…तो क्या रोजगार के लिए आग लगा रहे बेरोजगार

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पार्क प्रबंधन की की कार्यशैली पर उठ रहे सवाल

धरातल पर नहीं है सिल्वी पॉस्चर वर्क

उमरिया। जंगल के धधकने की नई-नई कहानियां सामने आ रही हैं, लेकिन इसका आज तक पुख्ता सुराख प्रबंधन नहीं जुटा पाया कि आग कैसे और क्यों लगाई गई। अपने कुर्सी की ताकत से अपने पुत्र को जंगल सफारी और फोटो शूट कराने वाले प्रबंधन की उदासीनता बांधवगढ़ के रक्षा में रोडा बन रही है तो, वहीं सूत्रों की माने तो रोजगार की समस्या से जूझ रहे ग्रामीणों ने प्रबंधन से अपना द्वेश भुनाने के फेर में वन में दिन प्रतिदिन आग लगा रहे हैं। हजारों हेक्टेयर के जंगल जलने की राख ठण्डी नहीं हुई थी कि पुन: बीते दो दिनों पहले धमोखर बफर जोन में आग भडकने की जानकारी मिली। हालांकि इस आग पर समय रहते ही काबू पा लिया गया, लेकिन इसके बाद सुगबुगाहट मिली की प्रबंधन और ग्रामीणों के मतभेद के कारण कुछ लोग आग लगा रहे हैं। जबकि दूसरी आशंकाएं शिकारियों पर भी जताई जा रही है।
चल रहा कमीशनखोरी का खेल
प्रबंधन पर आरोप है कि वे अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन न करते हुए अपने रिस्तेदारों और चहेतों को सुख सुविधा मुहैया कराने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। यही नहीं पार्क में भ्रष्टाचार का भी बोलबाला अपने चरम पर है, जहां नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए तथाकथित ठेकेदार को लाभ पहुंचाते हुए मुनाफाखोरी और कमीशनखोरी का खेल हो रहा है। जबकि पार्क के कई क्षेत्र संचालक बदल गए, लेकिन लंबे अर्से से महज एक ठेकेदार ही पार्क में सप्लाई का बिल भुना रहा है। अलबत्ता प्रबंधन की उदासीनता से बांधवगढ़ के वन्यजीवों का जीवन दांव पर लगा है।
आशंका व्यक्त कर रहे जानकार
जिस तरह से आग भडकी और प्रबंधन को लगभग 3 दिनों तक इसकी सूचना नहीं मिल सकी, इससे पार्क प्रबंधन के सूचना तंत्र से लेकर पेट्रोलिंग व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह उठ रहे हैं। जबकि नाम न छापने की शर्त पर परासी क्षेत्र के कुछ ग्रामीणों का कहना है कि आगजनी की घटना के पीछे वजह पार्क में टाइगर रिजर्व क्षेत्र से सटे गांव के लोगों को रोजगार का न मिल पाना है, जिसे लेकर ग्रामीण क्षेत्र के कुछ लोग अपना विरोध और द्वेश भुनाने के लिए ऐसा करते हैं। जिसका जीता जागता उदाहरण है कि पार्क क्षेत्र के लिए विगत कुछ माह पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा बफर से सफर की बांधवगढ़ से शुरूआत करने के बाद स्थानीय लोगों को रोजगार देने का सपना बुना गया था, जिस पर प्रबंधन ने करारी चोंट देकर अपने चहेतों और पूंजीपतियो ंके इशारे पर लगभग 150 गाइडों में महज 8 गाइडों की भर्ती आर्थिक रूप से सक्षम लागों को भर्ती कर लिया गया, लेकिन कमजोर वर्ग को छोड दिया गया वहीं बाद में आगे की भर्ती रोक दी गई। जबकि नियमानुसार डेढ गुना गाइडो ंकी नियुक्ति की जानी थी।
पुत्र के सफारी में उड़ गए नियम
जंगल जलकर खाक हो गया और जंगली जानवरों का वास स्थल बर्बाद हो गया, लेकिन इससे क्षेत्र संचालक को उतना गहरा आघात नहीं पहुंचा, बल्कि उनके द्वारा वीवीआईपी व्यावस्था के तहत अपने पुत्र उत्कर्ष रहीम को बगैर अनुज्ञा पत्र के प्रतिबंधित क्षेत्र में शासकीय वाहन से भेजकर शिकार पर बैठी बाघिन की फोटोग्राफी के लिए खुली छूट दी गई। सूत्रों की माने तो जिन जगहों पर फोटोग्राफी करने के लिए पर्यटकों को 50 हजार रूपये जमा करना पडता है, वहां क्षेत्र संचालक के रसूख के कारण उनके पुत्र को वीवीआईपी सेवाएं मुफ्त में मुहैया कराई गई।
नहीं छूट रहा ताज मोह
बीटीआर कार्यालय में सप्लाई बिल भुगतान से लेकर क्षेत्र संचालक के वाहन में बैठाकर जंगल की सफारी तक बाहरी ठेकेदार को भी क्षेत्र संचालक ने इंट्री दे रखी है। इसका प्रमाण सोशल मीडिया में हुए वीडियो वायरल से समझा जा सकता है, जिसे लेकर एनटीसीए को शिकायत भी की गई थी। सूत्रों की माने तो क्षेत्र संचालक का ताज के साथ मोह नहीं छूट पा रहा है। जिला पंचायत द्वारा मनरेगा के तहत कई लाख रूपये सिल्वी पॉस्चर वर्क के लिए और राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण द्वारा गर्मी में अग्नि सुरक्षा हेतु राशि आवंटित की गई थी, किन्तु कोई कार्य मौके पर नहीं किया गया। जिस वजह से हाल ही में आगजनी से धधकते जंगल को काबू करने में कड़ी मस्कत करनी पड़ी। जिसमें कई जीव-जंतु भी जलकर खाक हुए, किन्तु प्रबंधन स्वीकार नहीं कर रहा है।
इनका कहना है…
यह कोई हल नहीं है, बाकी भरपूर प्रयास करेंगे कि ग्रामीणों को रोजगार मिले।
अभिषेक तिवारी
सहायक संचालक, बीटीआर
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मामले के संबंध में जानकारी लेकर मैं आपको बाद में जानकारी बताता हूं।
स्वरूप दिक्षित
प्रभारी उप वन संचालक, बीटीआर

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