अतिथि विद्वानों के भरोसे 5 हजार बच्चों का भविष्य


(शुभम तिवारी+91 78793 08359)
उमरिया। प्रदेश में 15 सालों के बाद सत्ता तो बदली, लेकिन व्यवस्थाओं में कोई अंतर नजर नहीं आ रहा है, शिक्षा का अधिकार कानून तो बना दिया गया, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका पालन नहीं हो पा रहा है, सरकारी स्कूलों के जो आंकड़े सामने आये हैं, उनमें 5 हजार से भी ज्यादा बच्चे ऐसी स्कूलों में पढ़ रहे हैं, जहां पर कोई भी शिक्षक तैनात नहीं है। प्रशासन ने अतिथि शिक्षकों के भरोसे बच्चों के भविष्य को चौपट करने के लिए छोड़ दिया है। राजनेता और जनप्रतिनिधि वोट की राजनीति तक सीमित हैं, इतने गंभीर मुद्दे पर भी किसी ने भी पहल करने की कोशिश तक नहीं की।
72 सालों में नही बदले हालात
जिले के दूरस्त अंचल में बसे चंगेरा,देवरी,अमरपुर,चिल्हारी,इंदवार,चंसुरा गांव के सरकारी हायर सेकेंडरी स्कूल को छोड़ भी दे तो मुख्यालय से चंद कदम दूर पिपरिया, किरनताल की हाई स्कूल सहित जिले की 51 ऐसी स्कूल है जो बगैर शिक्षको के ही संचालित हो रही है, मसलन साफ है यहां के अध्ययनरत तकरीबन 5 हजार बच्चों का भविष्य अधर में है और सरकारे शिक्षा के अधिकार कानून लागू करने के बहाने वाहवाही लूट रही, लेकिन हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था के सच को आजादी के 72 साल बाद भी दुरुस्त नही किया जा सका और इसी के बूते सरकारे 21 वी सदी का सपना गढ़ रही है।
अतिथि शिक्षक के भरोसे शिक्षा
बहरहाल ये तस्वीरे तो आपने हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी की देखी है, महाविद्यालयो के हालात तो इनसे भी खऱाब है, ऐसे में जिले के शिक्षा का स्तर क्या होगा समझा जा सकता है, रहा सवाल जिम्मेदारो का तो स्कूल के प्राचार्य हो, चाहे जिला शिक्षाधिकारी सच से सब वाकिफ है, लेकिन शिक्षको की आपूर्ति इनके बस में नहीं, इन्हे तो सिर्फ शिक्षा की गुणवत्ता सुधारनी है, जिसे अतिथि शिक्षको के भरोसे पूरा करने तैयारी में लगे हैं। बच्चे और नौजवान किसी भी विकसित या विकासशील देश की रीढ़ होते हैं, लेकिन यह आंकड़े कहीं न कहीं जिले, राज्य और केन्द्र की नाकामी को उजागर कर रहे हैं।
मूलभूत सुविधाएं भी नहीं
गौरतलब है कि जिले में तकरीबन डेढ़ हजार सरकारी स्कूलों के जरिये जिले के बच्चो को शिक्षा देने का इंतजाम किया गया है, जिसमे आदिवासी जनपद को छोड़ दे तो 801 प्राथमिक , 381 माध्यमिक व 97 हाई स्कूल सहित 27 हायर सेकेंडरी स्कूल संचालित है, जिनमे शिक्षको के साथ कहीं भवन, तो कहीं पेयजल और शौचालय जैसी मूलभूत समस्याये आम है, ऐसे में जिले के छात्रो का भविष्य क्या होगा समझा जा सकता है, एमडीएम पर अव्यवस्था हावी है, कुपोषण भी पूरे जिले में सबसे बड़ी समस्या, शिक्षा का स्तर अगर गिरता जायेगा तो जिले के विकास पर भी सीधे तौर पर इसका असर देखने को मिल सकता है।
इनका कहना है…
जो हकीकत है, सब सामने है, अतिथि शिक्षकों के माध्यम से शिक्षकों की कमी को दूर किया जायेगा।
उमेश कुमार धुर्वे
जिला शिक्षा अधिकारी
उमरिया