सोशल मीडिया पर “आत्मदाह” की धमकी से मची सनसनी अफवाह, ब्लैकमेल या सच्ची पीड़ा?

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(अनिल तिवारी – 7000362359)
शहडोल। सोशल मीडिया के दौर में अब आंदोलन और विरोध के तरीके भी डिजिटल होते जा रहे हैं। कभी धरना, कभी प्रदर्शन और अब “आत्मदाह की घोषणा”  लेकिन वह भी न प्रशासन को, न किसी जिम्मेदार अधिकारी को, बल्कि व्हाट्सएप ग्रुपों और फेसबुक पोस्टों के जरिए! जिले में बीती रात ऐसा ही एक मामला चर्चा का विषय बन गया, जब “शकील” नामक युवक ने सोशल मीडिया पर घोषणा कर दी कि वह आज सुबह 11:00 बजे आत्मदाह करेगा।
यह संदेश विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों में तेजी से वायरल हुआ, और कई लोगों तक व्यक्तिगत रूप से भी पहुंचाया गया। पोस्ट में यह तक नहीं बताया गया कि आत्मदाह किस कारण किया जाएगा या उसकी शिकायत क्या है बस यह लिखा गया कि “मदद करें, मैं 11 बजे आत्मदाह करूंगा।”
गौर करने वाली बात यह है कि इस कथित आत्मदाह के संबंध में न तो सोहागपुर थाना, न स्थानीय एसडीएम या तहसीलदार को किसी भी प्रकार की लिखित सूचना दी गई। मतलब यह पूरा मामला सिर्फ सोशल मीडिया पर मौजूद है ।जहां आजकल कोई भी, कभी भी, कुछ भी घोषित कर सकता है और कुछ पलों में “मीडिया खबर” बन जाती है।
प्रशासन और पुलिस की ओर से इस प्रकरण को लेकर अब तक कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है। पुलिस न तो इस घोषणा को गंभीरता से लेती दिख रही है, न ही यह स्पष्ट कर रही है कि वह इस वायरल संदेश की जांच कर रही है या नहीं।
सूत्रों की मानें तो चर्चा यह भी है कि उक्त युवक का किसी व्यक्ति से पैसों का लेनदेन हुआ था, और बैंक में चेक प्रस्तुत होने के बाद विवाद खड़ा हो गया। संभवतः उसी विवाद को नया मोड़ देने के लिए यह “आत्मदाह का नाटक” रचा गया हो। हालांकि यह मात्र चर्चाएं हैं, जिनकी पुष्टि नहीं की जा सकी है।
यह घटना समाज के गिरते नैतिक मानकों और सोशल मीडिया के गैर-जिम्मेदार उपयोग की गवाही देती है। जिस “आत्मदाह” जैसे गंभीर शब्द का कभी उपयोग अंतिम निर्णय के रूप में किया जाता था, अब उसे लोग ध्यान आकर्षित करने के हथियार की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं। यही वजह है कि प्रशासन भी धीरे-धीरे ऐसे संदेशों को “फर्जी हल्ला” मानकर अनदेखा करने लगा है जो भविष्य के लिए बेहद खतरनाक संकेत है।
सबसे चिंताजनक यह है कि ऐसे “वायरल आत्मदाह” ट्रेंड के पीछे अब डिजिटल ब्लैकमेलिंग की प्रवृत्ति भी जन्म ले रही है। कोई अपनी शिकायत जबरिया मनवाने के लिए, तो कोई मीडिया या यूट्यूबर्स की सहायता से दबाव बनाने के लिए इस तरह के संदेश प्रसारित कर रहा है। वहीं कुछ यूट्यूब चैनल, ब्लॉगर और तथाकथित “फेसबुकिया पत्रकार” भी इस तरह की अफवाहों को बिना पुष्टि फैलाकर समाज में अस्थिरता बढ़ा रहे हैं।
पुलिस और प्रशासन के लिए अब यह आवश्यक हो गया है कि ऐसे मामलों को सिर्फ अफवाह न मानते हुए तुरंत जांच की जाए  ताकि यह स्पष्ट हो सके कि मामला सच्चा है या महज प्रचार का हथकंडा। यदि मामला फर्जी निकले, तो इस तरह के वायरल संदेशों को फैलाने वालों के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।

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