मोती की मांद में मिलता है हर नशा

गांजे की पुडिय़ा से लेकर इजेक्शन, गोलियां व कोरेक्स का कारोबार
दिन भर रहता है कालेजी छात्रों और बेरोजगारों का डेरा
पूर्व में भी कोतवाली पुलिस ने की थी कार्यवाही



(शुभम तिवारी+91 78793 08359)
शहडोल। मुख्यालय स्थित परमठ का रेलवे फाटक क्रास करते ही पुरानी बस्ती शुरू हो जाती है, इस क्षेत्र में शहडोल की बाकी आबादी की तुलना में नशेडिय़ों की संख्या अधिक मानी जाती है, यही नहीं रेलवे फाटक से परमठ तरफ के लगभग 28 से 30 वार्डाे वाले शहडोल के नशेडिय़ों का भी पुरानी बस्ती से गहरा नाता है। कहने को तो पुरानी बस्ती में नशे का कारोबार करने वाले आधा दर्जन के आस-पास छोटे-मोटे कारोबारी है, लेकिन रेलवे फाटक क्रास करने के बाद ही किसी भी आम आदमी से गांजे या इंजेक्शन जैसी नशीली दवाओं के संबंध में उपलब्धता को लेकर जानकारी ली जाये तो, वह न सिर्फ मोती का नाम लेते हैं, बल्कि यह कहने से भी नहीं चूकते कि सत्यम वीडियो के पास रहने वाले मोती के यहां हर नशा मिलता है। नशेडिय़ों और आम लोगों के दावे खाली नहीं है, मोती के ठीहे पर गांजे से लेकर वर्तमान में प्रचलित हर वो दवा उपलब्ध है, जिसका उपयोग युवा नशे के रूप में कर रहे हैं।
युवाओं का रहता है डेरा
पुरानी बस्ती में मोती का ठीहा ढूंढना भी मुश्किल नहीं है, सत्यम वीडियो के आस-पास मुख्य मार्ग पर खड़े युवा और सकरी गली से निकलते अन्य युवा इस बात की ओर सहज इशारा कर देते हैं कि मोती का ठीहा आस-पास ही है। मुख्यालय सहित आस-पास के अंचल से शहडोल में रहकर पढ़ाई करने वाले स्कूल व कालेज के छात्र यहां दिन भर नजर आते हैं। इसके साथ ही बेरोजगार और नशे का आदी हो चुके असमाजिक तत्वों की एक जमात यहां चहल-कदमी करती हुई नजर आ जाती है। गली में घुसते ही मोती के बाहर से खपरैलनुमा घर में घुसते और निकलते युवा सहज नजर आते हैं।
सर्व-सुलभ है उपलब्धता
गांजे की पुडिय़ा सहित नशे के रूप में उपयोग होने वाले इंजेक्शन, गोलियां व सिरप लेने के लिए यहां पुरानी पहचान की भी जरूरत नहीं है, सिर्फ आपको स्थानीय भाषा के साथ खरीदे जाने वाले नशे का नाम और उसकी अनुमानित कीमत की जानकारी होनी चाहिए, नशा आपको आसानी से उपलब्ध हो जायेगा।
महिलाएं व बच्चे बने हथियार
खुलेआम बिकने वाले नशे के खिलाफ पुलिस ने कोई मुहीम या कार्यवाही नहीं की, ऐसा नहीं है, बीते महीनों के रिकार्ड बताते हैं कि मोती के खिलाफ पुलिस ने एनडीपीसी एक्ट जैसी गंभीर कार्यवाहियाँ की, लेकिन नशे का यह कारोबार बंद नहीं हुआ, वर्तमान में मोती और उसका पूरा कुनबा इस कारोबार में लगा है, पुलिस और अन्य विभागीय अधिकारियों से बचने के लिए इन्होंने महिलाओं को आगे कर उन्हें नशा बेचने की जिम्मेदारी दी है, खुद पर्दे के पीछे रहकर आने-जाने वाले ग्राहकों की पहचान व अधिकारियों की रैकी खुद मोती और परिवार के अन्य पुरूष करते हैं।
दर्जनों स्थानों पर छुपा रहता है नशा
पुलिस, आबकारी और प्रशासनिक कार्यवाही के दौरान गांजा और नशीली दवाएँ जब्त न हो, इसके लिए पेशेवर हो चुके कथित लोगों द्वारा नशे की सामग्री लाई तो थोक में जाती है, लेकिन उसे अपने घर व बाड़ी में कई स्थानों पर थोड़ा-थोड़ा करके छुपाकर रखा जाता है, पुलिस यदि चाह भी ले तो आसानी से इनके घर में छापा मारकर बड़ी मात्रा में नशीला पदार्थ जब्त नहीं कर सकती। दीवारों और फर्श में सुराख बनाकर गुप्त ठीहे इनके द्वारा बनाकर उसमें दवाएँ और गांजा छुपाया जाता है, जिसे आसानी से नहीं ढूंढा जा सकता।
स्थाई निगरानी और जागरूकता की जरूरत
मोती और इसके जैसे आधा दर्जन और नशे के कारोबारियों को जड़-मूल से खत्म करना पुलिस के बूते के बाहर है, स्वीकृत स्टॉफ से कम की तैनाती और दैनिक शिकायतों, न्यायालयीन कार्याे के अलावा गैर जरूरती कार्याे के बोझ के कारण, कोतवाली और सोहागपुर पुलिस का आधे से अधिक समय इसी में चला जाता है, बचे समय में मोती जैसे चालाक लोगों पर कार्यवाही तो की जा सकती है, लेकिन उनके इस कारोबार को पूरी तरह से बंद करने के लिए इनके खिलाफ जिला बदर के साथ स्थाई निगरानी रखने की आवश्यकता है, यही नहीं स्कूल और कालेज के छात्रों के बीच नशे के दुष्परिणामों को लेकर जागरूकता लाने की भी महती आवश्यकता है।