांधी जी का पूरा साहित्य पढ़ा है। इतना ही नहीं डॉ. राममनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, विनोवा जी, गुरू गोलवलकर, ओशो समेत अन्य कई विद्वानों व दर्शानिकों के साहित्य का अध्ययन किया है। श्री त्रिपाठी जीवन भर पढ़ते रहे हैं, लिखते रहे हैं और समय-समय पर सभाओं में भाषण भी देते रहे। उनकी लेखनी में काफी दम होता था। श्री त्रिपाठी जैसे विद्वान पत्रकार संभवत: पूरे संभाग में नहीं है। वे कहते हैं कि मेरी सफलता में मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सावित्री त्रिपाठी सेवा निवृत्त शिक्षिका का भी विशेष योगदान है।

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