गोयंका फार्म हाउस बना वन्यजीवों का कब्रिस्तान!- तेंदुए के शिकार से खुला बड़ा नेटवर्क, अब तक 4 संरक्षित प्राणियों की संदिग्ध मौतें, विभाग पर कार्रवाई दबाने के आरोप
गोयंका फार्म हाउस बना वन्यजीवों का कब्रिस्तान!- तेंदुए के शिकार से खुला बड़ा नेटवर्क, अब तक 4 संरक्षित प्राणियों की संदिग्ध मौतें, विभाग पर कार्रवाई दबाने के आरोप
कटनी/जबलपुर सीमा पर फैले घुघरा स्थित महेन्द्र गोयंका के फार्म हाउस से निकली ये कहानी किसी जंगल नहीं, बल्कि कानून की कब्रगाह की लगती है।
जहाँ एक नहीं, चार-चार संरक्षित वन्यजीवों — तेंदुआ, चीतल, सांभर और जंगली सुअर की मौतें “दुर्घटना” नहीं बल्कि संगठित शिकार सिंडिकेट की गवाही दे रही हैं।
कटनी।। कटनी–जबलपुर सीमा पर स्थित महेन्द्र गोयंका के निसर्ग इस्पात प्राइवेट लिमिटेड परिसर (घुघरा फार्म हाउस) इन दिनों वन्यजीव अपराधों का पर्याय बन चुका है। बीते एक वर्ष में यहाँ तेन्दुआ, चीतल, सांभर और जंगली सुअर जैसे संरक्षित प्राणियों की संदिग्ध मौतों की श्रृंखला ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 9, 39(3), 51 और 55 के तहत गंभीर अपराध की ओर संकेत किया है।
तेंदुए की मौत ने खोली विभागीय कार्यशैली की पोल
24 अक्टूबर 2025 को घुघरा स्थित गोयंका फार्म हाउस परिसर में एक वयस्क तेंदुए का मृत शरीर बरामद किया गया। शव के दांत और नाखून संदिग्ध रूप से काटे गए पाए गए जो तस्करी या शिकार के स्पष्ट संकेत हैं। प्रारंभिक जांच में तेंदुए के पास एक जंगली सुअर का शव भी पाया गया, जिसे ‘करंट लगाकर मारे जाने’ की संभावना जताई जा रही है।
वन विभाग ने डॉग स्क्वॉड और फॉरेंसिक टीम को बुलाया, तथा शवों को वाइल्डलाइफ फॉरेंसिक एंड हेल्थ कॉलेज, जबलपुर भेजा गया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट 26 अक्टूबर को आने की उम्मीद है। डीएफओ ऋषि मिश्रा ने इसकी पुष्टि की, लेकिन जांच की दिशा और पारदर्शिता को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
रसूखदार के फार्महाउस में बार-बार मौतें, पर ‘मालिक पर आंच नहीं’
सूत्रों के अनुसार, फार्म हाउस के भीतर वन्यजीवों के शिकार, अवैध पार्टी और तस्करी जैसी गतिविधियों की चर्चा लंबे समय से रही है। ग्रामीणों ने बताया कि परिसर में संदिग्ध वाहनों की आवाजाही रातभर बनी रहती है। बीते दस दिनों में चार संरक्षित प्राणियों चीतल, सांभर, हिरण और तेंदुआ की लाशें अलग-अलग जगहों से बरामद हुईं। फिर भी, वन विभाग ने अब तक केवल तीन कर्मचारियों — मैनेजर अनुराग द्विवेदी, जेसीबी ऑपरेटर बृजेश विश्वकर्मा और कर्मचारी मोहित दहिया पर कार्रवाई की है। जबकि परिसर के मालिक महेन्द्र गोयंका, जो इस फार्म हाउस और निसर्ग इस्पात लिमिटेड के स्वामी हैं, उन्हें आरोपियों की सूची से बाहर रखा गया है।
‘करंट लगाकर शिकार’ और सबूत मिटाने की साजिश
