…तो इस तरह छात्रों को ठग रहे नर्सिंग कॉलेज : जिला चिकित्सालय सहित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बने ट्रेनिग सेंटर @ छात्रवृत्ति की आड़ में चल रहा बड़ा फर्जीवाड़ा, जांच से सच आयेगा सामने

0

 

शहर से लेकर गांवों तक में नर्सिंग कालेजों के बोर्ड लगे हुए हैं। साथ ही इनके एजेंट भी घूम रहे हैं, यह लोग घर बैठे एएनएम, जीएनएम समेत अन्य मेडिकल संबंधी कोर्स कराने का झांसा देकर भोले-भाले छात्र-छात्राओं को ठग रहे हैं। शहरी क्षेत्र से सटे, इलाकों में ऐसे कालेजों की तादाद अधिक है। लोकलुभावन प्रचार वाले होर्डिंग एवं पंपलेट के सहारे छात्रों को पहले आकर्षित करते हैं, फिर उनको ठगते हैं, जिससे इनमें प्रशिक्षण पूरा करने वाले बच्चों को परेशान होना पड़ता है।

शहडोल। प्रदेश सरकार की मंशा अनुरूप हर साल बड़ी संख्या में योग्य व क्वालिटी एजुकेशन के साथ नर्सेस तैयार करने का लक्ष्य लेकर चल रही राज्य सरकार ने कई नियम नर्सिंग कॉलेजों के लिए बनाये थे, बीते दिनों हाईकोर्ट के फैसले के बाद संभाग के दो नर्सिंग कालेजों पर गाज भी गिरी, लेकिन आज भी संभाग में कई ऐसे नर्सिंग कॉलेज संचालित हो रहे हैं, जो नियमों पर खरे नहीं उतरते, मजे की बात तो यह है जिला प्रशासन इन नर्सिंग कॉलेजों की ओर झांकने की जहमत तक नहीं उठा पा रहा है। लेकिन शिक्षा जगत के माफिया नियमों को लील चुके हैं, जबकि उसी नर्सिंग कॉलेज को मान्यता मिलनी थी, जिसके पास खुद का अस्पताल हो, लेकिन संभाग सहित कस्बाई क्षेत्रों में नर्सिंग कॉलेज की बाढ़ आई हुई है, इन कॉलेज में सबसे ज्यादा आदिवासी वर्ग की छात्राएं नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है। कॉलेज में कोर्स के नाम पर सिर्फ वसूली की जा रही है, जबकि पढ़ाई के नाम पर न पर्याप्त शिक्षक है और न ही संसाधन। छात्राओं को प्रेक्टिकल के लिए जिला अस्पताल सहित विकास खण्डों में संचालित नर्सिंग कॉलेज की छात्राओं को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र जाना पड़ता है।

नहीं है खुद का अस्पताल

संभाग में दर्जनों की संख्या में नर्सिंग कॉलेजों का संचालन हो रहा है, इनमें से कुछ को छोडक़र बाकी संस्थाओं में आईएनसी यानी इंडियन नर्सिंग काउंसिल के नियमों का पालन कतई नहीं हो रहा है। नियमानुसार नर्सिंग कॉलेज संचालन के लिए निर्धारित पैमाने के अनुसार बिल्डिंग और सभी सुविधाएं होनी चाहिए। मसलन सुविधा युक्त लैब, विद्यार्थियों के लिए बसों की सुविधा, टॉयलेट आदि संपूर्ण होना चाहिए। लेकिन अधिकतर नर्सिंग कॉलेजों में ऐसा देखने में नहीं आ रहा है, संभाग में संचालित नर्सिंग कॉलेजों में सीटों की संख्या आधा सैकड़ा तक की है। नियमानुसार पंजीयन के 3 वर्ष बाद खुद का हॉस्पिटल होना चाहिए अथवा 50 बेड से ऊपर के अस्पतालों से संबद्धता हो जानी चाहिए, लेकिन संभाग के लगभग नर्सिंग कॉलेज जिला चिकित्सालय सहित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के भरोसे संचालित हो रहे हैं।

