अवैध शराब के 116 मामलों में जप्ती कुल 750 लीटर

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लंगोटीधारियों तक सिमटी कार्रवाई, आबकारी विभाग निष्क्रिय
पुलिस अधीक्षक का नशा विरोधी अभियान केवल गांव खेड़ों के लंगोटीधारी लोगों तक सिमट कर रह गया है।
कच्ची शराब पकड़ कर पुलिस अपना कोरम पूरा कर रही है जबकि अंग्रेेजी शराब का नगर में बहता रेला न पुलिस को
दिखता न आबकारी को दिखाई पड़ रहा है। ऐसे में यह अभियान कितना न्यायसंगत है यह सहज ही अनुमानित है।

शहडोल। पुलिस अधीक्षक के निर्देशन में यद्यपि जिले भर में नशे के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है और अवैध
शराब की धरपकड़ की जा रही है लेकिन यह धरपकड़ भी केवल दिखावे केे लिए ही है। इस अभियान की गिरफ्त में
केवल कच्ची व देशी शराब के लंगोटीधारी विक्रेता ही पकड़े जा रहे हैं। जबकि अंग्रेजी शराब के बड़े मगरमच्छ इस
धरपकड़ से पूरी तरह अछूते हैं। अंग्रेेजीे शराब के अवैध अड्डों में न तो दबिश पड़ती न कारोबारी पकड़े जाते हैं। जिले के
अंदर चल रहे करोड़ों के कारोबार के विरुद्ध 5-10 हजार रुपए की कच्ची शराब पकड़ कर वाहवाही लूटी जा रही है।
माना जाता है कि यह धरपकड़ शराब ठेकेेदार के इशारों पर हो रही है। पुलिस तो इतना भी कर रही है लेकिन आबकारी
विभाग जिसका यह मूल दायित्व है वह तो केवल हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है।
116 मामले कायम
जिले के कोतवाली शहडोल समेत लगभग सभी14 थानों में धरपकड़ की कार्रवाई हुई और अवैध शराब जप्ती के 116
मामले कायम किए गए हैं। कुल जप्ती शराब की मात्रा लगभग 750 लीटर ही है। ज्यादातर 6 लीटर के आसपास ही
जप्ती हुई है। कुछ ही जगहों में 10 लीटर जप्त हुई है। देखा जा सकता है कि मामले तो 116 हुए और जप्ती इतनी कम
है। कोतवाली शहडोल में 26 प्रकरण, बुढ़ार थाने में भी 26, अमलाई में 6, सोहागपुर 11, सिंहपुर 8, ब्यौहारी 13, पपौंध
1, धनपुरी 8, सीधी 6, देवलौंद 6, जैतपुर 8, जयसिंहनगर 11, खैरहा 3, गोहपारू 9 मामले कायम किए गए हैं। इतनी
धरपकड़ शायद पुलिस की वाहवाही के लिये काफी है।
अंग्रेेजी शराब सरेआम बिक रही

गांव खेड़ों के लंगोटीधारी तो दबोच लिए जाते हैं लेकिन इनके साथ अगर अंग्रेेजी के बड़े असामियों के अड्डों में भी
छापे डाले जाते और उनकी धरपकड़ भी होती तो नशे के खिलाफ चलाया जाने वाला अभियान अधूरा दिखाई नहंी
पड़ता। जहां लाखों का कारोबार चल रहा है वहां पुलिस परहेज कर रही है, असामियों के वाहनों की जांच नहीं होती
गोदामों की जांच नहीं होती आखिर उन्हे यह अभयदान क्यों मिला हुुआ है और कौन उनका छत्रप बना हुआ है? बताया
जाता है कि अंग्रेजी शराब के कालेे कारोबारी थानो को समय समय पर उपकृत करते रहते हैं। पुलिस उनके उपकार का
लिहाज करती है।
आबकारी को कोई सरोकार नहीं
आबकारी विभाग को तो पुलिस के बराबर भी सरोकार नहीं है जबकि शराब के अवैध कारोबार पर अंकुश लगाने का
जिम्मा आबकारी विभाग का ही है। उसकी ड्यूटी पुलिस कर रही है। आबकारी विभाग ने तो जैसे सबको नशे का रेला
बहाने की छूट ही दे दी है। वह अपने ठेकेदार के खूंटे से बंधा है। उसका ठेकेदार जैसा चाहता है विभाग वैसा ही करता है।
शहर के अंदर ही सरेआम चौराहों, होटलों, ढाबों, चायपान के टपरों में शराब की बिक्री की जा रही है और इसे सरलता
से उपलब्ध कराया जा रहा है। अण्डा बिरयानी के ठेलों में अंग्रेजी शराब बेची जा रही है। क्या आबकारी विभाग नहीं
जानता है? कुल मिला कर पुलिस गांव खेड़ों में पहुंच कर कच्ची पकड़ कर कोरम पूरा कर रही है तो आबकारी विभाग
ठेके दारों का हित साधने में लगा है।

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