बेटी बचाओ के नारे बने मजाक, उत्पीड़न का शिकार बनी महिला, अब विभागीय साजिश की शिकार
उत्पीड़न की शिकायत करने वाली महिला को मिली सजा, आरोपी को संरक्षण
महिला संगठनों में आक्रोश, तत्काल निलंबन व कार्रवाई की मांग
सुधीर यादव (9407070722)
शहडोल। डाक विभाग में कार्यरत एक महिला कर्मचारी के साथ हुए उत्पीड़न प्रकरण ने विभाग की कार्यप्रणाली और वरिष्ठ अधिकारियों की संवेदनहीनता को कटघरे में खड़ा कर दिया है। महिला ने साहस दिखाते हुए उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई, लेकिन न्याय दिलाने की बजाय उसे ही सजा स्वरूप तबादले का फरमान थमा दिया गया। इससे साफ जाहिर होता है कि विभागीय तंत्र आरोपी कर्मचारी को बचाने और पीड़िता को दबाने की पूरी कोशिश कर रहा है।
चौंकाने वाली घटना
18 सितम्बर 2025 की शाम करीब 6:30 बजे डाकघर में ड्यूटी के दौरान पी.ए. संजीव नामदेव ने महिला कर्मचारी से न सिर्फ अभद्र हरकत की, बल्कि विरोध करने पर जान से मारने, बदनाम करने और नौकरी से निलंबित कराने जैसी धमकियां भी दीं। महिला कर्मचारी ने इस संबंध में डाक अधीक्षक को लिखित शिकायत दी, लेकिन कार्रवाई का नतीजा और भी हैरान करने वाला निकला— आरोपी को बचाने और महिला को कमजोर साबित करने के लिए उसका षड्यंत्रपूर्वक ट्रांसफर कर दिया गया।
आरोपी को संरक्षण, पीड़िता को सजा
इस प्रकरण के सामने आने के बाद यह उम्मीद थी कि अधिकारी तुरंत आरोपी कर्मचारी को निलंबित करेंगे और निष्पक्ष जांच कराएंगे। मगर उल्टा हुआ। कार्रवाई की आड़ में पीड़िता को ही हटाकर विभाग ने अपने पक्षपात और संवेदनहीन रवैये का परिचय दिया। इससे विभागीय ईमानदारी और कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
नियम-कानून की धज्जियां
विशेषज्ञों का कहना है कि महिला उत्पीड़न की शिकायत पर तुरंत विषाखा गाइडलाइन और यौन उत्पीड़न निवारण अधिनियम 2013 के तहत आंतरिक शिकायत समिति से जांच कराई जानी चाहिए थी। लेकिन डाक विभाग ने इन कानूनी प्रावधानों की अनदेखी करते हुए पीड़िता को ही हाशिये पर धकेल दिया। महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह घटना न केवल शर्मनाक है बल्कि सरकारी दावों और “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” जैसे नारों की पोल खोलने वाली है।
आक्रोश और आंदोलन की चेतावनी
स्थानीय कर्मचारी और सामाजिक संगठन इस पूरे प्रकरण से गुस्से में हैं। उनका कहना है कि यदि साहस दिखाने वाली महिला को ही दंडित किया जाएगा तो भविष्य में कोई भी महिला कर्मचारी उत्पीड़न की शिकायत करने का साहस नहीं जुटा पाएगी। महिला संगठनों ने मांग की है कि पी.ए. संजीव नामदेव को तुरंत निलंबित किया जाए, विभागीय और कानूनी कार्रवाई की जाए तथा पीड़िता को उसकी पसंद के नजदीकी डाकघर में पदस्थापना दी जाए।
फिलहाल पीड़िता न्याय की उम्मीद में लगातार अधिकारियों के दरवाजे खटखटा रही है। लेकिन विभाग की चुप्पी और आरोपी की दबंगई इस मामले को और भी संगीन बना रही है। सवाल यह है कि जब महिला सुरक्षा और सम्मान की गारंटी देने वाले विभाग ही उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को संरक्षण देने की बजाय सजा देने लगें, तो फिर महिलाएं न्याय की उम्मीद किससे करें?