समदर्शी विचार रखने वाले सतगुरू को प्रणाम्: संत पुनीराम जी

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समदर्शी विचार रखने वाले सतगुरू को प्रणाम्: संत पुनीराम जी
समाज सच्चाई को छोड़कर जाति-पाति और वर्ण व्यवस्था के में उलझा हुआ है
संत पुनीराम गुरूजी ने कहा कि सच को जीवन में लाने का अवश्य प्रयास करें
 सन्त रविदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्वहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण सन्त रैदास को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं।
अनूपपुर। संत शिरोमणी रविदास केवल अपनी जाति और बिरादरी की बात नही करते है बल्कि समस्त मानव समाज की समता मूलक समाज की सोच रखते है। 14वीं शताब्दी में जन्में सतगुरू रविदास का जन्म ऐसे समय में हुआ था, जिस समय दलित पीडि़त शोषित शूद्र समाज की बहुत ही बुरी और दयनीय हालात थी। सतगुरू जी का सोच बाल्यकाल से अलग ही था सवर्ध समाज की मात्र सेवा और सेवा के बाद भी उनके मन मस्तिष्क में भेदभाव और घृणा प्रत्यक्ष दिखता था। इसलिए सतगुरू जी के मन मस्तिष्क में समता का विचार जाग उठा और वे जागरूक होने के बाद समाज के बीच जाकर सत्य वाणी का उद्गम किया कोई ऐसा ज्ञानी और विद्वान पुजारी पुरोहित नहीं मिले जो गुरूजी के विचार को गलत साबित कर पाते सतगुरू के उपर बहुत ही दबाव डाला गया लेकिन वे अपने सत्य विचार के लिए सदा अडिग रहें। वे सर्व समाज के बीच जाकर बोलते थे।
पराधीनता पाप है, जान लेहु रे मीत।
रैदास दास पराधीन सों, कौन करे है प्रीत।।
हे संत समाज जान लो, समझ लो और अपने ऑख से देख लो और अनुभव कर लो कि व्यक्ति हो या मानव समाज पराधीन है किसर दूसरे के बंधन में रहकर जीता है तो वही सबसे बड़ा पाप है इसलिए आप स्वयं समझो और जानों कि किसी के पराधीन रहकर जीना कौन पसंद करता है। भक्ति भावना संत गुरू रविदास का उनके दोहो और उनके वाणी से पता चलता है कि वे दशरथ पुत्र, राम को भगवान नही मानते थे।
रविदास हजारो राम जी, दशरथ का सुत नाहीं।
राम हमहॅू मांहि रमि रहयो, बिसब कुटंबह माहि।।
इस दोहे ने स्पष्ट कर दिया कि संत गुरू रविदास ने दशरथ पुत्र राम को नही बल्कि सबके अंदर रमे रहे आदि पुरूष राम को मानते थे जिस राम के अंदर कोई भेदभाव नही है। ऐसे घट घटवासी राम को मानने वाले रविदास ने अपने भक्ति का परिचय दिया है और संत समाज को बताया कि-
का मथुरा का द्वारिका, का काशी हरिद्वार।
रैदास खोजा दिल अपना, तऊ मिला दिलदार।।
संत गुरू रविदास ने बताया कि आपका ईष्ट मालिक आपके भीतर मिलेगा जो आप तीर्थ में जाकर माथुरा काशी द्वारिका हरिद्वार में खोज रहे हो वह वहॉ मिलने वाला नहीं है व्यर्थ में आप तीर्थ भ्रमण कर रहे हो आपका विश्वास को खुद ही आपके भीतर जो सच्चाई है उसे जानकर समझकर देखो जिस दिन मालिक का साक्षात्कार तुम्हे मिल जायेगा उस दिन आप फिर बाहर में खोजना छोड़ दोगे नही तो तीर्थ यात्रा करते हुए भटकते रहोगे। आपका पूजा आपका सच्चा कर्म है यदि आप सच बोलोगे और जो कहते हो वैसा ही कर्म करोगे तो आपका काम स्वमेव होगा जो आप नहीं बल्कि आपके भीतर में रमे हुए आपका खुदा करेगा यही अकाट्य सिद्धांत सतगुरू रविदास जी का था आज हम सतगुरू वाणी और संदेश को भूल चूके हैं उसे याद करते हुए उनके बताये मार्ग में चलने की आवश्यकता है।
सम्य समाज की कल्पना
