दो माह बीते, ठण्डे बस्ते में रेमडेसिविर की जांच

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बैकफुट पर बड़े मामलों का खुलासा करने वाली पुलिस

जिला चिकित्सालय सहित जीएमसी को आवंटित हुए थे इंजेक्शन

 

जीएमसी से चोरी होकर बिक रहे इंजेक्शनों का 11 मई को हुआ था

खुलासा

(अमित दुबे)
शहडोल। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी के साथ रेमडेसिविर जैसे इंजेक्शनों की कमी से दर्जनों की मौत के मामले सामने आये थे, हालाकि शहडोल में कलेक्टर की सक्रियता से इंजेक्शनों की कमी दिगर जिलों की तुलना में कमी ही हुई, लेकिन 11 मई को जब शहडोल पुलिस ने पत्रकारवार्ता का आयोजन कर रेमडेसिविर की कालाबाजारी का भण्डाफोड़ करते हुए जब 4 लोगों को गिरफ्तार किया तो, उस दिन यह प्रदेश की सबसे बड़ी खबर थी। पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी के द्वारा अब तक के मामलों में की गई निष्पक्ष जांचों के रिकार्ड ने दर्जनों के होश उड़ा दी, चार की गिरफ्तारी तो हुई, लेकिन जिस जगह से इंजेक्शन आवंटित हो रहे थे, जिन्हें आवंटन के लिए तैनात किया गया था, स्टोर से लेकर इंजेक्शन लगने तक की पूरी चैन के बीच ऐसे दलाल सक्रिय थे, जिनकी नींद 11 मई को खुलासे के बाद उड़ गई, लेकिन इस मामले में पूरी जांच इस तरह लकवा ग्रस्त हो गई और मामला ठण्डे बस्ते में चला गया, जिसकी किसी को भी उम्मीद नहीं थी।
यहां-यहां आये थे इंजेक्शन
शासन द्वारा रेमडेसिविर इंजेक्शन शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय के अलावा सिविल सर्जन कार्यालय के स्टोर को आवंटित किये गये थे, हालाकि इसके साथ ही नर्मदा एजेंसी नामक निजी प्रतिष्ठान से भी इंजेक्शनों की बिक्री हो रही थी, किन्तु कालाबाजारी का खुलासा होने के बाद जीएमसी और सिविल सर्जन कार्यालय मुख्य रूप से रडार में थे। जीएमसी में दो वरिष्ठ चिकित्सकों जिन्हें इंजेक्शनों के आवंटन व इसकी प्रक्रिया की जिम्मेदारी दी गई थी, दोनों ही कार्यवाही की जद से बाहर रहे, यही स्थिति कार्यालय सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक का भी था, जहां लगभग 436 इंजेक्शन आवंटित हुए थे, जिन्हें रेडक्रास सोसायटी द्वारा शुल्क लेने के बाद स्टोर के माध्यम से निजी चिकित्सालयों को दिये जाने थे।
मनमाफिक बांटे इंजेक्शन
सिविल सर्जन कार्यालय से जुड़े सूत्रों पर यकीन करें तो, यहां के स्टोर से सबसे ज्यादा 148 इंजेक्शन श्रीराम चिकित्सालय को दिये गये और मजे की बात तो यह है कि जब मामले का खुलासा हुआ तो, इसी अस्पताल के एक कर्मचारी का नाम इसमें शामिल था, वहीं दूसरे क्रम में देवांता को 46, श्याम केयर को 30 और अमृता को 6 इंजेक्शन आवंटित किये गये थे। बाद में इस सूची में संभवत: और भी संख्या घटी या बढ़ी होगी। सिविल सर्जन कार्यालय के स्टोर से बंटे इंजेक्शनों में 9 मई को बाउचर नंबर 2666 के माध्यम से 10 इंजेक्शन श्रीराम अस्पताल भेजे गये थे, लेकिन रिकार्ड में उन नामों का उल्लेख या वे दस्तावेज संलग्न नहीं किये गये, जिनके आधार पर इंजेक्शन लगाये जाने थे, यह इंजेक्शन किन्हें लगाये गये, उस समय जारी सरकारी दस्तावेजों में इसका उल्लेख भी नहीं किया गया, यही नहीं बाउचर नंबर 2667 को इसी 9 मई को ही 10 इंजेक्शन भेजे गये, उक्त इंजेक्शन किस चिकित्सक की चिकित्सीय परामर्श पर किन्हें दिये गये, इसका भी खुलासा अभी तक नहीं हो सका है, जीएमसी को इससे पहले 6 मई को भी बाउचर नंबर 2651 के माध्यम से 2 इंजेक्शन दिये गये थे।
जिम्मेदारों ने भी बांटे इंजेक्शन
कार्यालय सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक के दस्तावेजों पर यकीन करें तो, 24 अप्रैल को 4 इंजेक्शन कलेक्टर सर के नाम पर दर्ज हैं, जिसमें मरीज के नाम पर पूअर पेशेंट का उल्लेख किया गया है, यह मरीज कौन है और किस चिकित्सक के परामर्श पर इंजेक्शन दिये गये, यह पहचान क्यों छुपाई गई। यह भी पुलिस के जांच के बिन्दु होने चाहिए थे, यही नहीं जिला चिकित्सालय के स्टोर कीपर धर्मेन्द्र नामदेव के नाम पर भी 6 इंजेक्शनों का उल्लेख है, किन्तु मरीज को इंजेक्शन की सलाह किसने दी और वह कहां भर्ती था, यह दस्तावेजों में कहीं भी उल्लेखित नहीं है। इसी क्रम में 3 इंजेक्शन संजय गांधी मेडिकल कॉलेज रीवा भेजे गये थे, जिन्हें नायब तहसीलदार के नाम पर दर्ज किया गया, सवाल यह उठता है कि मेडिकल कॉलेज रीवा में क्या इंजेक्शनों की कमी थी, यदि कमी थी भी तो, सिविल सर्जन कार्यालय के रिकार्ड में चिकित्सीय परामर्श की पर्ची संलग्न क्यों नहीं की गई, यह सूची तो, महज एक बानगी है, यह भी हो सकता है कि दर्जनों नाम ऐसे दर्ज कर लिये गये हैं, जो जांच के बाद काल्पनिक साबित हों।

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