कुर्सी के लिए कांग्रेस संगठन में शुरू हुई रस्साकसी

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मुख्यालय या फिर कोयलांचल को मिलेगी जिम्मेदारी

शहडोल। ढ़ाई दशक से सत्ता से बाहर रहने के बाद भी कांग्रेस जिलाध्यक्ष की कुर्सी को लेकर पदाधिकारियों में आज भी शीतयुद्ध देखा जा सकता है। सुभाष गुप्ता दूसरी बार पार्टी के जिलाध्यक्ष तो बन गये, लेकिन अब अध्यक्ष की दोबारा चल रही दौड़ में सुभाष ने खुद को लगभग किनारे कर लिया है, अलबत्ता उन्होंने अपने सबसे खास के पीछे खड़े होकर कमलनाथ गुट की ताकत जरूर उसके पक्ष में लगा दी है, इधर पहली बार कोयलांचल में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पद के जाने के लिए बीते दिनों तो, विशाल भोज तक का आयोजन कर दिया गया। बहरहाल लंबे समय तक भाजपा के बड़े नेताओं की चरणवंदना और निकाय से लेकर विधानसभा, लोकसभा चुनावों में पार्टी का झण्डा न उठाने वालों ने भी खुद को इस रेस में शामिल कर दिया है।
मुद्दो से दूर अध्यक्ष की दौड़
25 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने अपनी पहचान केवल प्रेस विज्ञप्ति तक सीमित कर ली है, मुख्यालय के कुछ कांग्रेसी ही इस प्रेस विज्ञप्ति की परम्परा को निभा रहे हैं। बाकी जयसिंहनगर से लेकर देवलोंद और बुढ़ार, धनपुरी, बकहो तक के कांग्रेसियों ने विपक्ष की भूमिका, जनता के मुद्दे और भाजपा के विरोध से खुद को किनारे कर लिया है। मुख्यालय में भी सिर्फ कांग्रेस भवन की चाभी और राजधानी से मिले आदेशों की खानापूर्ति तक की ही राजनीति सीमित रह गई है, जनहित के मुद्दो को लेकर मुख्यालय की भी कांग्रेस और नेता अर्से से सुप्तावस्था में जा चुके हैं।
टॉल तक सीमित सुभाष कांग्रेस
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष की दूसरी बार कमान मिलने के बाद सुभाष गुप्ता अपने कार्यालय और टॉल के बीच में सिमट कर रह गये, आजाद बहादुर गुट से लेकर कोयलांचल व ब्यौहारी के गुटों को पूरे कार्यकाल में कांग्रेस के कार्यक्रम में शिरकत नहीं करा पाये। यही नहीं युवक कांग्रेस का एक बड़ा गुट भी अभी तक सुभाष कांग्रेस से एक नहीं हो पाया। अलबत्ता यह जरूर हुआ कि निकाय चुनावों के दौरान युवक कांग्रेस के कभी जिलाध्यक्ष रहे रविन्द्र तिवारी, सुभाष गुप्ता के सबसे करीबी माने जाते थे, बीते इन वर्षाे में उन्होंने ने भी दूरिया बना ली। मुख्यालय से लेकर अन्य कस्बों और ग्रामों में भाजपा के निकायों व अन्य ठेकों तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ कांग्रेस के जिलाध्यक्ष कभी सामने नहीं आये।
जीतू-कुणाल के भरोसे
जीतू पटवारी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद शहडोल में उनके करीबी रहे गुट को भले ही राजनैतिक तौर पर एक लाईन और ताकत मिल गई, लेकिन सुभाष गुप्ता के इस गुट में कभी भी विपक्ष का कर्तव्य नहीं निभाया, वर्तमान में अंधो में काना राजा जैसी स्थिति निर्मित होने के कारण खुद को पहले कमलनाथ और अब जीतू गुट का बताकर कुर्सी पर अपना अधिकार बताया जा रहा है। मौन रहकर भाजपा की सत्ता की स्लीपर सेल बन चुके दर्जनों कांग्रेसियों को जब तक लक्ष्मण सिंह की तरह बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जायेगा, तब तक पार्टी के ठेकेदार शायद ही विधानसभा और लोकसभा तक कांग्रेस का सदस्य भेज सकेंगे।
कोयलांचल में गठबंधन की राजनीति
कांग्रेस के अब तक के इतिहास में लगभग जिलाध्यक्ष मुख्यालय से ही बने हैं, वर्तमान में कोयलांचल से प्रदीप सिंह, बलमीत सिंह खनूजा ऐसे दो नाम है, जो इस दौड़ में है, हालाकि हनुमान खण्डेलवाल, मुबारक मास्टर और बुढ़ार क्षेत्र के कुछ एक नाम भी हैं,लेकिन लगातार सत्ता से बाहर रहने के बाद उनका आभा मण्डल बुझता नजर आ रहा है। नगर पालिका चुनाव और उसके बाद हनुमान खण्डेलवाल की भूमिका की खबरें राजधानी तक गूंजती रही हैं, यही वजह है कि हनुमान ने खुद को पहले ही किनारे कर लिया है, जबकि शेष दोनों नेताओं ने मुख्यालय की जगह एक-दूसरे को साथ देने की रणनीति पर चलना शुरू कर दिया है।

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