शहडोल में फर्जी बिलों में भ्रष्टाचार की बेलगाम बाढ़: सेमरा पंचायत में फर्जी बिलों का नया घोटाला

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पेसा एक्ट को ठेंगा, जनप्रतिनिधि को किया नजरअंदाज, सचिव के अकेले हस्ताक्षर से हुआ लाखों का भुगतान

शहडोल जिले में ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार अब बेलगाम होता नजर आ रहा है। हाल ही में उजागर हुए पेंट घोटाले और ड्रायफ्रूट घोटाले के बाद अब जनपद पंचायत बुढार के अंतर्गत ग्राम पंचायत सेमरा में एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है, जहां सचिव ने सरपंच की जानकारी और सहमति के बिना दर्जनों बिलों का भुगतान कर डाला। इस पूरे मामले ने पंचायतों में पारदर्शिता और जवाबदेही के सवाल को फिर से चर्चा में ला दिया है।

सिर्फ सचिव के हस्ताक्षर से पास किए गए बिल

ग्राम पंचायत सेमरा में बीते कुछ महीनों के भीतर जो कार्य किए गए और उनके भुगतान हुए, उनकी जब ग्रामीणों ने जांच-पड़ताल की तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए। दर्जनों बिल केवल पंचायत सचिव के हस्ताक्षर से पास कर दिए गए, जबकि नियमानुसार किसी भी प्रकार के भुगतान के लिए सरपंच और सचिव दोनों के संयुक्त हस्ताक्षर अनिवार्य हैं।

इस प्रकार सरपंच को भुगतान की जानकारी तक न देना, पंचायत के सामूहिक निर्णय तंत्र और पेसा कानून (PESA Act) की खुली अवहेलना है, जो आदिवासी क्षेत्रों की स्वशासन व्यवस्था को सुनिश्चित करता है।

क्या है पेसा एक्ट और क्यों है ये उल्लंघन

पेसा एक्ट (Panchayats Extension to Scheduled Areas Act) 1996 में बनाया गया एक विशेष कानून है, जो अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की सर्वोच्चता और पंचायतों को स्वशासन के अधिकार प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत पंचायत में कोई भी कार्य बिना ग्रामसभा की जानकारी और मंजूरी के नहीं किया जा सकता।

लेकिन सेमरा पंचायत के इस प्रकरण में न तो ग्रामसभा की बैठक के दस्तावेज सामने आए हैं, न ही कार्यों की स्वीकृति प्रक्रिया पारदर्शी है। उल्टा, चुने हुए जनप्रतिनिधि यानी सरपंच को ही दरकिनार कर दिया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पेसा एक्ट का उल्लंघन करते हुए सचिव ने मनमाने ढंग से कार्य स्वीकृत कर भुगतान करा डाला।

ग्रामीणों ने खुद निकाले पंचायत से फर्जी बिल

इस मामले में बड़ी बात यह रही कि ग्रामीण खुद पंचायत की वेबसाइट पर जाकर वहां से भुगतान किए गए संदिग्ध बिलों की प्रतियां निकाल लाए, और उन्हें सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। कई बिलों में एक ही दिन में अलग-अलग मदों में लाखों रुपए का भुगतान दर्शाया गया है, लेकिन धरातल पर ऐसे किसी कार्य का अस्तित्व ही नहीं है।

ग्रामीणों का कहना है कि यदि कार्य हुआ भी है, तो उसका न तो कोई भौतिक सत्यापन हुआ है, न कोई जनप्रतिनिधि या ग्रामसभा से स्वीकृति ली गई। इससे स्पष्ट होता है कि पूरा तंत्र केवल कागजों पर चल रहा है और सरकारी राशि की बंदरबांट पंचायत सचिव और जनपद स्तर के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से हो रही है।

जनपद और जिला प्रशासन की चुप्पी भी सवालों के घेरे में

जब यह मामला सामने आया, तब स्थानीय ग्रामीणों ने जनपद कार्यालय जाकर इसकी लिखित शिकायत की, लेकिन अभी तक न तो जनपद CEO की ओर से कोई जांच टीम भेजी गई है और न ही जिला पंचायत या कलेक्टर कार्यालय से कोई संज्ञान लिया गया है। इससे आम जनता में यह संदेश जा रहा है कि प्रशासन इस तरह के घोटालों को दबाने में ही ज्यादा रुचि रखता है, न कि दोषियों पर कार्रवाई करने में।

सभी भुगतान की जांच और कार्यों का भौतिक सत्यापन

ग्रामीणों ने अब इस पूरे मामले की जिला कलेक्टर से जांच की मांग की है। साथ ही वे भुगतान से जुड़े सभी कार्यों का स्वतंत्र एजेंसी से भौतिक सत्यापन कराने की मांग कर रहे हैं, जिससे यह पता चल सके कि वास्तव में धरातल पर कोई काम हुआ भी है या नहीं।

इसके अलावा उन्होंने दोषियों पर FIR दर्ज कर कठोर कानूनी कार्रवाई करने, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज करने तथा भविष्य में पेसा एक्ट के उल्लंघन की स्थिति में सचिवों को निलंबित करने की व्यवस्था लागू करने की भी मांग की है।

यह मामला सिर्फ सेमरा पंचायत तक सीमित नहीं है, बल्कि शहडोल जिले की कई पंचायतों में ऐसी ही व्यवस्था लागू है, जहां सचिव ही ठेकेदार, भुगतान अधिकारी और सत्यापनकर्ता बना बैठा है। पेसा एक्ट जैसे मजबूत कानूनी अधिकारों के बावजूद, यदि सरपंचों और ग्रामसभाओं की अनदेखी कर काम होगा, तो यह लोकतंत्र और आदिवासी हितों के साथ धोखा होगा।

शासन को इस पूरे घटनाक्रम को उदाहरण बनाकर दोषियों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि पंचायत स्तर पर फैले इस भ्रष्टाचार पर लगाम लग सके और ग्राम पंचायतें फिर से जनहित में कार्य करने की दिशा में लौट सकें।

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