शहडोल सब्जी मंडी बनी सिरदर्द, अव्यवस्थाओं से हर दिन जाम और विवाद

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शहडोल से अनिल तिवारी की रिपोर्ट

संभागीय मुख्यालय शहडोल का सबसे बड़ा सब्जी मंडी इन दिनों अव्यवस्था और जाम की समस्या से जूझ रहा है। नगर पालिका की लापरवाही और नियंत्रण की कमी ने मंडी को नागरिकों और व्यापारियों दोनों के लिए सिरदर्द बना दिया है। सुबह-सुबह जब बाजार अपनी रौनक पकड़ता है, तो यही रौनक लोगों के लिए परेशानी का कारण बन जाती है।

सब्जी मंडी का पूरा इलाका कीचड़ और गंदगी में तब्दील हो चुका है। थोक व्यापारी अपने वाहनों—पिकअप, मेटाडोर और ट्रकों—को सीधे मंडी के भीतर और मुख्य मार्गों पर खड़ा कर देते हैं। इन बड़े वाहनों के बीच सब्जियों का क्रय-विक्रय और लोडिंग-अनलोडिंग होती रहती है। नतीजा यह होता है कि सुबह सब्जी लेने आने वाले परिवार, महिलाएं, बच्चे और आम राहगीर जाम में फंस जाते हैं। रास्ता पूरी तरह बाधित हो जाता है और हर तरफ अफरातफरी का माहौल बन जाता है।

यह स्थिति नई नहीं है। आए दिन इस समस्या को लेकर विवाद और झगड़े भी होते रहते हैं, लेकिन समाधान के लिए न तो कोई ठोस योजना बनाई जा रही है और न ही लागू की जा रही है। मजे की बात यह है कि यह मंडी नगर पालिका कार्यालय से बिल्कुल सटी हुई है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, पार्षद और यहां तक कि अतिक्रमण विरोधी मुहिम चलाने वाले कर्मचारी भी रोजाना इसी मार्ग से गुजरते हैं। बावजूद इसके, अव्यवस्थाओं पर किसी का ध्यान नहीं है।

जिला प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। एसडीएम, कलेक्टर और कमिश्नर स्तर के अधिकारी और उनके परिवारजन भी सब्जी मंडी में खरीदारी करने आते हैं या इसी रास्ते से गुजरते हैं। इसके बावजूद, समस्या जस की तस बनी हुई है। शाम के समय तो स्थिति और अधिक बिगड़ जाती है। जाम घंटों तक बना रहता है और पैदल व वाहन चालक दोनों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि यदि थोक मंडी और खुदरा मंडी को अलग कर दिया जाए और भारी वाहनों के प्रवेश पर सुबह-सुबह रोक लगा दी जाए तो काफी हद तक राहत मिल सकती है। नागरिकों का आरोप है कि जिम्मेदार अधिकारी जानबूझकर समस्या को अनदेखा कर रहे हैं।

शहडोल संभागीय मुख्यालय की इस सबसे बड़ी सब्जी मंडी की अव्यवस्था अब न सिर्फ नागरिकों बल्कि प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर रही है। फिलहाल, समाधान की कोई पहल होती दिखाई नहीं दे रही है और लोग हर दिन इस परेशानी को झेलने को मजबूर हैं।

 

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