सड़क पर पत्रकार संघ का शीतयुद्ध @ संघ के सदस्यों ने संचालन समिति के खिलाफ खोल मोर्चा

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अध्यक्ष हटाओ नारे लगे और आनन फानन में सम्माननीयों के बहक गए कदम

न आम सभा की बैठक हुई और न आम सहमति बनी…

तो फिर जिला पत्रकार संघ के संचालन समिति का कैसे हो गया गठन…?
शहडोल। वैसे तो यह बात लिखी नहीं जानी थी, लेकिन जब बात आत्मसम्मान के खिलाफ उठी तो कलम उठाना ही पड़ा। और अब जो लिखा जा रहा है, उससे कुछ तथाकथित सम्मानीय जनों को ठेस पहुँचाना बिल्कुल लाजमी है। खैर ठेस लगे तो लगे! लेकिन बात जब सत्य और असत्य की हो तो लिखने में चूक बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं।
गौरतलब है कि जिला पत्रकार संघ शहडोल के कार्यकारिणी का गठन किया गया, जो चुनाव प्रक्रिया के तहत संपन्न हुआ। जिसमें अध्यक्ष के रुप में शिवनारायण त्रिपाठी को संघ के सदस्यों ने चुना। कार्यकारिणी का कार्यकाल बाइलॉज के अनुसार 2 साल के लिए तय माना गया है, समय के पश्चात चुनाव प्रक्रिया का पालन करते हुए नई कार्यकारिणी का गठन किया जाना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं? और कुर्सी के मोह में चुने गए अध्यक्ष साहेब हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे। वह अपने !कार्यकाल के 2 वर्ष पूर्ण करने के बाद भी, लगभग 5 वर्षों से भी अधिक समय से अपनी अध्यक्षी का मोह नहीं त्याग पा रहे थे।

तो उठने लगे विरोध के स्वर
जिसके बाद संघ के पदाधिकारियों सहित  कई सदस्यों ने अध्यक्ष से नैतिक दायित्व का पालन करते हुए आगामी प्रक्रिया सुनिश्चित किए जाने का आग्रह करते रहे। लेकिन कुर्सी मोह और स्वयं द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की पोल खुलने के भय से नैतिकता प्रदर्शित नहीं हो सकी। जिसके बाद विरोध के स्वर प्रखर होते गए।

और अब दिखाने लगे पैंतरेबाजी
22 फरवरी को ”अध्यक्ष हटाओ, संघ बचाओ” का नारा लगाया गया और जिला पत्रकार संघ भवन के सामने संघ के पदाधिकारी सहित कई सदस्य आंशिक धरने पर भी बैठ गए। जिसके बाद षड्यंत्रकारी दांव पेच का दौर चालू हुआ! और 26 फरवरी को आनन-फानन में एक पत्र जारी करते हुए संचालन समिति का गठन कर दिये जाने की खबर प्रसारित कर दी गई है। जिसमें यह बताया गया कि शिवनारायण त्रिपाठी ने जानकारी दी है कि वह व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते संघ की जिम्मेदारी का निर्वहन कर पाने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं, जिसके चलते स्थितिवश यह कार्य संचालन समिति गठित की गई है।  गठित की गई यह कार्य संचालन समिति अपने आप में एक अजूबा ही है, जो नियम विपरीत तो है ही साथ ही साथ पत्रकार साथियों सहित आम जनमानस के लिए भी हास्य का विषय भी बना हुआ है।

सवाल है यह भी
विचारणीय पहलू यह है कि जिस संचालन समिति का गठन किया गया है वह नियम विरुद्ध तो है ही, साथ ही साथ वरिष्ठजनों की ओछी मानसिकता को प्रदर्शित करता है। इस समिति का गठन करने के पूर्व आम सभा की बैठक नहीं बुलाई गई और न ही आम सहमति बनाते हुए इस समिति का गठन किया गया है। तो ऐसे में इस संचालन समिति को वैध कैसे माना जाए? क्या संरक्षक सदस्यों ने आंख बंद कर, स्वहित में  संचालन समिति का गठन किया है? क्या ऐसी संचालन समिति, जिला पत्रकार संघ और जिले के पत्रकारों के लिये हितकारी साबित होगी? संरक्षक मंडल अभी तक क्यों नींद में था? और अब ऐसा क्या हुआ कि आनन में नियम विरुद्ध जाकर कार्य संचालन समिति का गठन करने मजबूर होना पड़ा? और हां अंत में एक बात और यह कि, अध्यक्ष महोदय अब तक हमेशा से अपने दायित्वों से पीछे भागते रहे हैं। लेकिन अब उन्हें सामने आकर हिसाब किताब देने* में क्या परेशानी है? खुला मंच है, स्वागत है।

खोल दिया मोर्चा…

गौरतलब हो कि जिले के पत्रकार बंधुओं की बुलंद आवाज़ से घबडाहट मे गुप-चुप की तरीके से बिना आमसभा के समिति बनाई है जो नियम विरुद्ध और घोटालों पर पर्दा डालने का पुरजोर समर्थन में बैठक की गई। बैठक की खबरें सोशल मीडिया पर प्रकाशित की गई, हालांकि इसके विरोध में गुरूवार दोपहर जिला पत्रकार संघ के 02 दर्जन सदस्यों समेत लगभग 45 पत्रकारों ने मोर्चा खोल दिया और गठित समिति का पुरजोर विरोध किया और आमसभा की बैठक नियमतः कराकर पूर्व कार्यकाल का आय-व्यय का हिसाब किताब लेकर नई कार्यकारिणी का गठन किया जाएं इस पत्रकार संघ की नीव रखते हुए हमारे पूर्वजों ने दिन रात एक कर दिया तब कही जाकर संभाग का एकलौता पत्रकार संघ बना जिसकी वार्षिक आय का स्रोत है जिससे पत्रकार बंधुओं के हितार्थ कार्य होना चाहिए था जो बीते 7-8 वर्षों में हो ना पाया। सिर्फ स्वार्थ सिद्धि के लिए उपयोगी साबित हो रहा संघ सही कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों को विधिवत सौपा जाए। इस तरह नियम विरुद्ध बनी समिति का जिले के पत्रकारों ने मोर्चा खोल दिया।

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