खेल मैदानों के लिये न बजट, न इच्छाशक्ति

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  ग्राम पंचायतों में एक दशक पूर्व बनने थे मैदान

शहडोल। ग्रामीण अंचलों की खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश सरकार ने करीब एक दशक पूर्व प्रत्येक ग्राम पंचायत में खेल मैदान विकसित करने का निर्णय लिया था। इस निर्णय के परिपालन में सभी पंचायतों को
भरपूर बजट प्रदान कर खिलाड़ियों के लिए मैदानों की व्यवस्था करने के निर्देश दिए थे। शासन के इस निर्देश का हाल यह हुआ कि बजट तो आहरित कर लिया गया लेकिन मैदान बहुत कम ही पंचायतों में बनाए गए हैं। आज भी ग्रामीण
अंचलों के खिलाड़ी बच्चे मैदान के लिए सिसक रहे हैं। वर्तमान में स्कूलों में भी मैदान नहीं हैं बच्चों को खेलने की जगह ही नहीं मिल पाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को खेलों का अभ्यास करने की जगह नहीं मिल पाती है। जिससे वे सुबह शाम न तो खेलों का अभ्यास कर पाते हैं और न उनके अंदर छिपी प्रतिभा निखर पाती है। जबकि देहाती क्षेत्रों में भी क्रिकेट, हॉकी और फुटबाल प्रेमियों की कमी नहीं है। आउटडोर खेलों के लिए एक बड़े मैदान की आवश्यकता होती है। ग्राम विचारपुर में फुटबॉल के पुराने तथा प्रसिद्ध खिलाड़ी सुरेश कुण्डे के प्रयासों से एक अच्छे बड़े मैदान को विकसित किया गया था। जहां आसपास के बच्चे खेल का अभ्यास करते हैं। यह एक प्रेरणादयी पहल है इसी तरह के प्रयास अन्य क्षेत्रों में भी होने चाहिए। शासन के निर्देश के बाद दो बार पंचायतों का गठन हो चुका है लेकिन आज भी सरपंच व सचिव खेल मैदानों के लिए स्थल का रोना रो रहे हैं। कहीं ऐसी बड़ी सरकारी जगह नहीं मिल पा रही है कि जिसे मैदान बनाया जा सके। तलाश की जा रही है। जबकि सरकारी जमीनों में कब्जे कराए जा रहे हैं, कालोनियां बनाई जा रहीं हैं, पंचायत के अन्य निर्माण कार्य हो रहे हैं लेकिन मैदान के लिए जगह नहीं मिल पा रही है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों की खेल संबंधी जरूरत को महत्व नहीं दिया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए न तो कहीं मैदान है और न ही कहीं ऐसी चरागन भूमियां पड़ी हैं जहां वे खेेलों का अभ्यास कर सकें। उनका अधिकांश समय उन खेतों में बीतता है जहां बोनी नहीं हो पाती है। टोले के बच्चे  होकर वहीं चले जाते हैं और खेल कर अपना मनोरंजन करते हैं। कही कहीं बच्चे बंजर जैसी पड़ी चरागन भूमियों को अपना खेल मैदान बना लेते हैं और उसी में अपना खेल अभ्यास करते हैं। एक सचिव ने बताया कि मैदानों के लिए उसी समय राशि दी गई होगी, जिसका उपयोग कर तत्कालीन सरपंच, सचिव को निर्माण कार्य कराना चाहिए अब स्थिति यह है कि न बजट का पता है और न मैदान बना। बच्चों के लिए खेल मैदान दरअसल अब विकास कीप्राथमिकता पर है। यह केवल तत्कालीन सरकार का आदेश मात्र नहीं है, लेकिन अब उसके लिए जब बजट की व्यवस्था होगी, अथवा सरकार बजट आवंटित करेगी तभी मैदानों का निर्माण हो सकेगा।

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