ऊर्जा नगरी में कबाड़ माफिया का आतंक
वर्दीधारियों की भूमिका पर खड़े हो रहे सवाल
उमरिया। जिले की ऊर्जा नगरी के नाम से मशहूर बिरसिंहपुर पाली क्षेत्र कबाड़ माफियाओं से सुरक्षित नहीं है। कोयला खदानों एवं ताप विद्युत गृह से रोजाना बड़े पैमाने पर कबाड़, मशीनरी पार्ट, लोहा के स्क्रैप, केबुल, एल्युमिनियम तार, महंगी लाईट, कन्वेयर बेल्ट, रोलर, पाईप, जीआईसीट आदि कीमती सामान कबाडिय़ों के द्वारा आए दिन गायब किए जा रहे हैं। पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी बदलते रहते हैं, लेकिन इन माफियाओं के अवैध कार्यों पर कभी भी नकेल नहीं कसी जा सकी है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्या वजह है कि माफिया रात हो या दिन धड़ल्ले से अपने अवैध कार्य को अंजाम दे रहे हैं। कबाड़ माफिया एसईसीएल सहित ताप विद्युत गृह को लगातार खोखला कर रहे है।
खाकी के गठजोड़ से चल रहा कारोबार
संजय गांधी ताप विद्युत गृह में इतनी पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था होने के बावजूद भी परियोजना में होनी वाली चोरियों को रोकने में सुरक्षाकर्मी क्यो नाकाम साबित हो रहे है? जिससे चोरों के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि दिन दहाड़े भी अब चोरियो को अंजाम देने का दु:साहस कर ले रहे है। सूत्रों की माने तो खाकी व खादी के गठजोड़ से माफिया का खेल आसान हो पाता है। आखिर न जाने फिरोज को किसका संरक्षण प्राप्त है। जिससे इनका काम निर्वाध गति से निरन्तर चल रहा है। शारदा नामक व्यक्ति विद्युत गृह से रोलर पार कर कथित फिरोज के ठीहे पर पहुंचाता है, जब कभी थाना प्रभारी को सूचना दी जाती है तो, वह आरक्षक-प्रधान आरक्षकों से कबाडिय़ों के ठीहे पर दबिश डलवाते हैं, जबकि पहले ही वर्दीधारियों की यहां सेटिंग होने की चर्चा आम हो चली है।
पुलिस की अंदरूनी सहमति
बिरसिंहपुर थाना में आये दिन चोरी की शिकायतें दर्ज होती रहती है, कबाड़ व्यवसाय पर अंकुश नहीं लग पा रहा है, जिससे लोगों के नवनिर्मित भवनों, सार्वजनिक स्थलों में लोग अपनी जरूरत की चीजों पर हाथ-साफ करने में इन दिनों कबाड़ माफिया के गुर्गे सक्रिय है, कबाड़ माफिया के इस कार्य में अंकुश न लगने से ऐसा प्रतीत होता है कि शायद स्थानीय पुलिस प्रशासन की अंदरूनी मौन सहमति मिली हुई है, यही कारण है कि पुलिस के नाक के नीचे कबाड़ माफिया का अवैध कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है, एक अनुमान के मुताबिक तांबे के तार की कीमत लगभग 500 से 600 रूपये किलो होती है, कबाड़ माफिया के गुर्गे ताप विद्युत गृह से तांबे के तारों को उखाड़ कर लाते हैं और कबाड़ माफिया को बेचे देते हैं।
दिखावे की कार्यवाही
मजेदार बात यह कि ऊर्जा नगरी में आधा दर्जन कबाड़ व्यवसायी हैं। जो बेरोकटोक व बेखौफ कारोबार कर रहे हैं। इन पर किसी का नियंत्रण नहीं होने से दिन ब दिन कबाडिय़ों की संख्या में बढ़ती जा रही है। कबाड़ी बिना सत्यापन के साइकिल, मोटरसाइकिल एवं अन्य चोरियों के सामान को बेधडक़ खरीद रहे हैं। इस व्यवसाय में जिले के बाहर से आए लोग सक्रिय हैं। उनके द्वारा ही जिले में इस व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा रहा है। आलम यह है कि पुलिस कबाडिय़ों पर नकेल नहीं कस पा रही है। कभी कभार ऐसे लोगों पर कार्रवाई कर औपचारिकता पूरी की जाती है, जो रद्दी व चोरी के एकाध सामान पार करते हैं।
पानी के मोल खरीद रहे कबाड़
कोयला खदानों एवं ताप विद्युत गृह से रोजाना बड़े पैमाने पर कबाड़, मशीनरी पार्ट, लोहा के स्क्रैप, केबुल, एल्युमिनियम तार, महंगी लाईट, कन्वेयर बेल्ट, रोलर, पाईप, जीआईसीट आदि फिरोज, शंभू, शलीम और रंजीत के गुर्गे पार कर माफियाओं के ठीहे तक पहुंचाते हैं, दिन-दहाड़े सार्वजनिक स्थानों से साइकिल और बाइक चोरी हो रहीं हैं, साइकिल चोरी होने पर अमूमन लोग थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते, क्योंकि पुलिस इसे छोटा मामला बताकर ध्यान नहीं देती। मोटर सायकल चोरी की रिपोर्ट तो लिखी जाती है, लेकिन अक्सर ये वापस नहीं मिलते। इसका कारण यह है कि चोरी की साइकिल और बाइक के कलपुर्जे को अलग-अलग कर कबाड़ में बेच दिया जाता है। इसके अलावा इस धंधे में लोहे के सामान व घरेलू उपयोग के सामान सहित कई कीमती समान पानी के मोल कबाड़ी अपने दलालों के माध्यम से खरीद कर लाखों कमाते है।
धंधे में बच्चे भी
कई मामले ऐसे भी आए हैं, जिनमें कबाड़ी बच्चों से चोरी के माल खरीदते हैं, वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किशोरों को चोरी करने के लिए प्रेरित करते हैं। ये किशोर प्राय: गरीब तबके के होते हैं। पारिवारिक व सामाजिक मार्गदर्शन नहीं मिलने से वे घरो के आस-पास फेंके गए कचरे में से कबाड़ चुनते है, बाद में इन बच्चों पर पारिवारिक नियंत्रण नहीं होने के कारण नशे के गिरफ्त में आ जाते है और अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए चोरी के धंधे में उतर आते हैं।