जगमगाया सिद्धपीठ श्री सीताराम की दीपमालाओं से निखरी भक्ति की अद्भुत छटा दक्षिणमुखी बड़े हनुमान जी के दरबार में दीपों का सागर, श्रद्धा और आस्था का अनुपम संगम
जगमगाया सिद्धपीठ श्री सीताराम की दीपमालाओं से निखरी भक्ति की अद्भुत छटा
दक्षिणमुखी बड़े हनुमान जी के दरबार में दीपों का सागर, श्रद्धा और आस्था का अनुपम संगम
कटनी।। दीपावली के पावन पर्व पर श्री श्री 1008 सिद्धपीठ दक्षिणमुखी बड़े हनुमान जी का मंदिर अलौकिक प्रकाश से जगमगा उठा। हजारों दीपों की श्रृंखला से सजा यह प्राचीन मंदिर परिसर आध्यात्मिक आस्था और भक्ति का केंद्र बन गया। भक्तों ने सैकड़ों दीयों और बातियों से मिलकर “श्री सीताराम” शब्द लिखा, जो मंदिर परिसर में आकर्षण का मुख्य केंद्र रहा। शाम ढलते ही जैसे ही आरती की घंटियां गूंजीं, पूरा परिसर भक्ति भाव से सरोबार हो उठा। श्रद्धालुओं ने दीप जलाकर प्रभु श्रीराम और श्री सिद्ध पीठ दक्षिण मुखी बड़े हनुमान जी महाराज जी से सुख-समृद्धि और शांति की कामना की। मंदिर के महंत और पुजारियों द्वारा विशेष पूजा-अर्चना, हनुमान चालीसा और सुंदरकांड पाठ का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए। दीयों से सजे मंदिर की दिव्यता ने ऐसा दृश्य प्रस्तुत किया मानो आकाश के तारें धरती पर उतर आए हों। मंदिर प्रांगण में जलते हजारों दीपों की पंक्तियों ने ऐसा दृश्य निर्मित किया मानो स्वयं प्रभु श्रीराम का अयोध्या आगमन हो गया हो। भक्तों ने दीपक और बातियों से मिलकर विशाल आकार में “श्री सीताराम” लिखा — जो पूरे परिसर का केंद्रबिंदु बना रहा। उस दिव्य दृश्य को देखने भक्तों का तांता लगा रहा। हर दीप में भक्ति की लौ थी, हर आंख में श्रद्धा की चमक। मंदिर की परिक्रमा पथ, गर्भगृह की चौखट और विशाल प्रांगण सब जगह दीपों की कतारें ऐसी जगमगाईं कि हर ओर स्वर्णिम आभा बिखर गई। बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों ने दीपदान करते हुए एक-दूसरे को दीपावली की शुभकामनाएँ दीं। सिद्धपीठ प्रबंधन समिति के सदस्यों ने बताया कि इस बार की सजावट और दीपोत्सव पूरी तरह भक्तजन सहयोग से संपन्न हुआ, जिसमें श्रद्धालुओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
मंदिर की परिक्रमा पथ पर सजे दीपों की पंक्तियों और “श्री सीताराम” की दीप्त आभा ने कटनीवासियों को अध्यात्म और आस्था से जोड़ दिया। मंदिर परिसर में दीपों की लहराती रोशनी और “श्री सीताराम” की दमकती आकृति ने श्रद्धा का ऐसा दृश्य प्रस्तुत किया जो कटनी की दीपावली के इतिहास में यादगार बन गया।.दीपों के इस महापर्व ने यह संदेश दिया कि “जहाँ प्रकाश है, वहीं प्रभु हैं; और जहाँ प्रभु हैं, वहीं सच्चा दीपोत्सव है।” जहाँ दीप की ज्योति है, वहीं दिव्यता है; और जहाँ “श्री सीताराम” की वाणी है, वहीं सच्चा दीपोत्सव है।