बिना ट्रीटमेंट बह रहा दूषित पानी भी, औचक निरीक्षण जरूरी

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शहडोल। जन स्वास्थ्य रक्षा और पर्यावरण संतुलन के लिए शासन ने कड़े प्रावधान किए हैं लेकिन उन प्रावधानोंं का उल्लंघन वे ही कर रहे हैं जिनके द्वारा लोगों को स्वास्थ्य संबंधी एहतियाती उपाय बताए जाते हैं। नगर के अंदर ऐसी निजी अस्पतालों और पैथालाजियों की कमी नहीं है जहां बायोमेडिकल वेस्ट खुले में फेंक कर जनस्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। नगर के अंदर रीवा रोड पर संचालित आदित्य हॉस्पिटल इनमें से एक ऐसा ही हास्पिटल है। आलीशान भवन में सड़क के किनारे संचालित इस अस्पताल में शासकीय नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। अस्पताल प्रबंधन के गैरजिम्मेदाराना रवैये के कारण लोगों की परेशानी बढ़ रही है। अस्पताल की जांच पड़ताल कर इसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि ऐसे ही कृत्य में लिप्त रहने वाले दूसरे लोगों को इससे सबक मिल सके।
पिछवाड़े बढ़ा रहे गंदगी
बताया गया कि आदित्य हॉस्पिटल द्वारा अस्पताल का बायोमेडिकल बेस्ट अस्पताल के पिछवाड़े खुले में फेक दिया जाता है, जिससे उसके घातक संक्रमण का भय बना हुआ है। जबकि नियमत: इसे एक सुरक्षित और निर्धारित प्रक्रिया के तहत विनष्ष्टीकरण कराया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया के लिए एक ठेका कंपनी काम भी कर रही है। जो कि बायोमेडिकल उठा कर लेजाती है और एक स्थान पर सुरक्षित विधि से उसका निष्पादन करती है। इस अस्पताल नेे उससे संभवत: अनुबंध नहीं किया है। यदि किया भी है तो भी लापरवाही बरती जा रही है। मजे की बात यह है कि प्रशासनिक अधिकारी निजी अस्पतालों का औचक निरीक्षण करना भी जरूरी नहीं समझते हैं।
बजबजा रहा दूषित पानी
बायोमेडिकल वेस्ट की ही तरह अस्पताल का दूषित और विषाक्त पानी भी अस्पताल के पीछे खुले में बहाया जा रहा है जिससे गंदगी बढ़ रही है और सड़ांध उठने लगी है। जबकि पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण के नियमानुसार इन्हे वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाना चाहिए और उससे पानी का उपचार किया जाना चाहिए। अस्पताल द्वारा इस प्रावधान का भी पालन नहीं किया जा रहा है। अस्पताल का संचालन किया जा रहा है और रोगियों से उपचार के नाम पर जमकर शुल्क लिया जाता होगा लेकिन एहतियाती उपाय बरतने में कोताही बरती जा रही है। इसी से यह समझ मेें आता है कि अस्पताल प्रबंधन जनता के प्रति कितना संवेदनशील है।
अस्पताल में कितनी सुविधा
इस अस्पताल मेें उपचार की आखिर कितनी सुविधाएं हैं यह भी देखा जाना चाहिए। बाहर के विजिटर डाक्टरों के भरोसे अस्पाल चलाई जा रही है। ऐसे डाक्टर कितने भरोसेमंद हैं यह सहज ही अनुमानित है। जबकि नियमत: अस्पताल के पास अपने नियमित डाक्टर होने चाहिए। एक डाक्टर की चौबीसो घंटे ड्यूटी रहनी चाहिए। इसके अलावा ब्लड बैंक, ऑक्सीजन, एम्बुलेंस आदि की स्थाई व्यवस्था होनी चाहिए। इनमें से कितना इनके पास उपलब्ध है। डाक्टरों को भाड़े पर बुलाकर उनसे इलाज कराया जाता है।
जांच की जानी आवश्यक है
प्रशासनिक अमला खासतौर पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी इस दिशा मेेंं गंभीरता बरतते हुए अपनी टीम के साथ इस अस्पताल का औचक निरीक्षण करें और शासन के प्रावधानों मेें से कितनों का यहां पालन किया जा रहा है इसे गंभीरता से जांच करें। वास्तव में देखा जाए तो मॉनीटरिंग के अभाव में ही अधिकांशत: मनमानियां की जातीं हैं। अधिकारियों को भी नियमो के पालन से अधिक सरोकार नही रहता है। ज्ञातव्य है कि आदित्य अस्पताल जब जेल के समीप संचालित था तब कुछ वर्षों पूर्व यहांं दबिश डालकर जांच पड़ताल की गई थी। मतलब कि यह अस्पताल उस समय भी निशाने पर थी।

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