सतगुरू रविदास का विचार समदर्शी था चौदहवी शताब्दी में जन्में गुरूजी का विचार इतना उच्चकोटि का पवित्र विचार रहा है जिसको आज भी कोई नकार नही सकते है। समाज में गुरूजी का विचार ही सर्वोपरी है जो सम्य समाज की कल्पना करते है।
ऐसा चाहू राज मैं, जहॉ मिलै सबन को अन्न।
छोट बड़ों सब सम बसै, रैदास रहैं प्रसन्न।।
संतगुरू जी का विचार तो प्राकृतिक विचार है यह तो सृष्टि कत्र्ता सत पुरूष का विचार है यह विचार तो सच्चा इंसान का है जिनके विचार में किसी प्रकार का भेद नहीं होता वही तो ईश्वर का विचार है। पानी कभी कियी उच्च वर्ग के खेत खलिहान और घर पर ही बरसे बाकी के खेत सूखा रहे कभी नहीं सोचकर बरसते हैं। इसी तरह पंच तत्व हवा पानी अग्नि, धरती और आकाश काहै सूर्य चंद्रमा और तारागणों का है पेड़ पौधे घास पांत फल फूल और पत्तो काहै। जो सबके लिए समान हो किसी प्रकार का कोई भेदभाव न हो वही तो सत का सृष्टि और वृष्टि है ज्ञान और ध्यान है परिचय और पहिचान है दया और दान है। क्या इंसान समदर्शी विचार भावना को आज तक समझ पाया है। संत गुरू रविदास ने वर्ण व्यवस्था पर अपना विचार रखते हुए मानव समाज को जगाने का प्रयास किया है।
दीन दुखी के हेतु जऊ, वारै अपने प्राण।
रैदास उह नर सूर को, सांचा क्षत्री जान।।
सच्चा क्षत्रीय तो वही है जो दिन दुखी को उनका अधिकार दिलाने के लिए लड़ता है जो आन्यायी है उनके न्याय दिलाने के लिए लड़ता है ऐसे सूरवीर को क्षत्री कहा जाता है। लेकिन जाति धर्म के लिए दीनदुखी असहाय और निर्बलो का जान लेने वाला कभी भी क्षत्री नही हो सकता है। क्षत्री का मतलब होता है जहॉ अन्याय हो रहा है वहॉ जाकर उसकी अकड़पन को दूर करना और भयमुक्त करना है आज ठीक उसका उल्टा हो रहा है असहाय और कमजोर निबलो को जाति और धर्म के नाम पर जो समदर्षी भाव नही है लड़ते है। सतगुरू रविदास जी कहते है कि है हे मनुष्य यह मानव जन्म हीरे के समान है अज्ञानता की नींद में कब तक सोचे रहोगे जागो और अपने मानव जन्म को बेकार मत जाने दो समदर्शी भाव रखो और सबको समान समझो जो दुनियॉ में जन्म लेकर आया है वह आपके समान ही है आपसे अलग नहीं है यह सोच समझ कर अपने विवेक से जान समझ लो। आज समाज सच्चाई को छोड़कर जाति पॉति और वर्ण व्यवस्था के चक्कर में उलझा हुआ है। सतगुरू रविदास ने कहा है कि-
जात पात के फेर में, उरझि रहे सब लोग।
मनुष्यता कू खात है, रविदास जात का रोग।।
सतगुरू रविदास जी मानव समाज को चेताते हुए कहते है कि जात पात समाज का रोग है आदमी जब बीमार हो जाता है तो उसका इलाज औषधी से किसी वैध के पास जाकर और उस औषधी का सेवन करके किया जाता है और आदमी बिमारी से मुक्त हो जाता है ठीक उसी प्रकार से मनुष्य के भीतर एक मानसिक रोग है उस रोग से मुक्त होने के लिए अपने सोच और विचार को बदलना होगा और जन्म सबका एक समान, प्रकृति  की रचना एक समान को समझकर बाह्रय अंधविश्वास और अडम्बर को त्यागकर सच्चाई को आत्मसात करके अपने कर्म में तन मन और धन से सोच विचार को बदलना पड़ेगा तभी सदियों से लगा हुआ रोग साथ छोड़ेगा और आप और हम रोग से मुक्त हो पायेगे। मानव की कोई जात नहीं होती है जो सबके लिए समान सोचे और समदर्शी विचार रखें ऐसे सतगुरू को प्रणाम करते हुए। पुनीराम गुरूजी का विश्वास है कि आप सभी पढ़कर समझकर सच को जीवन में लाने का अवसर पाये।
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