विश्वविद्यालय में आरटीआई की उड़ी धज्जिया,जानकारी देने से कतरा रहा प्रबंधन

0

शहडोल।देश मे सूचना का अधिकार अधिनियम लागू हुए डेढ़ दशक हो गएं, सूचना के अधिकार का दर्ज़ा और उपयोगिता इस बात से सिद्ध होता है कि संविधान में इसे मूलभूत अधिकार का दर्ज़ा दिया गया है यानी आरटीआई का अर्थ है सूचना का अधिकार और इसे संविधान की धारा 19 (1) के तहत एक मूलभूत अधिकार का दर्जा दिया गया है। लेकिन शहडोल जैसे आंचलिक क्षेत्र के पंडित शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय मे आज भी यह देखा जा रहा है कि विश्ववविद्यालय के कुल सचिव और वित्त प्रबंधक और कुछ प्रोफेसर्स आरटीआई के कानून को जिम्मेदारी और गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। सबसे हास्यास्पद बात है की आरटीआई आवेदक को 10 रुपए शुल्क भुगतान के माध्यम और औपचारिकता में जी भर के मथा जाता है और इतना ही नहीं आरटीआई के मनगढ़ंत नियत बता कर के जहां तक हो सकता है टरकाया जाता है। जिससे उक्त विश्वविद्यालय मे आम छात्र या नागरिकों को जनहित/छात्रहित की सूचनाएं लेन में कई ‘अधिकारिक अड़चनों’ का सामना करना पड़ रहा है।

क्या है मामला

पं. शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय के छात्र रचत चंद्र सोनी पुत्र मोहनलाल सोनी ने अपनी पीजी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया के बाद लंबित पड़ी प्रवेश प्रक्रिया के संबंध मे अपने छोटे भाई अम्बर चन्द्र सोनी (जो उसी संस्था का पूर्व छात्र है) को बीते 10 अक्टूबर को यूनिवर्सिटी के वेवसाईड द्वारा पीजी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म में कराई गई प्रवेश पंजीयन के संबंध में जानकारी लेने के लिए भेजा तो विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक इस संबंध मे बे-सिर-पैर की जानकारी देते हुए घिघियाने लगे और कार्यालय से बाहर जाने को भी कह दिएं तब रचत चंद्र सोनी और रवि त्रिपाठी स्वयं बीते 5 दिसंबर दिन शनिवार को दोपहर करीब 2:30 बजे जाकर पूछना चाहा तो वे असंतोषजनक उत्तर दिएं और घिघियाते हुए यह कहने लगें कि एक बार बता दिया तो समझ में नहीं आ रहा? वहीं छात्रों का आरोप है कि शहडोल आदिवासी, शांत और कम जागरूक जिला है इसलिए यूनिवर्सिटी के तथाकथित बड़े अधिकारी इस तरह की लापरवाही या अभद्रता करते रहते हैं।

आवेदन से करते हैं खिलवाड़

पीजी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म के प्रवेश प्रक्रिया की वर्तमान और वास्तविक स्थिति के बारे में जब साफ-साफ जानकारी नहीं दी गई तो रवि त्रिपाठी ने इन सभी सवालों को एक आरटीआई आवेदन में विधिवत लिख कर वि.वि. के कुल सचिव डाॅ. विनय सिंह को आवेदन देनी चाही लेकिन उनके द्वारा यह कहते हुए साफ मना कर दिया गया कि यह कैसलेश कैंपस है हम आप से 10 रुपए का शुल्क नगद नहीं ले सकते और ऐसा आरटीआई में भी नहीं लिखा हुआ है हमने कहीं नहीं पढ़ा! तब रवि त्रिपाठी ने उक्त विश्वविद्यालय के बैंक खाते में वि.वि. कैंपस में स्थित स्वाइप मशीन से एटीएम कार्ड स्वाइप कर के आरटीआई आवेदन शुक्ल जमा कर के, प्राप्त रशीद को आवेदन के साथ संलग्न कर के देने का उपाय बताया तो उन्होंने इस तरह से भी भुगतान लेने से मना कर दिया,
कुलसचिव ने सिर्फ पोस्टल आर्डर और स्टाम्प के माध्यम से भुगतान और आवेदन लेने की बात कही जो कि तत्काल में संभव नहीं था और दुसरे दिन रविवार होने के कारण विश्वविद्यालय की छुट्टी थी जिससे आवेदन सोमवार यानी दो दिन के लिए गलत-सलत नियम बताकर रोक दिया गया था। फिर सोमवार को स्टाम्प भुगतान के माध्यम से ही आवेदन स्वीकार किया गया। लेकिन आरटीआई अधिनियम 2005 की मानें तो कुलसचिव का यह बहाना गलत है। कानून में यह बात कहीं लिखित नहीं आई है कि कैशलेस सिस्टम में आरटीआई आवेदन शुल्क नगद नहीं दिया जा सकता। यह उनके विभाग विशेष का नियम हो सकता है लेकिन आरटीआई कानून का नियम नहीं है इसलिए कोई भी लोक सूचना अधिकारी इस प्रकार की बात नहीं कर सकता है,

एविन्डेन्स के साथ की गई शिकायत

यदि कोई अधिकारी संविधान के इतर अल्ल-बल्ल नियम बताकर आवेदन स्वीकार नहीं करता तो धारा 18 के तहत शिकायत का भी प्रावधान है, जिसका उपयोग करते हुए राज्य सूचना आयुक्त मध्यप्रदेश के आधिकारिक ई-मेल आईडी मे रवि त्रिपाठी द्वारा लिखित शिकायत ऑडियो साक्ष्य के साथ की गई है एवं वाट्सएप और ट्वीटर में रिमांइडर भी भेजा गया है। मालूम हो कि शिकायत के साथ जो ऑडियो उपलब्ध कराया गया है उसमें कुल सचिव और वित्त नियंत्रक खुद मनगढ़ंत बहाना बताकर आरटीआई आवेदन लेने से मना करते हुए सुनाई दे रहे हैं और आवेदन न लेने का कारण लिखित रूप से देने में भी आनाकानी करते सुनाई दे रहे हैं।

इनका कहना है…..

हमें विश्वविद्यालय में कैशलेस प्रणाली से शुल्क लेन-देन के आदेश मिले हुए हैं और आरटीआई आवेदन शुल्क नगद प्राप्त करने की कोई जानकारी नहीं दी गई है इसलिए हमने नगद शुल्क के साथ आवेदन स्वीकार नही किया लेकिन जब दो दिन बाद स्टाम्प भुगतान के द्वारा आवेदन लगाया गया तो हमने स्वीकार कर लिया था।

डाॅ. विनय सिंह
(कुलसचिव पीटीएसएन विश्वविद्यालय)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed