सत्ता के आगे बौना हुआ प्रशासन?

पूर्व खनिज मंत्री के लिए नौकरशाहों ने तोड़े कानून
(Amit Dubey-8818814739)
शहडोल। भाजपा शासन काल में खनिज मंत्री और जिले के प्रभारी मंत्री रहे राजेन्द्र शुक्ला की भइया लाल कंपनी और बुढ़ार के पदम सिंघानिया की टीबीसीएल कंपनी को जयसिंहनगर तहसील के पतेरा टोला में शासकीय निर्माण कार्य के लिए पतेरा टोला में अस्थाई रेत की खदान स्वीकृत की गई थी, जिसमें कंपनी की ओर से आये आवेदन में जिस खसरा क्रमांक का उल्लेख है, उससे शासकीय प्रक्रियाएं पूरी की गई, लेकिन जब अनुमति जारी करने की बारी आई तो खसरा क्रमांक ही बदल दिया गया। इतना ही नहीं एक खदान के लिए दो बार अलग-अलग पर्यावरण स्वीकृतियां जारी की गई और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की जमकर धज्जियां उड़ाई गई।
दो अनुमतियों पर खदान
पतेरा टोला रेत खदान के लिए जारी पर्यावरण स्वीकृति को अगर देखा जाये तो एक खदान के संचालन के लिए डिया से दो बार पर्यावरण स्वीकृति जारी की गई, जो कि समझ से परे है। नौकरशाहों ने मंत्री की कंपनी को उपकृत करने के लिए डिया-डैक सहित पर्यावरण संरक्षण की धाराओं को धज्जियों में उड़ा दिया। गौरतलब है कि भइया लाल इंस्फ्राटक्चर कंपनी पूर्व खनिज मंत्री राजेन्द्र शुक्ला की पत्नी सुनीता शुक्ला और पुत्री एश्वर्या शुक्ला के नाम से पंजीकृत है, टीबीसीएल बुढ़ार के पदम सिंघानिया की कंपनी है।
खसरे नंबर में हेरफेर
कंपनी ने अस्थाई रेत खदान की अनुज्ञप्ति प्राप्त करने के लिए जो आवेदन दिया था, उसमें पतेरा टोला के खसरा क्रमांक 139/202 था, वहीं राजस्व, वन, ग्राम पंचायत से जो अनापत्ति प्रमाण पत्र मंगवाये गये, उसमें भी खसरा क्रमांक 139/202 अंकित है, लेकिन जब उक्त खदान की पर्यावरण स्वीकृति जारी की गई तो उसमें खसरा क्रमांक 139/102 की अनुमति जारी की गई। खदान किस खसरे नंबर पर संचालित हो रही है, यह तो खनिज विभाग के अधिकारी ही बेहतर जानते हैं।
जांच हुई तो नपेंगे कई
जारी की गई पर्यावरण स्वीकृति में अधिकारियों ने नये कानून की भी इजात की है, शर्तों के बिन्दुओं में पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1989 बना दिया गया, जबकि देश में इस प्रकार का कोई कानून लागू नहीं है, पूर्व खनिज मंत्री को उपकृत करने के लिए डिया, डैक और खनिज विभाग में बैठे अधिकारियों ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 को बदलकर पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम बना दिया।
आपराधिक प्रकरण हो सकते हैं दर्ज
जिस तरीके से पतेरा टोला, सौंता और तिगवार में नियमों को तोड़ा गया, अगर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धाराओं के तहत कार्यवाही हुई तो कंपनी के जिम्मेदारों के अलावा आदेश जारी करने वाले अधिकारियों और खनिज विभाग के जिम्मेदारों के खिलाफ न्यायालय में आपराधिक प्रकरण भी दायर हो सकता है, जिसमें सजा और जुर्माने दोनों के प्रावधान हैं।
कटघरे में भण्डारण
जारी की गई पर्यावरण स्वीकृति में उक्त कंपनी को 25 हजार घन मीटर ही रेत निकालने की अनुमति जारी की गई थी, मानसून सत्र से पहले दो मैनुअल टीपी जारी की गई थी, बीते कुछ दिनों पहले शुरू हुई पतेरा टोला रेत खदान में ईटीपी के माध्यम से जो रेत का खनन कर परिवहन किया जा रहा, जिसमें शासकीय कार्य के लिए स्वीकृत खदान की रेत बाजार में भी बेची जा रही है। खनिज विभाग ने खदान के साथ ही इतनी कम मात्रा के लिए भण्डारण भी पूर्व खनिज मंत्री और पदम सिंघानिया की कंपनी को जारी कर दिया, जो की कटघरे में विभाग की कार्य प्रणाली को खड़ा करता है। माईंनिंग प्लान की शर्तों का भी उल्लंघन पूरी खनन प्रक्रिया के दौरान किया गया, पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले अवधेश पाण्डेय ने बताया कि जल्द ही तीनों खदानों का मामला न्यायालय पहुंचेगा और दोषियों को कार्यवाही से भी गुजरना पड़ेगा।
इनका कहना है…
अगर ऐसा है तो टीम भेजकर जांच कराई जायेगी, किसी भी प्रकार की लापरवाही और गड़बड़ी मिली तो कठोर कार्यवाही होगी, दोषी कोई भी हो बख्सा नहीं जायेगा।
ललित दाहिमा
कलेक्टर, शहडोल
नियमों और कानूनों के खिलाफ डिया और डैक, खनिज विभाग में बैठे अधिकारियों ने ऐसा किया है तो यह धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है, मौजूदा सरकार को इनके खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए, चाहे वह नियम तोडऩे वाला कोई क्यों न हो। इस मामले को न्यायालय तक ले जाया जायेगा।
अजय दुबे
पर्यावरणवादी एवं आरटीआई एक्टेविस्टि
भोपाल