जांच में सामने आया कि कर्मचारियों ने जंगली सुअरों को करंट लगाकर मारा और फिर जेसीबी से खुदाई कर शवों को गड्ढों में दबा दिया। बाद में, जब विभाग को तेंदुए की मौत का शक हुआ तो खुदाई कर अवशेष बरामद किए गए। परंतु सबसे बड़ा संदेह तब गहराया जब घटना स्थल के सीसीटीवी कैमरों का DVR जलकर राख हो गया। इससे साफ है कि साक्ष्य मिटाने की सुनियोजित कोशिश की गई है।
वन विभाग की जांच पर उठे सवाल — ‘मामला डायवर्ट करने की कोशिश’
घटना की सूचना मिलते ही वन परिक्षेत्र सिहोरा की टीम मौके पर पहुँची थी। लेकिन सूत्रों का दावा है कि जांच के शुरुआती चरण में ही कुछ अधिकारियों ने ‘तेंदुआ शिकार’ की चर्चा के बाद मामले को “जंगली सुअर के शिकार” में डायवर्ट कर दिया।
वन विभाग के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी ‘प्रभावशाली व्यक्ति’ के दबाव में काम करने के आरोपों से घिरे हैं। जांच में देरी और लापरवाही पाए जाने पर डिप्टी रेंजर यादवेंद्र यादव और बीट गार्ड जितेंद्र अग्रवाल को निलंबित किया गया है। लेकिन यह कार्रवाई विभागीय ‘डैमेज कंट्रोल’ भर मानी जा रही है।
कानूनी नजरिए से मामला गंभीर
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 9 और 39(3) के तहत किसी भी संरक्षित वन्यजीव की हत्या या अंग काटना दंडनीय अपराध है, जिसमें 7 वर्ष तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। धारा 55 के अनुसार, यदि यह अपराध किसी निजी संपत्ति में बार-बार घटित हो रहा है, तो भूमि स्वामी को सह-अपराधी (Co-Accused) माना जा सकता है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि गोयंका फार्म हाउस में लगातार वन्यजीवों की मौतें ‘संगठित वन्यजीव अपराध’ की श्रेणी में आती हैं, और मालिक की प्रत्यक्ष जिम्मेदारी बनती है।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने उठाई न्यायिक जांच की मांग
पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण संगठनों ने राज्य सरकार और मुख्य वन्यजीव संरक्षक से मांग की है कि: पिछले एक वर्ष में हुई सभी वन्यजीव मौतों का विवरण सार्वजनिक किया जाए फार्महाउस की सुरक्षा व्यवस्था और CCTV फुटेज की फॉरेंसिक जांच की जाए। गोयंका सहित प्रबंधन के खिलाफ प्रत्यक्ष अभियोग (Prosecution) दर्ज किया जाए। उच्च स्तरीय न्यायिक जांच (Judicial Inquiry) कराई जाए ताकि प्रभावशाली लोगों की भूमिका उजागर हो सके।
वन्यजीव संरक्षण बनाम औद्योगिक प्रभाव
ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि प्रशासनिक तंत्र पर उद्योगपति गोयंका का गहरा प्रभाव है, जिसके चलते हर बार जांच ठंडी पड़ जाती है। यदि यही घटना किसी आम व्यक्ति की जमीन पर होती, तो एफआईआर और गिरफ्तारी तत्काल होती। घुघरा स्थित यह प्रकरण केवल एक तेंदुए की मौत का नहीं, बल्कि वन्यजीव संरक्षण व्यवस्था की विफलता का प्रतीक बन गया है। अब यह देखना शेष है कि वन विभाग और शासन प्रभावशाली नामों के आगे झुकेगा या कानून की रक्षा करेगा। यदि कार्रवाई नहीं हुई, तो यह घटना मध्यप्रदेश में वन्यजीव संरक्षण कानून की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक मानी जाएगी।