नियमों के विपरीत संचालित हो रहे नर्सिंग कॉलेज

बगैर अस्पताल खुले नर्सिंग कॉलेज, क्लीनिकल ट्रेनिंग में होती परेशानी
(Amit Dubey+8818814739)
उमरिया। प्रदेश सरकार की मंशा अनुरूप हर साल बड़ी संख्या में योग्य व क्वालिटी एजुकेशन के साथ नर्सेस तैयार करने का लक्ष्य लेकर चल रही राज्य सरकार ने कई नियम नर्सिंग कॉलेजों के लिए बनाये थे, लेकिन शिक्षा जगत के माफिया इन नियमों को लील चुके हैं, उसी नर्सिंग कॉलेज को मान्यता मिलनी थी, जिसके पास खुद का अस्पताल हो, लेकिन जिले सहित कस्बाई क्षेत्रों में नर्सिंग कॉलेज की बाढ़ आई हुई है, इन कॉलेज में सबसे ज्यादा आदिवासी वर्ग की छात्राएं नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है। कॉलेज में कोर्स के नाम पर सिर्फ वसूली की जा रही है , जबकि पढ़ाई के नाम पर न पर्याप्त शिक्षक है और न ही संसाधन। छात्राओं को प्रेक्टिकल के लिए जिला अस्पताल सहित विकास खण्डों में संचालित नर्सिंग कॉलेज की छात्राओं को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र आना पड़ता है।
सीख नहीं पा रहे प्रशिक्षु
नर्सिंग कॉलेज में क्लिनिकल ट्रेनिंग में बहुत ज्यादा गड़बड़ी है। नियमों के अनुसार, 1:3 मरीज प्रशिक्षु रेशो होना चाहिए। लेकिन नर्सिंग कॉलेज के पास अस्पताल जैसी ऐसी कोई सुविधा ही नहीं है। छात्राओं की ट्रेनिंग के लिए उन्हें जिला अस्पताल की शरण लेनी पड़ती है। जिला अस्पताल में जितने बिस्तर है उससे तीन गुना अधिक प्रशिक्षु ट्रेनिंग के लिए जा रहे है। इस कारण वे कई महत्वपूर्ण चीजें सीख ही नहीं पा रहे है। चर्चा है कि अगर नर्सिंग कॉलेज में अध्ययनरत छात्राओं की सूची निकाली जाये तो, इसमें बड़ी गफलत सामने आ सकती है, आदिवासी छात्राओं के नाम पर आने वाली छात्रवृत्ति की आड़ में बड़ा फर्जीवाड़ा किया जा रहा है।
शिक्षा जगत के माफिया सक्रिय
नर्सिंग कॉलेज संचालित करने के लिए शासन ने नियम निर्धारित किए हैं, जिनके मुताबिक नर्सिंग कॉलेज में 100 बिस्तर का अस्पताल होने या उनसे संबंद्धता होनी चाहिए। जिला मुख्यालय में केवल एक ही 100 बिस्तर का जिला अस्पताल है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कॉलेज को एनओसी देते समय क्यों ध्यान में नहीं रखते। आखिर किसके दबाव में शासन के नियमों का पालन न करने वालों को एनओसी जारी कर दी जाती है। ये शिक्षा जगत के माफिया और अधिकारियों की सांठ-गांठ का नतीजा है कि आदिवासी संभाग के बच्चे शिक्षा के नाम पर लुट रहे है।
नियमों से परे संचालन
संभाग के नर्सिंग कालेजों ने कई जानकारियां छुपाई हैं, कालेजों के ढांचे व शिक्षकों का रिकार्डाे की भी जांच होनी चाहिए, प्रशिक्षुओं की क्लीनिक ट्रेनिंग के लिए किन संस्थानों के साथ एमओयू साइन किया गया है, संस्थान में क्या सुविधाएं हैं, जहां पर क्लीनिकल ट्रेनिंग करवाई जा रही है, क्या वहां पर अन्य कालेज के प्रशिक्षु भी ट्रेनिंग कर रहे हैं, इस तरह की जानकारी अगर विभाग खंगाले तो चौकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। सूत्रों की माने तो लगभग कॉलेज नियमों से परे ही संचालित हो रहे हैं, जागरूक लोगों ने जनप्रिय कलेक्टर से मांग की है कि जिले में संचालित नर्सिंग कॉलेजों की जांच कराई जाये एवं नियमों के विपरीत संचालित नर्सिंग कॉलेजों को बंद कराया जाये, जिससे छात्राओं का भविष्य खराब न हो सके।
मान्यता के यह मुख्य प्रावधान
पाठ्यक्रम के हिसाब से मान्यता दी जाएगी। 4 वर्ष तक हर साल लेनी होगी। चार वर्ष के बाद सीधे अगले चार साल की मान्यता मिलेगी। पाठ्यक्रम के अनुसार पंजीकृत छात्रों का उत्तीर्ण होने का प्रतिशत 70 से कम है अथवा प्रदेश के औसत से घट गया है तो, उसकी मान्यता नहीं रहेगी। एक जिले में एक से अधिक कॉलेजों की मान्यता का आवेदन मिलता है तो, उसी कॉलेज को प्राथमिकता दी जाएगी, जिसका खुद का अस्पताल हो। दूसरे नंबर ट्रस्टी व अन्य द्वारा संचालित अस्पताल का मौका मिलेगा। आवेदन के चरण में ही सारी शर्तें व प्रावधान पूरे करने होंगे। बाद में निरीक्षण के उपरांत मान्यता का कोई झंझट नहीं रहेगा। विभाग की ओर से एक निरीक्षक जाकर यह देखेगा कि आवेदनकर्ता ने आवेदन में जो बातें बताई हैं अथवा डॉक्यूमेंट दिए हैं वह सही हैं या नहीं। अस्पताल अंदर और बाहर की फोटो भी आवेदन के साथ लगानी पड़ेगी। मान्यता देने अथवा रद्द करने का निर्णय मप्र नर्सिंग काउंसिल की खुली बैठक में लिया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता विभागीय मंत्री करेंगे।
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