मेरा अतिक्रमण टूटा, दूसरों पर बरस रही मेहरबानी,नपा अध्यक्ष का रवैया पक्षपातपूर्ण

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शहडोल। जयसिंहनगर में अतिक्रमण हटाने के मामले में विवाद उग्र होता नजर आ रहा है। यह मामला तब उठा जब शासकीय भूमि खसरा क्रमांक 646/1 अंश रकबा 0.430 हेक्टयर से एक अतिक्रमण हटाने नगरपरिषद ने प्रशासन पर दबाव बनाया। इस पर रामदीन गुप्ता का अतिक्रमण तो टूटा लेकिन उस भूमि के अन्य अतिक्रमण छोड़ दिए गए। इससे विचलित होकर रामदीन ने अन्य अतिक्रमणों को भी हटाए जाने की मांग की है।  इस भूमि पर अतिक्रमणकारियों की लम्बी सूची है और जगह खाली नहीं है। रामदीन ने आरोप लगाया कि प्रशासन अन्य लोगों को छूट देकर पक्षपातपूर्ण बर्ताव कर रहा है।
इनके अतिक्रमण भी हटाओ
रामदीन ने कहा कि जिस जमीन से उसका अतिक्रमण तोड़ा गया वहां देवदत्त गुप्ता, सुनैना देवी गुप्ता, राज कुमार पयासी, कुंज बिहारी गुप्ता आदि सहित कई लोगों द्वारा अतिक्रमण किया गया है। लेकिन जब अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई हुई तो केवल उसे ही निशाना बनाया गया। जबकि अन्य लोगों को राहत प्रदान कर दी गई। यह प्रशासन की सरासर अन्यायपूर्ण कार्रवाई थी। अगर उसका अतिक्रमण टूटा है तो शेष लोगों के भी अतिक्र मण तोड़े जाएं। रामदीन ने अपनी शिकायत में सभी अतिक्रमणकारियों का ब्यौरा दिया है।
नगरपरिषद ने भी साधी चुप्पी
अतिक्रमण हटाने के लिए नगरपरिषद की ओर से भी नोटिस जारी की जानी थी, लेकिन नगरपरिषद ने अभी तक कितने अतिक्रमणकारियों को नोटिस दिया है और उसने आगे क्या रणनीति बनाई है इसके लिए कोई जानकारी नहीं दी जा रही है। नगरपरिषद का भी एक ही निशाना था, उस पर भी ढंग से कार्रवाई नहीं हुई, बताते हैं कि उसकी भूमि पट्टे की निकल आई थी। इसके बाद प्रशासन की कार्रवाई के साथ नगरपरिषद ने भी चुप्पी साध ली। इस मामले में सबसे अधिक पीडि़त रामदीन गुप्ता ही दिखाई पड़ता है।
अतिक्रमण का गंभीर मामला
यहां सवाल केवल रामदीन का नहीं बल्कि शासकीय भूमि पर दर्जनों अतिक्रमण का है। शासकीय आराजी को लोग पट्टे की आराजी की भांति व्यावसायिक लाभ ले रहे हैं और यह नाजायज कब्जा अपराध की श्रेणी में आता है। इस पर प्रशासन को न्यायसंगत दृष्टिकोण अपनाते हुए शासन के पक्ष में सघनता से कार्रवाई करनी चाहिए। अन्यथा इस तरह से तो कोई भी शासकीय आराजी कहीं बचेगी ही नहीं। लेाग वहां मकान दूकान बनाने से बाज नहीं आएंगे। नगरपरिषद भी कम दोषी नहीं है। जिस भूमि को कलेक्टर शहडोल ने वर्ष 2018 में जनहित के लिए नगरपरिषद को आवंटित किया उस भूमि की सुध लेने की जरूरत नगरपरिषद ने 6 वर्षों तक नहीं समझा। तब तक जमीन पर चारो तरफ लोगों ने कब्जा कर लिया।

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