कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं कोई बेवफ़ा नहीं होता # कबाड़ का नया सिंडिकेट #बड़ी कंपनी का मार्गदर्शन

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..तो पुलिस मैनेजमेंट से कबाड़ माफिया

को मिली संजीवनी

उमरिया से लेकर शहडोल सहित

अनूपपुर में फैलाया नेटवर्क

चोरी के वाहन सहित खदानों के

उपकरण और आम घर निशाने पर

पुलिस विभाग को अवैध कबाड़ के ठीहो और इन ठीहो पर हो रहे अवैध कार्याे से परहेज होने लगी है। संभाग के तीनों जिलों की कोल माईंसे दशको से इनके निशानों पर रही है, लेकिन अब चोरी के वाहन और सूने घर सहित जहां जुगाड़ लगे की तर्ज पर अब यह ठीहे संगठित आपराधिक गिरोहों में बदल चुके हैं। अचरज इस बात का है कि सबकुछ खुलेआम होता है और कार्यवाही के नाम पर सिर्फ कोरम पूरा होता है।

शहडोल। संभाग के तीनों जिलों की कोल माईंसो के अलावा प्रमुख कस्बों में कबाड़ का कारोबार संगठित आपराधिक गिरोह की शक्ल ले चुका है, एक दशक पहले तक छोटे-छोटे कबाड़ी टिन और रद्दी के नाम पर कारोबार करते थे, लेकिन समय के साथ इन स्वरूप बदला, बेरोजगारों की भीड़ ने इन गिरोहों में दस्तक दी और क्षेत्र की कोल माईंसे सबसे पहले निशाना बनी, हालाकि मुख्यालय में कोई कोल माईंस नहीं है, बावजूद इसके यहां आधा दर्जन कबाड़ी सक्रिय हैं, जिनके खिलाफ पूर्व में जब कार्यवाहियां हुई तो, माईंसों से चोरी गया लोहा, उपकरण और चोरी के वाहनों सहित रिहायशी इलाकों में हुई चोरियों के दर्जनों राज खुले। शहडोल सहित अनूपपुर और उमरिया में अलग-अलग कबाडिय़ो के ठीहे और उनकी संख्या दो दर्जन से अधिक रही, सबके तार जबलपुर और रायपुर की मंडियों से जुड़े थे, लेकिन संभाग में 8 से 10 वर्ष पूर्व की एक पटकथा पुन: लिखी जा रही है, जिसमें पुलिस की चुप्पी, पुलिस का आशीर्वाद और पुलिस की साझेदारी नजर आने लगी है। अधिकारी इस संदर्भ में आरोपों का खण्डन तो करते हैं, लेकिन शहडोल के तथाकथित कबाड़ी के नौरोजाबाद और पाली से जुड़े तार सीधे बुढ़ार के कबाडख़ाने तक पहुंचते हैं, यहां से अनूपपुर के कबाड़ी पुत्र से होते हुए कोतमा, राजनगर तक पूरी लाईन जब एक हो जाती है तो, साझेदारी के दावों की पुष्टि होने लगती है।

पुलिस मैनेजमेंट के दावों में दम

कबाड़ माफिया बीते पखवाड़े से सिंडीकेट बनने के दावे चौराहों पर कर रहे हैं, सबसे पहले अमलाई थाने में बुढ़ार के तथाकथित पुराने कबाड़ी का वाहन जब्त होता है और नये सिंडीकेट की सुगबुगाहट सुनाई देने लगती है। बीते वर्ष जिस कबाड़ी के एक फोन कॉल पर थानों में जब्त वाहन मामूली जुर्माने के साथ छूट जाते थे और अगले दिन लॉ-एण्ड आर्डर की स्थिति निर्मित कर देते थे, नये परिवेश में जब शहडोल के तथाकथित कबाड़ी के सौदों की चर्चा और उमरिया तथा शहडोल जिले में नये ठीहों की तलाश की जाने लगी तो, दावों में दम नजर आने लगा, करीब एक पखवाड़े तक सबकुछ शांत होने के बाद अनूपपुर के जानू और शहडोल के अनीस का नेटवर्क तीनों जिलों में थानो के सामने से ही अवैध कबाड़ के वाहन दौड़ाने लगे, तो दावों के दम पर पुष्टि की मोहर लगने लगी।

7 लाशों की फाईल आज भी अधर में

बीते साल कोयलांचल के धनपुरी क्षेत्र की बंद पड़ी धनपुरी इंकलाईन भूमिगत खदान ने 7 लाशें उगली थी, धनपुरी और शहडोल सहित कबाड़ के कारोबार को प्रदेश की सुर्खियों में लाने वाला यह मामला अभी भी नतीजे तक नहीं पहुंचा है। जिस तर्ज पर नये संगठित आपराधिक गिरोह की तैयारियां हो रही हैं, संभाग भर के सैकड़ो बेरोजगार तीनों जिलों में फैले ठीहों में अवैध कमाई को देखते हुए अपनी आमद बढ़ा रहे हैं। जिसे देख यह अंदाजा सहज लगाया जा सकता है कि समय पर पुलिस-प्रशासन ने यदि अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की तो, 7 लाशों की कई फाईलें थानो में बन सकती है, यही नहीं नये रंगरूटो के इस कारोबार में आने से अंचल में चोरियां, राहजनी और नशे के कारोबार के अलावा आपसी प्रतिस्पर्धा नये विवादों को जन्म देगी।

पर्दे में मैनेजमेंट के मुखिया

शहडोल के अलावा दोनों जिलों में कबाड़ के दो दर्जन से अधिक ठीहे हैं, जिनके संचालक कहीं न कहीं राजनैतिक आकाओं के साथ ही प्रशासनिक पकड़ भी रखते हैं, यही कारण है कि कबाड़ के ठीहों पर कार्यवाही तो होती है, लेकिन ठीहे कभी पूरी तरह से बंद नहीं हुए। शहडोल में ही अलग-अलग ठीहों के संचालकों में बीते वर्ष आपसी गैंगवार तक देखने को मिली। इतना सबकुछ होने के बाद भी दर्जनों संगठित आपराधिक गिरोहों को एक सत्ता के नीचे लाना अपने आप में बड़ा काम है, बताया तो यह भी जा रहा है कि अवैध कबाड़ की खरीदी और बिक्री के बीच मुनाफे को कुछ प्रतिशत पर्दे के पीछे मैनेजमेंट के मुखिया को भी तय किया गया है। यूं ही नहीं देश की नामी कंपनी के लाईजनर का नाम कबाड़ के ठीहो पर नहीं लिया जा रहा है।

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