विद्यार्थियों से वसूल रहे रकम

संभाग में केवल दो ही प्राइवेट अस्पताल ऐसे हैं, जो 50 बेड से ऊपर, बाकी शासकीय जिला चिकित्सालय और मेडिकल कॉलेज में प्रैक्टिकल के लिए स्टूडेंट को भेजना चाहिए। भारी भरकम फीस लिए जाने के बावजूद 3 महीने की बजाय कई नर्सिंग कॉलेज द्वारा महीने भर की ट्रेनिंग दी जाती है, जबकि विद्यार्थियों से पूरी रकम वसूली जाती है। बताया गया है कि 50 हजार रुपए से लेकर एक लाख रुपए तक की वसूली होती है। रोगी कल्याण समिति जिला चिकित्सालय में पैसा जमा कराया जाता है। इसी प्रकार मेडिकल कॉलेज और प्राइवेट अस्पतालों के लिए भी लागू है। कुल मिलाकर देखा जाए तो जिले में नर्सिंग कॉलेजों का संचालन अधिकतर कागजों में ही हो रहा है। नियमों का पालन ज्यादातर कॉलेजों में नहीं हो रहा है, फैकल्टी की भी कमी है। हर सब्जेक्ट के लिए एमएससी नर्सिंग टीचर अनिवार्य है, लेकिन अधिकतर नर्सिंग संस्थाओं में इनकी कमी है। कहीं-कहीं तो एक दो कमरों में ही कॉलेजों का संचालन किया जा रहा है।

सीख नहीं पा रहे प्रशिक्षु

नर्सिंग कॉलेज में क्लीनिकल ट्रेनिंग में बहुत ज्यादा गड़बड़ी है। नियमों के अनुसार, 1:3 मरीज प्रशिक्षु रेशो होना चाहिए, लेकिन नर्सिंग कॉलेज के पास अस्पताल जैसी ऐसी कोई सुविधा ही नहीं है। छात्राओं की ट्रेनिंग के लिए उन्हें जिला अस्पताल की शरण लेनी पड़ती है। जिला अस्पताल में जितने बिस्तर है उससे तीन गुना अधिक प्रशिक्षु ट्रेनिंग के लिए जा रहे है। इस कारण वे कई महत्वपूर्ण चीजें सीख ही नहीं पा रहे है। चर्चा है कि अगर नर्सिंग कॉलेज में अध्ययनरत छात्राओं की सूची निकाली जाये तो, इसमें बड़ी गफलत सामने आ सकती है, आदिवासी छात्राओं के नाम पर आने वाली छात्रवृत्ति की आड़ में बड़ा फर्जीवाड़ा किया जा रहा है।

नियमों से परे संचालन

संभाग के नर्सिंग कालेजों ने कई जानकारियां छुपाई हैं, कालेजों के ढांचे व शिक्षकों का रिकार्डाे की भी जांच होनी चाहिए, प्रशिक्षुओं की क्लीनिक ट्रेनिंग के लिए किन संस्थानों के साथ एमओयू साइन किया गया है, संस्थान में क्या सुविधाएं हैं, जहां पर क्लीनिकल ट्रेनिंग करवाई जा रही है, क्या वहां पर अन्य कालेज के प्रशिक्षु भी ट्रेनिंग कर रहे हैं, इस तरह की जानकारी अगर विभाग खंगाले तो चौकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। सूत्रों की माने तो लगभग कॉलेज नियमों से परे ही संचालित हो रहे हैं, जागरूक लोगों ने जनप्रिय संभागायुक्त से मांग की है कि संभाग में संचालित नर्सिंग कॉलेजों की जांच कराई जाये एवं नियमों के विपरीत संचालित नर्सिंग कॉलेजों को बंद कराया जाये, जिससे छात्राओं का भविष्य खराब न हो सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed