ग्राम पंचायत बम्हनी (आर.टी.आई.) के नियमो पर नही उतरता खरा

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भारतीय संसद ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और सरकारी क्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए साल 2005 में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून बनाया था. इस कानून के तहत भारत का कोई भी नागरिक सरकार के किसी भी विभाग की जानकारी हासिल कर सकता है. आरटीआई हाथ से लिखकर या टाइप करके या फिर ऑनलाइन लगाई जा सकती है ।
कितने दिन में मिलेगी सूचना । सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 7 में प्रप्रावधान किया गया कि कोई भी सूचना 30 दिन के अंदर दी जाएगी ।

सूचना न देने वाले के खिलाफ कार्यवाही
अगर आपके आरटीआई के तहत कोई जानकारी मांगी गयी है और लोक सूचना अधिकारी जानकारी देने से मना करता है तोे इसका वाजिब कारण बताना होगा । अगर उनके द्वारा जानकारी देने से मना करता है या गलत जानकारी देता है,या आधी अधूरी जानकारी देता है,या जानकारी देने से बचने के लिये दस्तावेज नष्ट करता है तों जुर्माना भरना पड़ सकता है ।
अब देखा जाये तो ग्राम पंचायत बम्हनी में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत ग्रामीणों कें आवेदन पर पंचायत के पदाधिकारी जानकारी को वृहद रूप जैसी जानकारी होने के कारण जानकारी को नही दिया जाता ।

नालियों में गदंगी का अंबार


ग्राम पंचायत बम्हनी के वार्ड नं. 17-18 बस स्टैण्ड के पास वाली सड़क में नालियों का निर्माण तो कराया गया था लेकिन न ही नालियों की सफाई पंचायत द्वारा करायी जाती है और न ही उनका देखरेख कराया जाता है आधी से ज्यादा नालियां तो सड़क के साथ ही भ्रष्ट हो गयी है और जहां नालियां दिखाई भी दे रही है तो पूरी गंदगी और घास-फूस से जाम हो गई है। पंचायत द्वारा इन सारी समस्याओं  को ध्यान में नही दिया जाता ।

राशन लेने के लिये गदंगी से होकर गुजरना


ग्राम में शासकीय उचित मूल्य की दुकान जो की पंचायत के समीप स्थित है लेकिन पंचायत के पदाधिकारी रोज उसी मार्ग से चलकर कार्यालय पहुंचते है लेकिन पदाधिकारियों द्वारा पंचायत के समीप स्थित राशन के दुकान के सामने की कीचड़, गंदगी और सफाई उन्हे दिखाई नही देती है । और राशन दुकान में आये ग्रामीणों को कीचड़ से होकर गुरजना पड़ता है।

 

 

कार्यालय में कभी कभार रहते है  पंचायत के पदाधिकारी।                                                                                                 ग्रामीण जनों को पंचायत के होने वाले कार्यों के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है चाहे वह छोटा सा कार्य क्यों ना हो या फिर बोला जाए तो समग्र आईडी में नाम सुधारने जैसी छोटी समस्या का भी निराकरण ग्रामीणों को नहीं मिलता अगर गलती से वहां के  पदाधिकारी मिल भी जाए तो कार्य को विलंब करने में  सरवर प्रॉब्लम जैसी समस्या बता कर पल्ला झाड़ लिया जाता है और ग्रामीणों को छोटे-छोटे कार्य के लिए पंचायत के चक्कर लगाने पड़ते हैं

क्या पंचायत में भ्रष्टाचार को सह दे रहे अधिकारी ?

आखिर सवाल यह उठता है कि पंचायत में लिप्त भ्रष्टाचार को उपर के अधिकारियों या मंत्रीयो की सह प्राप्त है । कही न कही प्रशासन अगर इतना भ्रष्टाचार जानने के बाद भी कुभंकरण की नींद में सोया है,तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि कही न कही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिये सायद अधिकारियों या मंत्रीयो की सह प्राप्त हों।

 

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