नदी अनुरागी अनिल माधव दवे को आज घाट व नदी की सफाई कर दी गई श्रद्धांजलि*

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गिरीश राठौड़

अमरकंटक/अनिल माधव दवे राज्यसभा सदस्य तथा भारत सरकार में पर्यावरण , वन तथा जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री के रूप में सेवाए दीं । इन्होने अपने जीवनकाल में रहते हुए माँ नर्मदा और उनकी सहायक नदियों के संरक्षण के लिए अनेको कार्य किये आपको नर्मदा भक्त नर्मदा सुत , पर्यावरण विद के नाम से भी संबोधित करते है |

इन्होने नर्मदा समग्र न्यास के नाम से एक सामाजिक संस्था का गठन किया था जो कि मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र और गुजरत से बहने वाली जीवन दायनी माँ नर्मदा के संरक्षण के लिए कार्य करती है | आपके कार्यो से प्रेरणा लेकर आज हजारो कार्यकर्ता एवं संस्थाए नर्मदा के संरक्षण कार्य में नर्मदा समग्र के साथ जुड़कर कार्य कर रही है । अमरकंटक के दिनेश साहू से चर्चा के दौरान पूरी जानकारी देते हुए बतलाए की नर्मदा समग्र इनकी पूण्यतिथि 18 मई को संकल्प दिवस के रूप में प्रतिवर्ष मनाती है । इस अवसर पर अमरकंटक की घाट टोली ने बांधा माधव सरोवर में मां नर्मदा के दक्षिण तट पर घाट और नदी की सफाई अभियान चला कर सफाई की | इसी के साथ अमरकंटक घाट टोली ने स्वच्छता संकल्प हस्ताक्षर अभियान भी चलाकर माँ नर्मदा को स्वच्छ रखने की अपील के साथ अनिल माधव दवे जी को श्रद्धांजलि अर्पित की | इस स्वच्छता अभियान कार्यक्रमों में प्रमुख रूप से अमरकंटक के वार्ड 07 और 06 बांधा क्षेत्र के अलावा कार्यकर्ता में प्रमुख रूप से दिनेश साहू , शिव खैरवार , ओम प्रकाश उईके , बलराम महोबिया , चेतराम प्रधान , प्रदुम्न कुमार के साथ साथ अनेको कार्यकर्ता एवं मोहल्लेवासी शामिल हुए |

*नर्मदा समग्र*

नर्मदा समग्र एक प्रयत्न है। नर्मदा नदी, एक जल स्त्रोत, एक आस्था को स्वस्थ, सुंदर और पवित्र बनाये रखने का यह एक प्रयास है। विश्व की अधिकांश संस्कृतियों का जन्म व विकास नदियों के किनारे हुआ है। भारत के ऋषियों ने पर्यावरण संतुलन के सूत्रों को ध्यान में रखकर समाज की नदियों, पहाडों, जंगलों व पशु-पक्षियों सहित पूरे संसार की ओर देखने की विशेष सह अस्तित्व की अवधारणा का विकास किया। उन्होंने पाषाण में भी जीवन देखने का मंत्र दिया। ऐसे प्रयत्नों के कारण भारत में प्रकृति को समझने व उससे व्यवहार करने की आदान-प्रदान के भाव से युक्त परम्पराओं का विकास हुआ। जिओ और जीने दो जैसी मान्यताएं विकसित हुईं। पेड-पौधे, पशु, पानी सभी पूज्य हो गए। समय के साथ चलते-चलते जब परम्पराएं बगैर समझे निबाही जाने लगीं तो वे रूढयाँ बन गईं। आंखें तो रहीं लेकिन दृष्टि बदल गई। इसने सह अस्तित्व के सिद्धान्त को बदलकर न जियेंगें न जीने देंगें जैसे विकृत सोच का विकास किया। इसी का परिणाम रहा कि नदी व पहाड, पशु व पेड सब अब मरने लगे हैं। नर्मदा जैसी प्राचीन नदी भी इस व्यवहार से नहीं बच पा रही है। उसका अस्तित्व संकट में है।

जंगल कट रहे हैं, नदी का जल कम हो रहा है और प्रदूषण लगातार बढ रहा है। नर्मदा से सभी को पानी चाहिए, किन्तु नर्मदा में पानी कहाँ से आता है ? वह कैसे बढाया जाय ? इस विचार का सर्वत्र अभाव है। नर्मदा समग्र एक पहल है। पहले से कार्य कर रहे व आगे कार्य करने वालों के बीच संवाद की यह कोशिश है। नर्मदा समग्र इस पुण्य सलिला के सभी पक्षों पर संयुक्त प्रयास चाहता है। यह नर्मदा के सारे आयामों को एक स्थान पर समेटने की ओर आगे भी बढना चाहता है। नर्मदा समग्र की पूरी टीम आप सभी से प्रार्थना करती है कि सपरिवार, सकुटुम्ब इस कार्य में अपनी भागीदारी निश्चित करें जिससे प्रयत्न को सहयोग मिले व मैकलसुता की सेवा भी हो ।

*अमरकंटक- श्रवण उपाध्याय*

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