खुद को झोंक, इन योद्धाओं ने दी कोविड-19 को मात

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मेडिकल कॉलेज के डीन की टीम ने किया खुद को साबित
कई मोर्चाे पर डीन की टीम ने की कोरोना से लड़ाई
घर पहुंचने पर चिकित्सकों का हो रहा अभूतपूर्व स्वागत
जून-जुलाई की लड़ाई की अभी से हो रही तैयारी

(Amit Dubey-8818814739)
शहडोल। 27 अप्रैल की शाम जब आईसीएमआर से शहडोल से गये सैंपलों में से 2 की कोरोना पॉजीटिव रिपोर्ट आई तो, प्रशासन और जिले का स्वास्थ्य अमला स्तब्ध रह गया, कलेक्टर डॉ. सतेन्द्र सिंह ने मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. मिलिंद शिरालकर सहित जिला चिकित्सालय के जिम्मेदारों से चर्चा की और आनन-फानन में तय किया गया कि पूर्व से यहां बनाये गये आईसूलेशन वार्ड व आईसीयू में इन्हें भर्ती कराया जाये। तब तक नित्य की तरह अपने कार्याे में लगे यहां पदस्थ चिकित्सक व नर्सिंग स्टॉफ पूरी तरह बेफिक्र रहे, लेकिन एक इमरजेंसी कॉल ने तत्काल सभी को ड्यिुटी पर मुस्तैद कर दिया। कुछ दिनों की मेहनत और टीम भावना से किये गये सेवा का परिणाम था कि चिकित्सकों ने कोरोना को शहडोल में दस्तक देने के बाद भी उसे यहां से विदा कर दिया, चिकित्सकों की टीम ने एक बार फिर खुद को साबित किया, अभी इस टीम के कुछ सदस्य घर पहुंच चुके हैं, तो कुछ अभी क्वारंटीन है, मेडिकल कॉलेज की व्यवस्थाओं पर जब नजर डाली गई तो, यह सामने आया कि डॉ. मिलिंद शिरालकर के नेतृत्व में कोरोना पॉजीटिव मरीजों के चारों तरफ एक सॢकल बनाया गया था, जिसमें तीन डॉक्टरों की टीम थी तो, इस टीम के पीछे डॉक्टरों की एक टीम बैकबोन के रूप में काम कर रही थी, जो इन पर निगरानी के साथ ही आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति में लगी हुई थी, डॉक्टरों की एक टीम ऐसी भी थी, जो मरीजों सहित पूरे स्टॉफ के स्वास्थ्य का ख्याल और उन्हें पोषण आहार देने के साथ रहने आदि की व्यवस्था को सम्हाले हुई थी। तीन टीमों में जिन डॉक्टरों का रखा गया था, उसमें मुखिया के अलावा अन्य चिकित्सकों को मरीजो को मोटीवेट करने के लिए भी शामिल किया गया था, बाहर से सामान्य दिखने वाला यह पूरा घटना क्रम और कोरोना से सीधे लड़ाई लडऩा किसी चुनौती से कम नहीं था।

