प्रदेश का सबसे बड़ा जमीन घोटाला! आदिवासियों के नाम पर खरीदी 1111 एकड़ जमीन, गवाहों की गुमशुदगी से मचा हड़कंप कटनी से दिल्ली तक हलचल,जमीन प्रकरण में मचा सियासी भूचाल
प्रदेश का सबसे बड़ा जमीन घोटाला! आदिवासियों के नाम पर खरीदी 1111 एकड़ जमीन, गवाहों की गुमशुदगी से मचा हड़कंप कटनी से दिल्ली तक हलचल,जमीन प्रकरण में मचा सियासी भूचाल
कटनी।। प्रदेश का अब तक का सबसे बड़ा आदिवासी जमीन घोटाला कहे जा रहे मामले ने नया मोड़ ले लिया है। विजयराघवगढ़ से भाजपा विधायक संजय पाठक के नाम से जुड़ा यह मामला अब और गहराता जा रहा है। आरोप है कि विधायक ने चार आदिवासी कर्मचारियों के नाम पर कटनी, डिंडोरी, उमरिया, जबलपुर और सिवनी जिलों में लगभग 1111 एकड़ आदिवासी भूमि की खरीदी की गई जो अनुसूचित जनजाति भूमि संरक्षण के नियमों का सीधा उल्लंघन है।
चारों आदिवासी कर्मचारी लापता, परिवारों ने कहा “बाहर गए हैं
इस पूरे प्रकरण में नई बात यह है कि जिन चार आदिवासी कर्मचारियों नत्थू कोल, प्रहलाद कोल, राकेश सिंह गौड़ और रघुराज सिंह गौड़ के नाम पर यह जमीन खरीदी गई, वे अब “लापता” जैसी स्थिति में बताए जा रहे हैं।
शिकायतकर्ता दिव्यांशु मिश्रा अंशु ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (ST Commission) को दी शिकायत में दावा किया है कि चारों आदिवासियों का संपर्क परिवारों से भी टूट चुका है। प्रशासन ने जब पूछताछ हेतु नोटिस भेजना चाहा, तो परिवारों ने यह कहकर नोटिस लेने से इनकार कर दिया कि वे घर पर नहीं हैं, कहीं बाहर गए हैं। उनके मोबाइल फोन लगातार स्विच ऑफ मिल रहे हैं।
नोटिस की मियाद खत्म, जांच अधूरी
कटनी कलेक्टर कार्यालय से 14 अक्टूबर को चारों आदिवासियों को नोटिस जारी कर 16 अक्टूबर को उपस्थित होने के निर्देश दिए गए थे। नोटिस में उनसे आमदनी के स्रोत, पहचान, बैंक खातों और जमीन खरीदी के दस्तावेजों की जानकारी मांगी गई थी। मगर तय तारीख पर चारों में से कोई भी उपस्थित नहीं हुआ। बताया गया कि प्रशासन ने एक कर्मचारी को छकौड़ी लाल पाठक वार्ड में प्रहलाद के पते पर नोटिस तामील कराने भेजा था, लेकिन उसकी बेटी ने यह कहते हुए नोटिस लेने से इंकार कर दिया कि “पिता बाहर गए हैं और मोबाइल बंद है।” इस बीच आयोग द्वारा कलेक्टरों से मांगी गई तथ्यात्मक रिपोर्ट की मियाद 15 अक्टूबर को पूरी हो चुकी है, लेकिन जांच अब भी अधूरी है। आयोग ने पहले ही स्पष्ट किया था कि यदि नियत समय में रिपोर्ट नहीं मिली तो वह संविधान के अनुच्छेद 338(क) के तहत सिविल न्यायालय जैसी शक्तियों का प्रयोग करते हुए समन जारी कर सकता है।
सुरक्षा की मांग, ‘साजिश’ का आरोप
शिकायतकर्ता दिव्यांशु मिश्रा ने आयोग से सुरक्षा की मांग की है। उनका कहना है कि यह प्रदेश का सबसे बड़ा आदिवासी जमीन घोटाला है, जिसकी परतें खुलने से पहले ही प्रमुख गवाहों या आदिवासियों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है।
उन्होंने आशंका जताई कि “चारों आदिवासियों और उनके परिवारों को किसी साजिश के तहत गायब किया गया हो।” उन्होंने प्रशासन से गुहार लगाई है कि इनकी लोकेशन ट्रेस कर सुरक्षा मुहैया कराई जाए।
नियमों को ताक पर रखकर हुई जमीन की खरीदी
जानकारी के अनुसार, अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत आदिवासी जमीन केवल आदिवासी ही खरीद सकता है, या विशेष परिस्थितियों में जिला कलेक्टर की अनुमति से ही गैर-आदिवासी को बेची जा सकती है। लेकिन इस मामले में कथित रूप से कर्मचारियों के नाम पर बड़े पैमाने पर जमीनें खरीदी गईं, जबकि असल निवेशक और लाभार्थी कोई और बताए जा रहे हैं। कई जमीनें तो ऐसी भी हैं जिनकी रजिस्ट्री एक ही दिन में दर्जनों एकड़ में हुई, जिससे लेनदेन पर शक और गहराता जा रहा है।
आयोग की सख्ती और प्रशासन की चुप्पी
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने सभी संबंधित जिलों के कलेक्टरों को नोटिस जारी कर पूरा ब्यौरा, दस्तावेज और जांच रिपोर्ट मांगी थी। आयोग का कहना है कि यह मामला न केवल आदिवासी अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि यह भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े का भी गंभीर उदाहरण हो सकता है।
फिलहाल प्रशासनिक स्तर पर कोई स्पष्ट बयान सामने नहीं आया है।
मामला गहराता जा रहा है
चार आदिवासियों का लापता होना, नोटिस तामील से इनकार, और रिपोर्ट की मियाद पूरी होने के बाद भी जांच लंबित रहना ये सारे तथ्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि मामला बेहद गंभीर है और नियमों को ताक पर रखकर बड़े स्तर पर खेल किया गया है। अब सबकी निगाहें एसटी आयोग की आगामी कार्रवाई और विधायक संजय पाठक के जवाब पर टिकी हैं, क्योंकि प्रदेश की राजनीति में यह प्रकरण एक बड़ा तूफ़ान खड़ा कर सकता है।