ट्रांसफार्मर बिना उजाला नहीं, बोर बिना पानी की मशक्कत

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7 दशकों में भी नहीं मिली आदिवासियों को मूलभूत सुविधाएं

शहडोल। सन् 1956 में मप्र का गठन हुआ इसके बाद से अब तक लगभग 7 दशक का समय बीत गया है। इतने अंतराल में विकास के नाम पर खास तौर पर आदिवासी अंचलों के लिए न जाने कितना धन उड़ेेला गया होगा और आगे भी उड़ेेला जाएगा, लेकिन बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति आज तक नहीं हुई। अनूपपुर जिला अंतर्गत स्थित पुष्पराजगढ़ ब्लाक की ग्रामपंचायत खरसौल दूरस्थ पंचायत है इसके अंतर्गत ग्राम खरसौल तथा मझउली टोला इसी तरह के उपेक्षित तथा सुविधाविहीन ग्रामीण अंचल हैं। ग्रामीणों को अफसर अधिकारी व नेता विधायक सिफ आश्वासन देेते हैं लेकिन काम कभी नहंी होता है। न तो यहंा बिजल ी की सुविधा है और पर्याप्त पेय जल की व्यवस्था है। लम्बी दूरी तय कर आज भी यहां के ग्रामीण पानी लाने को विवश हैं। ग्रामीणों ने इस बार कमिश् नर शहडोल से शिकायत कर उनका ध्यान आकृष्ट कराया है।

ट्रांसफार्मर नहीं लगा

इन क्षेत्रों में आज तक बिजली की रोशनी इसलिए देखने को नही मिली क्योंकि यहां के लिए एक ट्रांसफार्मर होना अति आवश्यक है। ट्रांसफार्मर लगाने के लिए न जाने कितने बार ग्रामीणों ने अफसरों और जनप्रतिनिधियों का ध्यान आकृष्ट कराया है लेकिन आज तक सिर्फ आश्वासन ही मिला है। एक बार ग्रामीणों ने कलेक्टर से भेंट की थी, कलेक्टर ने आश्वासन दिया था कि चुनाव बाद ट्रांसफार्मर लगवाकर बिजली की सुविधा उपलब्ध करा दी जाएगी। चुनाव बीते महीनेा निकल गए, सरकार भी चलने लगी लेकिन यहां कलेक्टर का आश्वासन अभी तक पूरा नहीं हुआ। जनप्रतिनिधि या अफसर कभी इस गांव का मुआयना नहीं करते हैं।

पानी के लिए 1 किमी की दौड़

खरसौल व मझउली टोला में पानी की उपलब्धता भी त्रास से भरी है। ग्रामीणों को लगभग एक किमी दूर स्थित किसी स्त्रोत से पानी लाना पड़ता है। गर्मी के दिनों मेंं तो यहां लोग बूंद बंूद पानी को सिसकते हैं। पानी के लिए वर्ष 2017 से 2023 तक लगातार आवेदन दिए गए हैं लेकिन जिला प्रशासन अनुपपुर और पीएचई विभाग सुनवाई करने को तैयार नहीं है। ग्रामीणों के आवेदन शायद रद्दी टोकरी में डाल दिए जाते हैं। ग्रामीणों की परेशानी से यहां प्रशासन के अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को कोई मतलब ही नहीं है। यहां कुछ बोर किए जाने की बेहद जरूरत है। लेकिन बोर कराने की फुर्सत किसी के पास नहीं है ।

पक्की सड़कों की भी कमीं

पुष्पराजगढ़ के इन क्षेत्रों में आज भी पक्की सड़कों का अभाव है। आने जाने के लिए ग्रामीणों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। मीलों दूर पैदल चलने के ेबाद बसें मिलती हैं, यहां आटो रिक्शा भी बहुत कम चलते हैं कारण यही कि यहां पक्की सड़कें नहीं हैं। सड़कें बन जाएं तो बसें चलने लगेंगी और ग्रामीणों को आवाजाही की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। ग्रामपंचायत की बस्तियों में भी ग्रेवल रोड की कमी है। बस्तियों में एक टोले से दूसरेे टोले को जोड़ने के लिए कच्चे ढर्रों का ही सहारा लेना पड़ता है। वर्षाकाल में बहुुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। आज भी यहां आवाजाही के लिए गांव में कुछ ट्रैैक्टर हैं उन्ही का सहारा लेना पड़ता है।

भुगतान नहीं हो रहा

ग्रामपचंायत का भी हाल बहुत अच्छा नहीं है, विकास कार्य तो फिसड्डी हैं ही, सरपंच व सचिव की मनमानी भी जमकर चल रही है। इन्होने भी कभी पानी टंकी व बोर के लिए खास प्रयास नहीं किया। और तो और सरोवर तालाब में एक वर्ष पहले श्रमिकों ने काम किया था। तालाब निर्माण में श्रमिकों ने पूरी मेहनत की लेकिन मजदूरी का भुगतान आज तक नहीं किया गया। जबकि लगभग एक वर्ष का समय बीत गया है। जानकारी मिली है कि सरपंच व सचिव ने मजदूरी का बिल लगाकर 15 सितंबर 23 को रकम आहरित कर ली है। जबकि श्रमिकों को आज भी सरपंच व सचिव गुमराह कर रहे हैं। शिकायतकर्ताओं में कमलाबाई, सकुंतलाबाई, गणेश सिंह, नरेश सिंह, सुंदर सिंह आदि ग्रामीण शामिल रहे।

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