“धनपुरी की हड़ताल में मोहरे, चाल कहीं और से – टेंट के नीचे सफाई, राजनीति की ऊपर से सफाई”

धनपुरी। नगर पालिका में इन दिनों झाड़ू, टोपी, हेलमेट और यूनिफॉर्म की मांग से ज्यादा चर्चा उस अदृश्य कलम की हो रही है, जो टेंट के नीचे बैठी हड़ताल को कहीं और से लिख रही थी। हुआ यूं कि कुछ दिन पहले स्वच्छता कर्मचारी, अपने झाड़ू-काम को एक तरफ रख, नगर पालिका भवन के सामने टेंट गाड़कर अनशन पर बैठ गए। वजहें कई थीं – कुछ इतनी जायज कि सुनते ही सहमति में सिर हिल जाए, और कुछ इतनी “वरिष्ठ कार्यालय स्तर” की कि सुनते ही हर कोई कह दे – “भाई, ये तो ऊपर वालों का काम है!”
मांगों की लिस्ट में एक नाम खास था –सुश्री पूजा बुनकर, जिन पर आरोप था कि वो सीधे ढंग से बात नहीं करतीं और इज्जत भी नहीं देतीं। बाकी मांगें हेलमेट, पोशाक और उपकरण की थीं, जो मानो किसी बॉलीवुड के कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर से प्रेरित लगती थीं।
पर असली मज़ा यहीं से शुरू होता है। हड़ताल चल रही थी, पर चर्चा इस बात की ज्यादा हो रही थी कि “इस हड़ताल का स्क्रिप्ट राइटर कौन है?” नगर के चौराहों से लेकर पान ठेलों तक, हर कोई अंदाज़े लगा रहा था – “अरे, ये तो फलां का काम है… नहीं-नहीं, इसमें ढिकां का हाथ है!”
अंतिम दिनों में कांग्रेस पार्टी ने भी एंट्री मारी – मानो किसी सीरियल में नया विलेन आ गया हो। जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष, युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता – सब टेंट के नीचे अपनी-अपनी डायलॉग डिलीवरी देने पहुंच गए। पर असली मसाला उस समय बना, जब चर्चा नगर पालिका के वर्तमान उपाध्यक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता की “विफल वार्ता” पर टिक गई।
अब आते हैं इस कहानी के “गेस्ट अपीयरेंस” पर – पूर्व मुख्य नगर पालिका अधिकारी रविकरण त्रिपाठी। अफवाह फैली कि आंदोलन के पीछे असली हाथ इन्हीं का है। हालांकि इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला, पर अफवाहों का भी अपना अलग ही न्यूज चैनल होता है, जो बिना ब्रेकिंग न्यूज़ चलाए चैन नहीं लेता।
बताया जाता है कि नगर पालिका के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों और सत्ताधारी दल के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने भी राजनीतिक मंचों पर और बंद कमरों में ये आरोप लगाना शुरू कर दिया कि हड़ताल की पटकथा त्रिपाठी जी ने ही लिखी है। यहाँ तक कि चर्चा ये भी रही कि इसकी शिकायत बीजेपी संगठन तक पहुंची और वहां से “सख्त निर्देश” का स्क्रिप्ट भी त्रिपाठी जी को थमा दिया गया।
पर असली सवाल तो वही रहा – “टेंट के नीचे मोहरे कौन, और चाल चलने वाला कहां बैठा है?” कुछ का मानना था कि ये खेल धनपुरी नंबर 3 से खेला जा रहा है, कुछ बोले बुढार से, और कुछ ने शहडोल मुख्यालय की ओर इशारा कर दिया।
हकीकत चाहे जो भी हो, जनता का मनोरंजन पूरा हुआ। स्वच्छता कर्मी झाड़ू छोड़कर राजनीति की धूल झाड़ने में लग गए, नेता टेंट के नीचे फोटो सेशन करा रहे थे, और अफवाहों का पंखा चौबीसों घंटे घूम रहा था।
आखिर में ये हड़ताल, सफाई से ज्यादा राजनीति की “साफ-सफाई” पर केंद्रित हो गई। और नगर के लोग मुस्कुरा कर बोले – “अरे भाई, यहां तो झाड़ू भी वोट मांगती है, और हेलमेट भी पार्टी सिंबल देखकर ही पहनाया जाता है।”