काम आया टीम लीडर का अनुभव

मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. मिलिंद शिरालकर के अनुभव और लीडरशिप के गुणों के कारण ही इतनी बड़ी टीम ने मिलकर कोरोना वॉयरस को मात देने में सफलता अर्जित की। जिस समय कोरोना के मरीजों को यहां लाया जाना था, उस समय मेडिकल कॉलेज में बेड तक नहीं थे। कलेक्टर ने इसमें रूचि दिखाते हुए जिला चिकित्सालय से बेडो की व्यवस्था की, तो नर्सिंग स्टॉफ आदि की समस्या नजर आने लगी। 20 आईसूलेशन वार्ड बनाये गये, जिसके बाद 10 अन्य बेड तैयार किये गये, 50 ऑक्सीजन वाले वार्ड तैयार हुए अब 100 बेड तैयार हो चुके हैं। पीपीई किट सहित अन्य आवश्यक वस्तुओं की समय पर आपूर्ति, रोस्टर से चिकित्सकों की ड्यिुटी, उनके लिए रहने खाने की व्यवस्था के साथ उनके स्वास्थ्य की चुनौती सबकुछ सहजता से संपन्न हो गया, डॉ. शिरालकर कहते हैं कि ड्यिुटी के बाद कम से कम 10 दिन क्वारंटीन रहने के लिए कहा गया है, कमरों की व्यवस्था हमें और करनी पड़ेगी। हालाकि 50-50 कमरों के हॉस्टलों को जून-जुलाई के लिए तैयार किया जा रहा है। 32 आईसीयू, 97 ऑक्सीजन रूम, 519 बेड जैसी कई व्यवस्थाएं हम कर चुके हैं। 40 नर्साे की भर्ती की है साथ ही डॉक्टर और वार्ड ब्वॉय की भर्ती जल्द करेंगे, कुछ मशीनों की आवश्कता है, संभवत: जल्दी पूरी हो जायेगी। अंत में मेडिकल कॉलेज के डीन अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि हम 1 मई से ओपीडी चालू करने के प्रयास में थे, लेकिन कुछ दिन पहले ही काम शुरू हो गया और शुरूआत कोरोना से हुई, ओपीडी चालू होने की खुशी मरीजों के भर्ती होने के साथ ही हुई, तो उससे ज्यादा खुशी उनके ठीक होकर जाने पर मिली।
डीन सर के सपोर्ट से मिली जीत

वरिष्ठ चिकित्सक रूपेश गुप्ता अपने अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि यह पूरी लड़ाई एक टीम की थी, जिसका नेतृत्व डीन सर कर रहे थे, उनके बिना नेतृत्व और अनुभवों से हम इस लड़ाई से इतनी आसानी से नहीं लड़ पाते। वे आगे कहते हैं कि जिन मरीजों को यहां भर्ती किया गया था, उनकी स्थिति ज्यादा क्रिटिल नहीं थी, वहीं डे्रेस, एन-95 व शू-कवर आदि से लैस होकर हम उनके पास जाते थे, जिस कारण बिल्कुल डर नहीं लगता था, दवाएं, इंजेक्शन और अन्य सामग्री समय पर उपलब्ध हो जाती थी, जिस कारण वे जल्दी ठीक हो गये। मरीजों के इलाज के बाद खुद डॉ. गुप्ता यहां क्वारंटीन थे, 2 दिनों पहले ही 15 मई को वे अपने परिजनों से मिल सके।
शुरूआती घंटो में था भय, फिर सामान्य

डॉ. जितेन्द्र शर्मा भी तीन शिफ्टों में कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज करने वाली टीम में शामिल थे, डॉ. शर्मा ने बताया कि जब मरीजों से पहली बार मिले तो, उन्हें संक्रमण का भय था, लेकिन किट व अन्य आवश्यक वस्तुएं होने के कारण यह घबराहट एक से डेढ़ दिन तक ही रही, पहले मरीजों का इलाज और फिर क्वारंटीन होने के कारण डॉ. रूपेश गुप्ता व अन्य की तरह डॉ. शर्मा भी अपने परिवार से नहीं मिल सके, उन्हें मेडिकल कॉलेज में बने रेस्ट हाउस में रहना पड़ रहा था। इस दौरान समय मिलने पर अपनी पत्नी, मां व अन्य रिश्तेदारों व मित्रों से बात जरूर हो जाती थी, अब डॉ.शर्मा भी घर आ चुके हैं।
15 से 17 घंटों की करते थे ड्यिुटी

