“शहडोल अस्पताल का अजब-गजब दस्तूर: रिश्वतखोर डॉक्टरों का नया खेल, अपराध से पहले ही बचाव का इंतज़ाम!”

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(अनिल तिवारी)

शहडोल में जिला अस्पताल का अजब-गजब दस्तूर: रिश्वतखोर डॉक्टरों का नया खेल, अपराध से पहले ही बचाव का इंतज़ाम!”ल वाकई अजब भी है और गजब भी। यहां हमेशा ऐसे मामले सामने आते हैं, जो पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में मिसाल बन जाते हैं—वो भी व्यंग्यात्मक मिसालें! नया मामला सामने आया है कुशाभाऊ ठाकरे जिला चिकित्सालय का, जहां डॉक्टरों ने भ्रष्टाचार का ऐसा फार्मूला ईजाद कर लिया है, जिसे पढ़कर कोई भी कहेगा—”वाह रे शहडोल, तू तो गजब है!”

ऑपरेशन से पहले ही वसूली का पाठ

जिला चिकित्सालय में वर्षों से यह दस्तूर चला आ रहा है कि मरीजों का प्राथमिक इलाज तो किया जाता है, लेकिन जैसे ही ऑपरेशन की नौबत आती है, उन्हें मोटी रकम का बिल थमा दिया जाता है। मजे की बात ये कि डॉक्टर खुद ही “ऑफर” देते हैं—”बाहर करवाओगे तो इतना खर्चा आएगा, हम आधे में यहीं कर देंगे।” सवाल ये उठता है कि आखिर सरकारी अस्पताल में ऑपरेशन मुफ्त होने चाहिए, तो ये “आधे में सस्ता” पैकेज कौन सा जादुई बाजार है?

अपराध से पहले ही बचाव का पैंतरा

अब असली गजब देखिए—शहडोल अस्पताल में डॉक्टरों और कर्मचारियों ने रिश्वतखोरी को “कानूनी सुरक्षा” देने का नया तरीका खोज निकाला है। जब मरीज भर्ती होता है, तो बाकी कागजों के साथ एक “जादुई पर्चा” भी थमा दिया जाता है। उसमें लिखा होता है:

“हम अपनी मर्जी से इलाज कर रहे हैं।”

“हमसे कोई पैसा नहीं लिया गया।”

“हम रिश्वत नहीं दे रहे, न ही किसी ने मांगी।”

और मजे की बात ये कि ये स्लोगन हर मरीज के लिए अलग-अलग लिखे जाते हैं, ताकि पकड़ में भी न आएं। कई बार अस्पताल के कर्मचारी ही यह “सत्यापन-पत्र” भर देते हैं और मरीज या परिजन से सिर्फ सादे में हस्ताक्षर ले लिए जाते हैं। यानी अपराध करने से पहले ही बचाव का इंतज़ाम—रिश्वतखोरी का ऐसा बीमा शायद दुनिया में कहीं और न मिले!

परेशान मरीज और मजबूर परिजन

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इलाज कराने आए गरीब और मजबूर लोग, जो सरकारी अस्पताल का रुख इसलिए करते हैं क्योंकि निजी अस्पतालों का खर्चा वहन नहीं कर सकते, उन्हें यही कागज थमा दिए जाते हैं। बीमार मरीज और ग़मगीन परिजन आखिर करें भी तो क्या? इलाज के नाम पर डराए गए ये लोग मजबूरी में लिखने को तैयार हो जाते हैं कि—”हम पर कोई दबाव नहीं है।”
यह दृश्य भावुक भी है और व्यंग्यात्मक भी—जहां बीमारी का दर्द अलग और “झूठ लिखने” की मजबूरी अलग।

सोशल मीडिया में वायरल, जनता में ठहाके

इन “घोषणापत्रों” की प्रतियां सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। लोग पढ़कर ठहाके लगा रहे हैं—”शहडोल में कब अजब हो जाए और कब गजब, कहा नहीं जा सकता।” कुछ लोग इसे नया जुगाड़ू जस्टिस कह रहे हैं, तो कुछ इसे रिश्वत का लीगल पेपर।

अतीत में भी रहे हैं गजब मामले

याद दिला दें कि शहडोल का इतिहास भी ऐसे ही “गजब” मामलों से भरा पड़ा है—पेंट घोटाला, ड्राई फ्रूट घोटाला और न जाने कितने घोटाले। जांच का नतीजा? वही जो हमेशा होता है—कागज़ों में गुम। अब ये नया “ऑपरेशन रिश्वत बीमा” भी शायद उसी अंजाम को पहुंचेगा।

आखिर सवाल वही पुराना

गरीब और लाचार मरीज आखिर जाएं तो कहां जाएं? जब सरकारी अस्पताल भी पैसों की चौखट पर ही इलाज का दरवाजा खोलते हैं, तो इन मजबूर लोगों को झूठे दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के सिवा कोई चारा नहीं बचता।

इनका कहना है 

पूर्व सिविल सर्जन डॉक्टर जी एस परिहार के द्वारा यह चालू कराया गया था,हमने बंद किया था,अब कैसे कर रहे है,खबर नहीं, हम दिखवाते हैं।

डॉ शिल्पी सराफ

सिविल सर्जन ,

जिला चिकित्सालय शहडोल 

 

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