आरबीकेएस में स्टाफ के नाम पर केवल जिला प्रबंधक

मैदानी स्तर पर कुल 7 टीमें, ऐसे चल रहा बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा का संकल्प लेने वाला राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम भले ही शासन का कोई साधारण अभियान न हो इसका दायरा विशाल हो, लेकिन जिले में इसके क्रियान्वयन के लिए जो जरूरी संसाधन और स्टाफ चाहिए उसकी उपलब्धता अत्यंत निराशाजनक है। (श्यामबिहारी श्रीवास्तव)
शहडोल। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम जिला शीघ्र हस्तक्षेप कार्यालय के नाम से एक दो मंजिला भवन में संचालित हो रहा है। लेकिन वहां जिला प्रबंधक राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम अकेली बैठी दिखाई पड़तीं हैं। हालत यह है कि यहां झाड़ू लगाने अथवा पानी पिलाने के लिए एक चपरासी तक नहीं है। कार्यालय में कोई लिपिक भी नहीं है। जिस विशाल अभियान को संचालित करने के लिए लगभग 55 लोगों की जरूरत है वहां मात्र दो लोगों का स्टाफ है। दूसरा जो स्टाफ है वह भी फील्ड की एक महिला डाक्टर हैं। इतना बड़ा कार्यालय एकमात्र अधिकारी के भरोसे। वही ताला खोले वही झाड़ू लगाए वही अफसर की जिम्मेदारी भी निभाए। जिले में इस तरह चल रहा है शासन का इतना महत्वपूर्ण अभियान। 55 के विरुद्ध मात्र 18 का स्टाफ राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम मैदानी और कार्यालयीन दोनो स्तर पर चलाया जाता है। मैदानी स्तर पूर्ण करने के लिए 22 डाक्टर, 11 फर्मासिस्ट, 11 एनएम जरूरी है और स्वीकृत हैं। जबकि इनमें से कुल 15 डाक्टर, 1 फर्मासिस्ट, 2 एनएम उपलब्ध हैं। शेष स्टाफ आज भी उपलब्ध नहीं कराया गया। इसी तरह कार्यालयीन कार्य के लिए 11 कर्मचारियों का स्टाफ चाहिए लेकिन इसमें मात्र एक स्टाफ डीएम ही उपलब्ध हैं। उनके पास न तो लिपिक है और न अर्दली व भृत्य है। कार्यालय में एक सुरक्षा सैनिक की जरूरत है वह भी नहंी है।
कौन लगाएगा झाड़ू
कार्यालय में न तो ताला खोलने वाला कोई है और न झाड़ू लगाने वाला कोई है। बताया जाता है कि जिला प्रबंधक स्वयं अपने कमरे के आस पास झाड़ू लगातीं हैं और अपने परिवेश को स्वच्छ करने के बाद वे प्रबंधक की कुर्सी पर आसीन होकर कार्य करतीं हैं। यद्यपि सीएमएचओ इस परेशानी से अवगत हैं इसके बावजूद वे कार्यालय के लिए एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की भी व्यवस्था नहीं करा पा रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होने जानबूझ कर इस कार्यालय की उपेक्षा की है। दौरे के लिए भी अमले की कमी
एक जानकारी के अनुसार मैदानी स्तर पर स्कूलों, आगनबाडिय़ों तथा हॉस्टलों का दौरा करने के लिए 11 टीमें होनी चाहिए। प्रति टीम दो डाक्टर होने चाहिए। हर ब्लाक के लिए दो टीमें निर्धारित की गईं हैं। जो कि अपने माइक्रोप्लान के तहत दौरा करती हैं। प्रत्येक डाक्टर प्रतिदिन 60 बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण कर सकता है। टीम के डाक्टरों का लक्ष्य 4डी के तहत बच्चों के अंदर पनपती जानलेवा बीमारियों की तलाश करना होता है। साथ ही बच्चो की सर्दी खांसी जैसी तात्कालिक और मौसमी बीमारियों का भी इलाज कर देते हैं। हालत यह है कि वर्तमान में मात्र 7 टीमों से काम चलाया जा रहा है। अर्बन एरिया के लिए एक डाक्टर अभी हाल ही में आई हैं।
जांच के उपकरण भी नहीं हैं
बताया गया कि बच्चों की जांच के लिए 19 प्रकार के उपकरणों की आवश्यकता होती है। यह उपकरण प्रत्येक टीम के पास उपलब्ध होने चाहिए। लेकिन किसी के पास उपलब्ध नहीं हैं। दौरे पर जाने वाली टीम अपने स्तर से किसी तरह काम चलाती है। माना जाता है कि शासन की मंशा के अनुरूप जिले में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम संचालित नहीं हो पा रहा है। कमियों से जूझता यह अभियान स्वयं ही मदद का मोहताज है। जबकि इसका लक्ष्य परम पुनीत और विशाल है।
इनका कहना है
कार्यालय की सफाई होती है जो सफाई कर्मचारी हमारे कार्यालय की सफाई करता है, वही वहां भी सफाई करता है। अलग से भृत्य की व्यवस्था नहीं है। वहां क्लर्क का स्टाफ नहीं होता है।
डॉ. आरएस पाण्डेय
सीएमएचओ, शहडोल