डॉ. आकाश रंजन और उनके साथ की टीम कोरोना संक्रमित मरीजों से सबसे पहले रूबरू होने वाले लोगों में से थी, कोरोना संक्रमित पाये गये, दोनों मरीजों की जांच डॉ. आकाश रंजन और उनके साथ और उनके साथ डॉ. अंशुमान, डॉ. आकाश व डॉ. रामगोपाल गुप्ता की टीम ने ही की थी, इनकी स्क्रीनिंग के बाद माइक्रो बॉयोलॉजी की टीम उनके सैंपल लेती थी, जमीनी स्तर पर जा कर सुबह 9 बजे से रात के 2-3 बजे तक लगातार खुद फिल्ड में रहना और आशा स्तर की स्वास्थ्य कर्मचारियों का हौसला बढ़ाने का काम डॉ. रंजन, डीन सर व सिविल सर्जन डॉ. बारिया से मार्गदर्शन लेकर करते थे। डॉ. रंजन ने यह भी बताया कि संदिग्धों से 6 फिट की दूरी, अनिवार्य रूप से मॉस्क लगाना सबसे जरूरी है, वे यह कहना भी नहीं भूले कि पूर्व में भोपाल में दी गई सेवाओं की अपेक्षा शहडोल के लोग सरल व सहयोग करने वाले हैं।
नागेन्द्र के मैनेजमेंट की हुई जीत

डॉ. नागेन्द्र मेडिकल कॉलेज के डीन की टीम का विशेष हिस्सा रहे, कुछ चिकित्सक सीधे मरीजों से मिल रहे थे, तो कुछ बैकबोर्न बनकर उनके पीछे खड़े थे, डॉ. नागेन्द्र के साथ डॉ. संजय शुक्ला और डॉ. राजेश केम्यूलकर की टीम यहां का पूरा मैनेजमेंट देख रही थी, जिसमें चिकित्सकों, नर्सिंग स्टॉफ, हाउस कीपिंग व अन्य की रोस्टर के तहत ड्यिुटी लगाना व उन्हें किसी भी प्रकार की परेशानी या संक्रमण उनके करीब भी न आये इसकी जिम्मेदारी दी गई थी, जिसे इस टीम ने बखूबी अंजाम दिया।
वानखेड़े के पोषण आहार से आई स्फूर्ति

डॉ. पवन वानखेड़े कोरोना वॉयरस काल के दौरान मेडिकल कॉलेज की पूरी टीम और मरीजो व अन्य सभी को किस तरह का भोजन दिया जाये, भोजन की आपूर्ति कब और कैसे होनी है, यही नहीं सोशल डिस्टेसिंग व अन्य खर्चाे को डोनेशन से कैसे पूरा किया जाये। यह सब डॉ. पवन वानखेड़े ने बखूबी कर दिखाया। चिकित्सकों सहित नर्सिंग स्टॉफ के सुबह के नाश्ते से लेकर लंच, शाम का नाश्ता और फिर रात का भोजन यह सब व्यवस्था रामानंद और पंकज बियाला के साथ मिलकर डॉ. वानखेड़े ने की। सोशल डिस्टेंसिंग के साथ सब तक भोजन पहुंचना और पैकिंग के साथ थर्माकोल की थालियों की व्यवस्था रैन बसेरे से लेकर एच-ब्लाक तक बखूबी की गई।
आज घर पहुंचेंगे पुष्पराज

डॉ. पुष्पराज सिंह 27 अप्रैल को कोरोना संक्रमित मरीजों के मेडिकल कॉलेज पहुंचने के साथ वहां गये थे, 4 मई तक उपचार करने वाली टीम में शामिल थे और तब से आज तक क्वारंटीन हैं। मूलत: शहडोल के घरौला मोहल्ला के निवासी डॉ. पुष्पराज वरिष्ठ चिकित्सकों के साथ यहां अपनी सेवाएं दे रहे थे, उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि सबकुछ डीन सर की मेहनत और मार्गदर्शन का फल है, इलाज के दौरान मरीजों की काउंसलिंग आदि उनके द्वारा की जाती रही है, आज सोमवार को कई दिनों बाद डॉ. पुष्पराज क्वारंटीन रूम से बाहर निकलकर अपने घर, अपने माता-पिता के बीच पहुंचेंगे।

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