दोषियों पर बरसी कृपा: शहडोल का सीवरेज प्रोजेक्ट बना सौदेबाजी का अड्डा

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शहडोल।शहर की जनता धूल-कीचड़ में कराह रही है, सड़कें खोदकर छोड़ी जा चुकी हैं, दुर्घटनाओं का खतरा हर रोज़ मंडरा रहा है—लेकिन जिन पर कार्रवाई होनी थी, उन पर कृपा बरस रही है। 24 करोड़ का सीवरेज प्रोजेक्ट अब यह बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है कि आखिर दोषियों पर इतनी मेहरबानी क्यों? जिस कंपनी को ब्लैकलिस्ट करना था, उसे दोबारा वही काम क्यों दे दिया गया? आखिर यह कंट्रोल कहां से हो रहा है?
गुजरात की अहमदाबाद की पीसी स्नेल कंस्ट्रक्शन कंपनी पर गंभीर आरोप सिद्ध हुए। बिना शोरिंग गहरे गड्ढे खोदना, बस्तियों को खतरे में डालना, सुरक्षा नियमों की धज्जियां उड़ाना और काम में बेशर्मी से देरी करना—सब कुछ दस्तावेज़ों में दर्ज है। एमपीयूडीसी को नोटिस जारी करना पड़ा। नियम साफ कहते हैं कि ऐसी कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर बाहर का रास्ता दिखाया जाए। लेकिन यहां उल्टा हुआ। कंपनी को फिर एक्सटेंशन मिल गया और काम उसी को सौंप दिया गया।
अब सवाल यही है आखिर यह कृपा किसकी है? यह सौदा किस कीमत पर हुआ? क्या जनता की जान के बदले कोई और समझौता हो गया? 43 महीने में सिर्फ 61 प्रतिशत काम पूरा हुआ, और अब दावा है कि बाकी का 39 प्रतिशत काम 6 महीने में हो जाएगा। क्या यह गणित है या जनता को बेवकूफ बनाने की नई चाल?
सबसे बड़ा रहस्य यह है कि इस पूरे मामले पर शहर की जिम्मेदार संस्थाएं चुप क्यों हैं? वे संगठन जो हर मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं, प्रदर्शन करते हैं, वे यहां कहां गायब हो गए? स्थानीय जनप्रतिनिधि क्यों खामोश हैं? क्या वोट बैंक की राजनीति में शहडोल के नागरिकों की पीड़ा की कोई कीमत नहीं?
शहर की हालत यह है कि जगह-जगह गड्ढे, धूल और कीचड़ से लोग रोज़ाना परेशान हैं। बरसात में सड़कों पर फिसलन से दुर्घटनाएं बढ़ी हैं, बीमारियां फैल रही हैं। लेकिन जिम्मेदार अधिकारी और नेता मानो आंख मूंदे बैठे हैं। ठेकेदार को बचाने का यह खेल आखिर किसके इशारे पर चल रहा है?
जनता पूछ रही है शहर का सौदा किसने किया? दोषी ठेकेदार को बचाने की यह मिलीभगत क्या सिर्फ प्रशासन और कंपनी के बीच है, या फिर इसके तार कहीं और तक जुड़े हैं? क्यों उन पर मेहरबानी की जा रही है, जिन्हें ब्लैकलिस्ट कर देना चाहिए था?

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